साल 2030 तक भारत के क्लीन एनर्जी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सरकार को ऑफ़शोर विंड एनर्जी, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (ईवी) और ग्रीन हाइड्रोजन (जीएच2) जैसे क्षेत्रों में मदद बढ़ानी होगी. यह बात एक नई रिपोर्ट में सामने आई है.
क्या कहती है रिपोर्ट?
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नॉलॉजी एंड पॉलिसी (सीएसटीईपी) और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत सोलर पीवी और बैट्री एनर्जी स्टोरेज (बीईएसएस) के लक्ष्यों को बिना अतिरिक्त सरकारी वित्तीय मदद के पूरा कर सकता है. लेकिन ऑफ़शोर विंड एनर्जी और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में सरकारी निवेश बढ़ाने की ज़रूरत है.
आईआईएसडी की पॉलिसी एडवाइज़र और रिपोर्ट की सह-लेखिका स्वाति रायजादा ने कहा, “भारत की क्लीन एनर्जी महत्वाकांक्षा प्रेरणादायक है. लेकिन इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए साहसिक नीतियों और निवेश की आवश्यकता है. खासकर ऑफ़शोर विंड एनर्जी और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में सतत सरकारी सहयोग ज़रूरी है.”
ऑफ़शोर विंड एनर्जी: बड़ा निवेश, बड़े अवसर
भारत की 71 गीगावाट ऑफ़शोर विंड एनर्जी क्षमता का पूरा लाभ उठाने के लिए लगभग ₹9000 करोड़ प्रति गीगावाट का अतिरिक्त सरकारी सहयोग चाहिए. यह मदद न केवल इस क्षेत्र को परंपरागत एनर्जी स्रोतों के बराबर लाएगी, बल्कि इसे भविष्य में प्राइवेट इन्वेस्टमेंट आकर्षित करने में भी सक्षम बनाएगी.
ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स: भविष्य की ज़रूरतें
साल 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन के लिए ₹2.8 लाख करोड़ और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के लिए ₹19,000 करोड़ की अतिरिक्त सरकारी मदद की आवश्यकता है. यह निवेश न केवल एनर्जी सिक्योरिटी को मज़बूत करेगा, बल्कि एयर पॉल्यूशन और ग्रीनहाउस गैस एमिशन में भी कमी लाएगा.
सरकार की भूमिका
रिपोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि छोटे लेकिन त्वरित सरकारी निवेश से प्राइवेट सेक्टर को प्रोत्साहन मिलेगा. इसके साथ ही दीर्घकालिक आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ भी सुनिश्चित होंगे.
अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को होगा फायदा
क्लीन एनर्जी लक्ष्यों को हासिल करने से न केवल रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे, बल्कि ग्रीनहाउस गैस एमिशन और एयर पॉल्यूशन में भी कमी आएगी. रायजादा ने कहा, “एनर्जी सेक्टर में समय पर किया गया निवेश भारत की ग्लोबल कॉम्पिटिटिवनेस और दीर्घकालिक स्थिरता को मज़बूत करेगा.”
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सोलर पीवी और बैट्री एनर्जी स्टोरेज के लिए मौजूदा सरकारी सहायता पर्याप्त है. लेकिन ऑफ़शोर विंड एनर्जी और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में अब से ही निवेश करना ज़रूरी है ताकि इनकी लागत को कम किया जा सके और इन्हें अधिक किफायती बनाया जा सके.
निष्कर्ष
क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में भारत के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए न केवल साहसिक नीतियों और वित्तीय मदद की आवश्यकता है, बल्कि इनकी तत्काल शुरुआत भी जरूरी है. यह कदम देश के आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.