ज्योतिष के अनुसार केतु व्यक्ति के जीवन-क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को प्रभावित करता

ज्योतिष के अनुसार केतु व्यक्ति के जीवन-क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को प्रभावित करता

प्रेषित समय :20:26:53 PM / Thu, Mar 27th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

केतु भारतीय ज्योतिष में राहु ग्रह के सिर का धड़ है. यह सिर समुद्र मन्थन के समय मोहिनी अवतार रूपी भगवान विष्णु ने काट दिया था. यह एक छाया ग्रह है. माना जाता है कि इसका मानव जीवन एवं पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव रहता है. केतु को प्राय: सिर पर कोई रत्न या तारा लिये हुए दिखाया जाता है, जिससे रहस्यमयी प्रकाश निकल रहा होता है.
केतु की स्थिति 
भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु, सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक हैं जो पृथ्वी के सपेक्ष एक दूसरे के उलटी दिशा में (180 डिग्री पर) स्थित रहते हैं. चूंकि ये ग्रह कोई खगोलीय पिंड नहीं हैं, इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है. सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के कारण ही राहु और केतु की स्थिति भी साथ-साथ बदलती रहती है.
ज्योतिष में केतु अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं प्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक है. केतु विष्णु के मत्स्य अवतार से संबंधित है. केतु, भौतिकीकरण के शोधन के आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है और हानिकर और लाभदायक, दोनों ही माना जाता है, क्योंकि ये जहां एक ओर दु:ख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना सकता है. यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोडऩे के लिये भौतिक हानि तक करा सकता है. यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है.
माना जाता है कि केतु, सर्पदंश या अन्य रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है. ये अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है. मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है. ज्योतिष गणनाओं के लिए केतु को तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानते हैं. केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह है तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है. यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्र. यही केतु जन्म कुण्डली में राहु के साथ मिलकर कालसर्प योग की स्थिति बनाता है. केतु को सूर्य व चंद्र का शत्रु कहा गया हैं. केतु, मंगल ग्रह की तरह प्रभाव डालता है. केतु वृश्चिक व धनु राशि में उच्च का और वृष व मिथुन में नीच का होता है. 
 मत्स्य पुराण के अनुसार केतु बहुत-से हैं, उनमें धूमकेतु प्रधान है. भारतीय-ज्योतिष के अनुसार यह छायाग्रह है. व्यक्ति के जीवन-क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को यह प्रभावित करता है. ज्योतिष के अनुसार राहु की अपेक्षा केतु विशेष सौम्य तथा व्यक्ति के लिये हितकारी है. कुछ विशेष परिस्थितियों में यह व्यक्ति को यश के शिखर पर पहुँचा देता है. 
यद्यपि राहु-केतु का मूल शरीर एक था और वह दानव-जाति का था. परन्तु ग्रहों में परिगणित होने के पश्चात उनका पुनर्जन्म मानकर उनके नये गोत्र घोषित किये गये. इस आधार पर राहु पैठीनस-गोत्र तथा केतु जैमिनि-गोत्र का सदस्य माना गया. 
कुण्डली में केतु 
जन्म कुंडली में लग्न, षष्ठम, अष्ठम और एकादश भाव में केतु की स्थिति को शुभ नहीं माना गया है. इसके कारण जातक के जीवन में अशुभ प्रभाव ही देखने को मिलते हैं. जन्मकुंडली में केतु यदि केंद्र-त्रिकोण में उनके स्वामियों के साथ बैठे हों या उनके साथ शुभ दृष्टि में हों तो योगकारक बन जाते हैं. ऐसी स्थिति में ये अपने शुभ परिणाम जैसे लंबी आयु, धन, भौतिक सुख आदि देते हैं.
केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं. 
जातक की जन्म-कुण्डली में विभिन्न भावों में केतु की उपस्थिति भिन्न-भिन्न प्रभाव दिखाती हैं.
* प्रथम भाव में अर्थात लग्न में केतु हो तो जातक चंचल, भीरू, दुराचारी होता है. इसके साथ ही यदि वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, धनी एवं परिश्रमी होता है.
* द्वितीय भाव में हो तो जातक राजभीरू एवं विरोधी होता है.
*तृतीय भाव में केतु हो तो जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है.
* चतुर्थ भाव में हो तो जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है.
* पंचम भाव में हो तो वह कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है.
* षष्टम भाव में हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है.
* सप्तम भाव में हो तो जातक मंदमति, शत्रु से डरने वाला एवं सुखहीन होता है.
* अष्टम भाव में हो तो वह दुर्बुद्धि, तेजहीन, स्त्री द्वेषी एवं चालाक होता है.
* नवम भाव में हो तो सुखभिलाषी, अपयशी होता है.
* दशम भाव में हो तो पितृद्वेषी, भाग्यहीन होता है.
* एकादश भाव में केतु हर प्रकार का लाभदायक होता है. इस प्रकार का जातक भाग्यवान, विद्वान, उत्तम गुणों वाला, तेजस्वी किन्तु रोग से पीडि़त रहता है.
* द्वादश भाव में केतु हो तो जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की स्वभाव होता है.
केतु के अन्य ग्रहों से युति के प्रभाव

