मोक्षदा एकादशी व्रत और गीता जयंती के दिन श्री विष्णु का पूजन करने से हर मनोकामना पूर्ण होती

मोक्षदा एकादशी व्रत और गीता जयंती के दिन श्री विष्णु का पूजन करने से हर मनोकामना पूर्ण होती

प्रेषित समय :17:38:04 PM / Tue, Dec 10th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी ' *श्री मोक्षदा एकादशी* ' कहलाती है इसी एकादशी के व्रत के प्रभाव से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है  भगवान श्री कृष्णजी ने इसी एकादशी के दिन ही महाभारत काल के समय पर अर्जुनको श्रीगीता का उपदेश दिया था अत: इस तिथि को *'श्री गीता जयंती* ' पर्व के रूप में भी मनाया जाता है . 11 दिसम्बर 2024 बुधवार को श्रीमद् भगवद् गीता जयंती है.   

श्री मोक्षदा एकादशी के उपाय
 *1 . मोक्षदा एकादशी सभी एकादशियों में विशेष और समस्त पापों को नष्‍ट करने वाली, मानसिक शांति देने वाली और पापनाशक मानी गई है. इस तिथि के स्वामी श्रीहरि विष्णु है, अत: इस दिन पूरे मनपूर्वक प्रभु श्री हरि विष्णु का पूजन करने से जीवन में पुण्य फल प्राप्त होता है
 *2.* यह एकादशी पितरों को मुक्ति के लिए बहुत खास हैं, अत: जिन पितरों को मोक्षृ प्राप्त नहीं हुआ या जो नरक में गए हैं, उनके लिए आज के दिन एक लोटे पानी में थोड़े-से काले तिल मिलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितृ तर्पण करने से पितरों को वैकुंठ की प्राप्ति होती है. 
*3.* मोक्षदा एकादशी के दिन पीली वस्तुओं से भगवान श्री विष्णु का पूजन पूर्ण श्रद्धा के साथ करके उपवास रखने मात्र से मनुष्य की हर मनोकामना पूर्ण होती है.  *4.* इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को रणभूमि में गीता का उपदेश दिया था. अतः *यह व्रत रखकर रात्रि में गीता पाठ पढ़ने या गीता प्रवचन सुनने और मंत्र जाप करते हुए जागरण करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होकर मोक्ष तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है.*
श्रीमद् भगवद्गीता माहात्म्य
*जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर नित्य एक अध्याय का भी पाठ करता है, वह रुद्रलोक को प्राप्त होता है और वहाँ शिवजी का गण बनकर चिरकाल तक निवास करता है .  . 
* जो मनुष्य गीता के दस, सात, पाँच, चार, तीन, दो, एक या आधे श्लोक का पाठ करता है वह अवश्य दस हजार वर्ष तक चन्द्रलोक को प्राप्त होता है . गीता के पाठ में लगे हुए मनुष्य की अगर मृत्यु होती है तो वह (पशु आदि की अधम योनियों में न जाकर) पुनः मनुष्य जन्म पाता है . 
* जो पुरुष इस पवित्र गीताशास्त्र को सावधान होकर पढ़ता है वह भय, शोक आदि से रहित होकर श्रीविष्णुपद को प्राप्त होता है . 
 *अकाल मृत्यु घर में न हो, जल्दी-जल्दी किसी की मृत्यु न हो उसके लिए घर में अमावस्या के दिन गीता का सातवां अध्याय पढना चाहिये | पाठ पूरा हो जाय तो सूर्य भगवान को अर्घ्य देना चाहिये कि हमारे घर में सबकी लंबी आयु हो और जो पहले गुजर गये है  . 
..हे भगवान उनकी आत्मा को शांति दे
और आज के गीता पाठ का पुण्य भी उनको पहुँचे | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय करके वो जल चढ़ा दे . 
*और हो सके तो ....भगवान ने पैसा दिया हो थोडा बहुत तो  अमावस्या को गरीब बच्चों – बच्चीयों को चार–पाँच बच्चों को खाना देकर आये सब्जी-रोटी थोडा कुछ मीठा हलवा बना ले थोडा-सा गरीब बच्चों को दे आये | सेवा भी हो जायेगी और जो गुजर गये है वो हम पर राजी हो जायेंगे. 
 *जो भगवान श्री कृष्ण की असीम कृपा और दिव्य ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें गीता का पाठ श्रवण या पठन जरूर करना चाहिए*

*धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. इसलिए प्रतिवर्ष इस तिथि को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है. गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाई जाती है.*
 *गीता दुनिया के उन चंद ग्रंथों में शुमार है, जो आज भी सबसे ज्यादा पढ़े जा रहे हैं और जीवन के हर पहलू को गीता से जोड़कर व्याख्या की जा रही है. इसके 18 अध्यायों के करीब 700 श्लोकों में हर उस समस्या का समाधान है जो कभी ना कभी हर इंसान के सामने आती है. आज हम आपको इस लेख में गीता के 9 चुनिंदा प्रबंधन सूत्रों से रूबरू करवा रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-*
*1 : श्लोक*
*कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.*
*मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ..*
*अर्थ- भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन. कर्म करने में तेरा अधिकार है. उसके फलों के विषय में मत सोच. इसलिए तू कर्मों के फल का हेतु मत हो और कर्म न करने के विषय में भी तू आग्रह न कर.*
 *मैनेजमेंट सूत्र- भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक के माध्यम से अर्जुन से कहना चाहते हैं कि मनुष्य को बिना फल की इच्छा से अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा व ईमानदारी से करना चाहिए. यदि कर्म करते समय फल की इच्छा मन में होगी तो आप पूर्ण निष्ठा से साथ वह कर्म नहीं कर पाओगे. निष्काम कर्म ही सर्वश्रेष्ठ परिणाम देता है. इसलिए बिना किसी फल की इच्छा से मन लगाकर अपना काम करते रहो. फल देना, न देना व कितना देना ये सभी बातें परमात्मा पर छोड़ दो क्योंकि परमात्मा ही सभी का पालनकर्ता है.*
 *2 : श्लोक*
*योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय.* 
*सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते..*
 *अर्थ- हे धनंजय (अर्जुन). कर्म न करने का आग्रह त्यागकर, यश-अपयश के विषय में समबुद्धि होकर योग युक्त होकर, कर्म कर, (क्योंकि) समत्व को ही योग कहते हैं.*
*मैनेजमेंट सूत्र- धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य. धर्म के नाम पर हम अक्सर सिर्फ कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ-मंदिरों तक सीमित रह जाते हैं. हमारे ग्रंथों ने कर्तव्य को ही धर्म कहा है. भगवान कहते हैं कि अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी यश-अपयश और हानि-लाभ का विचार नहीं करना चाहिए. बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य यानी धर्म पर टिकाकर काम करना चाहिए. इससे परिणाम बेहतर मिलेंगे और मन में शांति का वास होगा. मन में शांति होगी तो परमात्मा से आपका योग आसानी से होगा. आज का युवा अपने कर्तव्यों में फायदे और नुकसान का नापतौल पहले करता है, फिर उस कर्तव्य को पूरा करने के बारे में सोचता है. उस काम से तात्कालिक नुकसान देखने पर कई बार उसे टाल देते हैं और बाद में उससे ज्यादा हानि उठाते हैं.*
3 : श्लोक*
*नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना.*
*न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्.*
 *अर्थ- योग रहित पुरुष में निश्चय करने की बुद्धि नहीं होती और उसके मन में भावना भी नहीं होती. ऐसे भावना रहित पुरुष को शांति नहीं मिलती और जिसे शांति नहीं, उसे सुख कहां से मिलेगा.*
*मैनेजमेंट सूत्र - हर मनुष्य की इच्छा होती है कि उसे सुख प्राप्त हो, इसके लिए वह भटकता रहता है, लेकिन सुख का मूल तो उसके अपने मन में स्थित होता है. जिस मनुष्य का मन इंद्रियों यानी धन, वासना, आलस्य आदि में लिप्त है, उसके मन में भावना (आत्मज्ञान) नहीं होती. और जिस मनुष्य के मन में भावना नहीं होती, उसे किसी भी प्रकार से शांति नहीं मिलती और जिसके मन में शांति न हो, उसे सुख कहां से प्राप्त होगा. अत: : सुख प्राप्त करने के लिए मन पर नियंत्रण होना बहुत आवश्यक है.*

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-