श्रीसीताराम चरणौ शरणं प्रपद्ये।
अङ्गद उवाच-
लङ्काया हि प्रचण्डोग्रेर्यत्पाठाद् रक्षितोऽसि तत्।
श्रीसीताष्टाक्षरस्तोत्रं वक्तुमर्हसि मारुते।।१।।
उसके लिए जिसने आपको लंका की भीषण आग के पाठ से बचाया है। हे वायुपुत्र, तुम श्रीसीता के अष्टांगी स्तोत्र का पाठ करो।
हनुमान उवाच-
रामभक्त महाभाग सन्मते वालिनन्दन।
श्रीसीताष्टाक्षरस्तोत्रं सर्वभीतिहरं शृणु।।२।।
हे वालिनंदन महाभाग रामभक्त अंगद ! सभी भयों को दूर करने वाले श्रीसीता अष्टाक्षर स्तोत्र का पाठ करें।
श्रीमद् रामप्रिया पुण्या श्रीमद् रामपरायणा।
श्रीमद् रामादभिन्ना च श्रीसीता शरणं मम।।३।।
वह श्रीमद राम को प्रिय है और पवित्र और श्रीमद राम के प्रति समर्पित है। श्रीसीता, जो राम से अभिन्न हैं, मैं उनकी शरण में हूं।
शरणाश्रित रक्षित्री भास्करार्देविभासिता।
आकार त्रय शिक्षित्री श्रीसीता शरणं मम।।४।।
आपकी शरण में आने वाला रक्षक सूर्य के समान चमकता है। तीनों रूपों की शिक्षिका श्रीसीता मेरी शरणस्थली हैं।
शक्तिदा शक्तिहीनानां भक्तिदा भक्तिकामिनाम्।
मुक्तिदा मुक्तिकामानां श्रीसीता शरणं मम।।५।।
शक्तिहीन को शक्ति दाता, भक्तों को भक्ति। मोक्षदा मोक्ष की इच्छा रखने वालों के लिए मां सीता ही मेरी शरणस्थली हैं।
ब्रह्माण्युमारमाराध्या ब्रह्मेशादि सुरस्तुता।
वेदवेद्या गुणाम्भोधिः श्रीसीता शरणं मम।।६।।
ब्राह्मणस्वरूपिणी जो ब्रह्मा ईश आदि सुरों के द्वारा पूजित हैं। वे सीता, वेदों की वेदी, गुणों का सागर, मै उनकी शरण में जाता हूं।
शुन्या हि निग्रहेण्यानुग्रहाब्धिः सुवत्सलाः।
जननी सर्वलोकानां श्रीसीता शरणं मम।।७।।
जो कभी किसी को दंड नहीं देतीं और वात्सल्य का ही प्रमुख स्वरूप हैं और जगत की आदि जननी हैं, वो मां सीता ही मेरी शरणस्थली है।
चिदचिदाभ्यां विशिष्टा च सच्चिदानन्दरूपिणी।
कार्यकारणरूपा च श्रीसीता शरणं मम।।८।।
जो जड़ चेतन से विशिष्ट है तथा जो स्वयं सच्चिदानंद स्वरूपा है, तथा जो कार्य कारण रूपा है, वे मां सीता ही मेरी शरणस्थली हैं।
विशोका दिव्यलोका च बिम्बी दिव्या च भूषणा।
दिव्याम्बरा च दिव्यांगी श्रीसीता शरणं मम।।९।।
जो शोकातीत है, जो दिव्य लोक वाहिनी है, व्यापक है, दिव्य वस्त्र अलंकारों से अलंकृत है, वे मां सीता ही मेरी शरणस्थली हैं।
भर्त्री च जगतः कर्त्री हर्त्री जनकनन्दिनी।
जगद्धर्त्री जगद्योनीः श्रीसीता शरणं मम।।१०।।
जो जगत की भरण, पोषण तथा संहार करती है, जो जगत् को धारण करती है तथा जगत को उत्पन्न करती है, वे मां सीता ही मेरी शरणस्थली हैं।
सर्वकर्मसमाराध्या सर्वकर्मफलप्रदा।
सर्वेश्वरी च सर्वज्ञा श्रीसीता शरणं मम।।११।।
सभी सत्कर्मों को करते समय जिनकी आराधना हो जाती है, जो सभी कर्मों के फल प्रदान करने वाली है, वे सर्वेश्वरी तथा सर्वज्ञा श्रीसीता ही मेरी शरणस्थली हैं।
नित्यमुक्तस्तुता स्तुत्या सेविता विमलादिभिः।
अमोघपूजन स्तोत्रा श्रीसीता शरणं मम।।१२।।
जो नित्य मुक्त जन जिनकी पूजा करते हैं, जो स्तुति करने योग्य है, जो विमला उत्कर्षिणी आदि अष्ट महा शक्तियों द्वारा सेवित है, जिनका पुजा अमोघ फल प्रदान करने वाला है, वे मां सीता ही मेरी शरणस्थली हैं।
कल्पवल्ली हि दीनानां सर्वदारिद्र्यनाशिनी।
भूमिजा शान्तिदा शान्ता श्रीसीता शरणं मम।।१३।।
जो दीनो की दरिद्रता का विनाश करने वाली है, जो भूमि के बेटी शान्त स्वरूप तथा शान्ति प्रदायिनी वे मां सीता ही मेरी शरणस्थली हैं।
आपदाहारिणी चाथकारिणी सर्वसम्पदाम्।
भवाब्धितारिणी सेव्या श्रीसीता शरणं मम।।१४।।
जो आपदा तथा विपदा को हरण करने वाली हैं, जो सर्व सौभाज्ञ प्रदान करने, जो भव सागर से तारने वाली हैं, वे मां सीता ही मेरी शरणस्थली हैं।
वसिष्ठ उवाच-
पाठाद् हनुमता प्रोक्तं नित्य मुक्तन सदा।
श्रीसीताष्टाक्षरस्तोत्रं भुक्तिमुक्ति प्रदान् सदा।।१५।।
जो नित्य हनुमान जी द्वारा बोला गया श्रीसीताष्टक्षर पाठ करेगा, उसे भक्ति और मुक्ति दोनो सुलभ ही प्राप्त हो जाएंगे।
।। इति श्री वशिष्ठसंहितान्तर्गतं श्री सीताष्टाक्षर स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
हनुमान जी द्वारा बोला गया श्रीसीताष्टक्षर स्तोत्रम् पाठ करने से भक्ति और मुक्ति दोनो प्राप्त होगा
प्रेषित समय :17:38:10 PM / Sun, Dec 8th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर