भीष्माष्टमी का व्रत पितृदोष से मुक्ति और संतान प्राप्ति के लिए बहुत महत्व रखता

भीष्माष्टमी का व्रत पितृदोष से मुक्ति और संतान प्राप्ति के लिए बहुत महत्व रखता

प्रेषित समय :19:06:11 PM / Mon, Feb 3rd, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्माष्टमी व्रत किया जाता है. इस दिन भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्याग था. भीष्म अष्टमी के दिन तिल, जल और कुश से भीष्म पितामह के निमित्त तर्पण किया जाता है. जिससे मनुष्य के सभी पापों का विनाश हो होता है, पितृदोष से मुक्ति मिलती है और सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है.
इसके प्रभाव से मनुष्य मोक्ष को प्राप्त होता है. भीष्म पितामह ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया और महाभारत की गाथा में भीष्म पितामह का सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे.
भीष्म पितामह का मूल नाम देवव्रत था. यह हस्तिनापुर के राजा शांतनु के पुत्र थे और इनकी माता गंगा था. शांतनु ने गंगा से विवाह किया ,परंतु गंगा ने शांतनु के सामने विवाह से पूर्व एक शर्त रखी और कहा कि वह कुछ भी करें शांतनु उन्हें नहीं रोकेंगे और ना ही कुछ पूछेंगे, अगर उन्होंने ऐसा करा तो वह शांतनु को छोड़कर हमेशा के लिए चली जाएंगी.
हस्तिनापुर नरेश शांतनु ने गंगा की शर्त को मंजूर कर लिया. विवाह के पश्चात गंगा ने एक पुत्र को जन्म दिया परंतु जन्म लेने के तुरंत बाद ही गंगा ने अपने पुत्र को जल में डुबो दिया. इस प्रकार गंगा के सात पुत्र हुए और उन्होंने सातो पुत्रों को जल में डुबो दिया.
शांतनु यह सब देख ना पाए और जब उनके आठवां पुत्र हुआ और गंगा आठवा पुत्र जल में डूबोने के लिए ले जाने लगी, तो शांतनु ने उन्हें रोक दिया और पूछा कि आखिर तुम ऐसा क्यों कर रही हो. अपने ही पुत्रों को जल में डुबो रही हो ,तुम कैसी माता हो.
गंगा ने कहा शर्त के अनुसार आपने मुझे वचन दिया था कि आप ना मुझसे कुछ पूछेंगे और ना ही मुझे कुछ करने से रोकेंगे ,परंतु आपने यह वचन तोड़ दिया. लेकिन मैं जाने से पहले आपको बताऊंगी कि आपके यह पुत्र वसु थे और उन्होंने श्राप के कारण मृत्यु लोक में जन्म लिया, जिन्हें मैंने मुक्ति दिलाई. परंतु इस वस्तु आठवें वसु के भाग्य में अभी दुख भोगना लिखा है.
आपने मुझे रोका इसलिए मैं जा रही हूं और अपने पुत्र को भी अपने साथ ले जाऊंगी. इसका लालन -पालन करके इस पुत्र को आपको सौंप दूंगी. गंगा और शांतनु का यही आठवां पुत्र देवव्रत के नाम से विख्यात हुआ.
प्रारंभिक शिक्षा पूरी कराने के पश्चात गंगा ने देवव्रत को महाराज शांतनु को वापस लौटा दिया. शांतनु ने देवव्रत को हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया.
कुछ समय पश्चात महाराज शांतनु सत्यवती नामक एक युवती पर मोहित हो गए और उन्होंने सत्यवती से विवाह करने की इच्छा प्रकट करी. परंतु सत्यवती के पिता ने शांतनु से वचन मांगा की सत्यवती का जेष्ठ पुत्र हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी होगा.
शांतनु ने सत्यवती के पिता को ऐसा कोई भी वचन ना दिया और अपने महल वापस आ गए अपने पिता को चुपचाप और परेशान देखा तो देवव्रत ने इस बात का पता लगाने की कोशिश करी आखिर क्या बात है, जो उनके पिता को इस प्रकार बेचैन कर रही है.
जब देवव्रत को इस बात का ज्ञात हुआ कि उनके पिता सत्यवती नामक कन्या से विवाह करना चाहते हैं और सत्यवती के पिता ने महाराज शांतनु के आगे वचन रखा है. तो देवव्रत ने अपने हाथ में जल लेकर यह प्रतिज्ञा की कि वह आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे.
उनकी इस प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा कहा गया और देवव्रत भीष्म के नाम से जाने गए. देवव्रत की इस प्रतिज्ञा से प्रसन्न होकर महाराज शांतनु ने देवव्रत को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया. भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने और गद्दी न लेने का वचन दिया और सत्यवती के दोनों पुत्रों को राज्य देकर उनकी बराबर रक्षा करते रहे.
महाभारत युद्ध में वह कौरवों के सेनापति बने और महाभारत के दसवें दिन शिखंडी को सामने कर अर्जुन ने बाणों से भीष्म पितामह का शरीर छेद डाला.
भीष्म पितामह बाणों की शैया पर 58 दिन रहे. परंतु भीष्म पितामह ने उस समय मृत्यु को नहीं अपनाया क्योंकि उस वक्त सूर्य दक्षिणायन था तब उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की जैसे ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश हुआ और उत्तरायण हो गया अर्जुन के बाण से निकली गंगा की धार का पान कर भीष्म पितामह ने अपने प्राणों का त्याग करा और मोक्ष को प्राप्त हुए. इसलिए इस दिन को भीष्म अष्टमी के नाम से जाना गया है.
माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म पितामह का तर्पण किया जाता है. मृत आत्माओं की शांति के लिए इस दिन पूजा करनी चाहिए क्योंकि यह दिन उत्तम बताया गया है, जिससे पितृ दोष समाप्त हो जाते हैं.
 है इस दिन पवित्र नदी में स्नान ,दान करने से पुण्य प्राप्त होता है. इस दिन जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए.

Sai ram blessing  

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-