जन्म कुंडली मै यात्रा कैसे देखे और भाव से भाव का फल

जन्म कुंडली मै यात्रा कैसे देखे और भाव से भाव का फल

प्रेषित समय :18:18:55 PM / Sat, Dec 21st, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जन्म कुण्डली में दैनिक छोटी यात्राएं तीसरे भाव से और लंबी यात्राएं या धार्मिक यात्राएं नवें भाव से देखते हैं. इन भावों में चर राशि (मेष, कर्क, तुला और मकर) हो तो व्यक्ति सामान्य तौर पर यात्राएं करता रहता है.
तीसरे भाव का संबंध यदि लग्न और दसवें भाव से हो तो व्यक्ति अपने दैनिक रोजमर्रा के कार्यों के लिए अथवा व्यवसाय के लिए यात्राएं करता रहता है, जैसे- नौकरी के लिए अप-डाउन करना या ट्यूरिंग जॉब करना.
यदि नवें भाव का सम्बंध लग्न और 12 वें भाव से हो तो व्यक्ति लंबी दूरी की यात्राएं अथवा विदेश यात्राएं करता है. इन यात्राओं का उद्देश्य धार्मिक, उच्च शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय अथवा घूमने के लिए भी हो सकता है.
यात्रा की प्रकृति, उस भाव में स्थित राशि, उसके स्वामी ग्रह, भाव में स्थित ग्रह, भाव के कारक ग्रह और उन ग्रहों का संबंध यात्रा सूचक भावों से देखी जाती है. जन्म कुंडली में ग्रह और भाव का सम्बंध चार प्रकार से देखा जाता है. विदेश यात्रा या धार्मिक यात्रा, सम्बंधित ग्रह की दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा पर भी निर्भर करती है.
जन्म कुंडली का प्रथम भाव (लग्न) स्वयं का भाव होता है और उससे चतुर्थ भाव, स्वयं के घर या निवास स्थान का भाव होता है. दसवां भाव कार्य की प्रकृति और उसके स्थान का कारक भाव होता है. किसी भी भाव से, उसका बारहवां भाव, उस भाव से संबंधित विषयों की हानि करता है. जैसे, लग्न से बारहवां भाव (द्वादश भाव) लग्न की हानि करेगा अर्थात् कुछ कष्ट होगा. चतुर्थ से 12 वां भाव (तृतीय भाव) निवास स्थान से दूर करेगा. दशम भाव का बारहवां भाव (नवम भाध) कार्य स्थान को बदलेगा. नवम भाव धर्म और भाग्य का भाव भी है, इसलिए इसे धर्म और लंबी यात्राओं का कारक भी माना जाता है. इसीलिए सामान्य तौर पर 1,3,9,12 भावों का सम्बन्ध यात्रा से जोड़ा गया है.
ज्योतिष में भाव और उसके स्वामी ग्रहों में सम्बंध चार प्रकार के होते हैं:-
1 भावों में स्थित ग्रहों के बीच आपस में उनकी राशियों का परिवर्तन होना. अर्थात् ग्रहों का एक दूसरे की स्वामित्व वाली राशि में स्थित होना.
2 भावों में स्थित ग्रहों के बीच आपस में दृष्टि सम्बंध होना. अर्थात् दो ग्रहों का आपस में एक दूसरे से दृष्टि संबंध स्थापित होना.
3 एक ग्रह किसी दूसरे ग्रह की राशि में स्थित हो और उस राशि का स्वामी ग्रह अपनी राशि में स्थित उस ग्रह को देखें.
4 दो ग्रहों का एक साथ किसी भी राशि में स्थित होना. अर्थात् उनमें युति सम्बंध स्थापित होना.
उपरोक्त संबंधों के अलावा कृष्णामूर्ति पद्धति में (केपी पद्धति) ग्रहों की राशि के अलावा ग्रहों के नक्षत्र और उस नक्षत्र के उपनक्षत्रों का भी संबंध देखा जाता है, क्योंकि इस पद्धति के मूल सिद्धांत के अनुसार ग्रह अपने नक्षत्रों का भी फल देते हैं. ग्रहों के फल की शुभता या अशुभता, उस ग्रह के उप नक्षत्र पर निर्भर करती है.
दो शुभ ग्रहों (पूर्ण चंद्रमा, अशुभ प्रभाव से रहित बुध, गुरु और शुक्र) का आपसी संबंध फल की शुभता को बढ़ा देते हैं. दो अशुभ ग्रहों (क्षीण चंद्रमा, अशुभ प्रभाव युक्त बुध, मंगल, शनि, राहू और केतु) का आपसी संबंध फल की अशुभता को बढ़ा देते हैं. शुभ और अशुभ ग्रहों का सम्बंध मध्यम फलदायक होता है. ग्रहों की प्रकृति और उनकी महादशा और अंतर्दशा की शुभता के विस्तृत अध्ययन के लिए "लघु पाराशरी" नामक ग्रंथ का अध्ययन करना चाहिए.
व्यक्ति के जीवन में चल रही वर्तमान महादशा और अंतर्दशा के स्वामी ग्रहों का सम्बंध लग्न और जिस यात्रा भाव से बनता है, उसी भाव के कारक विषय के अनुसार यात्रा की प्रकृति होती है. जैसे यदि लग्न का सम्बंध नवम भाव और द्वादश भाव से हो तो लंबी यात्रा या विदेश यात्रा होती है. यदि लग्न का सम्बंध तृतीय भाव और दशम भाव से हो तो घर के नजदीक स्थानांतरण होता है. यदि लग्न का सम्बंध तृतीय भाव या दशम भाव और द्वादश भाव से हो तो घर से दूर स्थानांतरण होता है. यदि लग्न का सम्बंध नवम भाव और द्वादश भाव से हो तो उच्च शिक्षा के लिए विदेश यात्रा हो सकती है. यदि लग्न का सम्बंध नवम या 12वें भाव के साथ चतुर्थ स्थान से हो तो व्यक्ति स्थानांतरण या यात्रा से वापस घर लौट आता है. यात्रा का निर्धारण जन्म कुंडली अथवा प्रश्न कुंडली दोनों से किया जा सकता है.

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-