बसोड़ा पूजन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी या लोकाचार में होली के बाद पड़ने वाले सोमवार, गुरुवार, शुक्रवार को भी पूजन का विधान है. परन्तु रविवार, मंगलवार, शनिवार भूलकर भी नहीं करें. पूजन से पहले दिन ही रात्रि को मीठी पुरी, चावल, बाजरा,दाल कचौरी, भिगी हुई मोठ, दही जमा दिया जाता है. चना दाल भिगो देते हैं. शीतला माता के मंदिर जाकर चोराहे पर थाली में निकाली गई सभी वस्तुओं को वहां चढाकर हल्दी का टीका देकर दही चने की भीगी दाल रखने के बाद जल के लोटे से जल हाथ में लेकर शितला माता को अर्पित करते हैं.
साथ गये बच्चों की धोक (ढोक ) लगवा कर लाते हैं. शीतला माता की सवारी गर्दभ (गधे ) की है तो कोई गदहा हो तो भिगोई गई चने की दाल उसे खिला देते हैं, तथा श्वास (कुत्ते ) को कुछ भोजन दे देते है, तत्पश्चात घर आकर बड़ी बुढ़ी (वृद्धा माँ ) को भोजन वस्त्र दक्षिणा भेंट करें, छोटे बच्चों को भोजन परोसे. इस दिन गर्म भोजन नहीं खाया जाता है.*
*जहां चौराहे पर शीतला माता नहीं है या आप फ्लैट सोसाइटी कल्चर में रहते हैं तो पांचों उंगलियों को देसी घी से भिगोकर दीवार पर छाप बना कर पुजन करले . ये ठंडी माता है तो इनको जलता दीपक नहीं रखते आप चाहे तो बिना जला ठंडा दीपक रख दे.