अभिमनोज
राजस्थान हाईकोर्ट ने संविदाकर्मी महिला को छह माह की मैटरनिटी लीव नहीं देने को गलत माना है. जस्टिस अनूप ढंड की अदालत ने महिला संविदाकर्मी को राहत देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह संविदाकर्मी के बकाया मैटरनिटी लीव के चार महीने का वेतन उसे प्रदान करे.
खबरों की मानें तो.... राजस्थान हाईकोर्ट का कहना है कि- बच्चे की मां, मां होती है, फिर चाहे वह नियमित आधार पर कार्यरत हो या फिर संविदा के आधार पर, संविदा कर्मचारियों के नवजात शिशुओं को भी नियमित कर्मचारियों के बच्चों के समान जीवन का अधिकार है, इस निर्णय के साथ ही अदालत ने दो माह का मातृत्व अवकाश लेने वाली संविदा कर्मचारी को राहत प्रदान करते हुए कहा कि- संविदा कर्मचारी को 180 दिन का मातृत्व अवकाश न देकर उसके अधिकारों का हनन किया गया है.
खबरों पर भरोसा करें तो.... अदालत का कहना है कि- समय गुजर जाने की वजह से याचिकाकर्ता को बढ़ी हुई मातृत्व अवकाश की अवधि का अवकाश तो देना संभव नहीं है, लेकिन शेष अवधि के लिए उसे 9 प्रतिशत ब्याज सहित अतिरिक्त वेतन अदा किया जाए.
उल्लेखनीय है कि.... याचिकाकर्ता वर्ष 2003 में नर्स ग्रेड द्वितीय के पद पर संविदा पर नियुक्त हुई थी, जिसने वर्ष 2008 में एक लड़की को जन्म दिया और विभाग में आवेदन कर छह माह का मातृत्व अवकाश मांगा, जवाब में विभाग ने यह कहते हुए उसका दो माह का अवकाश ही स्वीकृत किया कि- वित्त विभाग के 6 नवंबर, 2007 के परिपत्र के अनुसार संविदा कर्मचारी दो माह के मातृत्व अवकाश की ही अधिकारी हैं.
इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि- वित्त विभाग ने नियम में संशोधन कर संविदाकर्मी को भी नियमित कर्मचारी के समान 180 दिन के मातृत्व अवकाश का हकदार माना है, लिहाजा एक बार नियम में संशोधन होने पर प्रदेश सरकार संविदा कर्मचारियों के साथ भेदभाव नहीं कर सकती, इस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने याचिकाकर्ता को शेष अवधि का वेतन ब्याज सहित अदा करने को कहा है!
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-