* सूर्य जब केतु के साथ होता है तो जातक के व्यवसाय, पिता की सेहत, मान-प्रतिष्ठा, आयु, सुख आदि पर बुरा प्रभाव डालता है.
* चंद्र यदि केतु के साथ हो और उस पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति मानसिक रोग, वातरोग, पागलपन आदि का शिकार होता है.
* वृश्चिक लग्न में यह योग जातक को अत्यधिक धार्मिक बना देता है.
* मंगल केतु के साथ हो तो जातक को हिंसक बना देता है. इस योग से प्रभावित जातक अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते और कभी-कभी तो कातिल भी बन जाते हैं.
* बुध केतु के साथ हो तो व्यक्ति लाइलाज बीमारी ग्रस्त होता है. यह योग उसे पागल, सनकी, चालाक, कपटी या चोर बना देता है. वह धर्म विरुद्ध आचरण करता है.
* केतु गुरु के साथ हो तो गुरु के सात्विक गुणों को समाप्त कर देता है और जातक को परंपरा विरोधी बनाता है. यह योग यदि किसी शुभ भाव में हो तो जातक ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखता है.
* शुक्र केतु के साथ हो तो जातक दूसरों की स्त्रियों या पर पुरुष के प्रति आकर्षित होता है.
* शनि केतु के साथ हो तो आत्महत्या तक कराता है. ऐसा जातक आतंकवादी प्रवृति का होता है. अगर बृहस्पति की दृष्टि हो तो अच्छा योगी होता है.
* किसी स्त्री के जन्म लग्न या नवांश लग्न में केतु हो तो उसके बच्चे का जन्म आपरेशन से होता है. इस योग में अगर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो कष्ट कम होता है.
* भतीजे एवं भांजे का दिल दुखाने एवं उनका हक छीनने पर केतु अशुभ फल देता है. कुत्ते को मारने एवं किसी के द्वारा मरवाने पर, किसी भी मंदिर को तोडऩे अथवा ध्वजा नष्ट करने पर इसी के साथ ज्यादा कंजूसी करने पर केतु अशुभ फल देता है. किसी से धोखा करने व झूठी गवाही देने पर भी केतु अशुभ फल देते हैं.
अत: मनुष्य को अपना जीवन व्यवस्थित जीना चाहिए. किसी को कष्ट या छल-कपट द्वारा अपनी रोजी नहीं चलानी चाहिए. किसी भी प्राणी को अपने अधीन नहीं समझना चाहिए जिससे ग्रहों के अशुभ कष्ट सहना पड़े.
केतु का सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव:
गुरु के साथ नकारात्मक केतु अपंगता का इशारा करता है, उसी तरह से सकारात्मक केतु साधन सहित और जिम्मेदारी वाली जगह पर स्थापित होना कहता है, मीन का केतु उच्च का माना जाता है और कन्या का केतु नकारात्मक कहा जाता है, मीन राशि गुरु की राशि है और कन्या राशि बुध की राशि है. गुरु ज्ञान से सम्बन्ध रखता है और बुध जुबान से, ज्ञान और जुबान में बहुत अन्तर है. इसी के साथ अगर शनि के साथ केतु है तो काला कुत्ता कहा जाता है, शनि ठंडा भी है और अन्धकार युक्त भी है, गुरु अगर गर्मी का एहसास करवा दे तो ठंडक भी गर्मी में बदल जाती है, चन्द्र केतु के साथ गुरु की मेहरबानी प्राप्त करने के लिये जातक को धर्म कर्म पर विश्वास करना जरूरी होता है, सबसे पहले वह अपने परिवार के गुरु यानी पिता की महरबानी प्राप्त करे, फिर वह अपने कुल के पुरोहित की मेहरबानी प्राप्त करे, या फिर वह अपने शरीर में विद्यमान दिमाग नामक गुरु की मेहरबानी प्राप्त करे.
मंगल एवं केतु में समानता
मंगल व केतु दोनों ही जोशीले ग्रह हैं, लेकिन इनका जोश अधिक समय तक नहीं रहता है. दूध की उबाल की तरह इनका जोश जितनी चल्दी आसमान छूने लगता है उतनी ही जल्दी वह ठंडा भी हो जाता है. इसलिए, इनसे प्रभावित व्यक्ति अधिक समय तक किसी मुद्दे पर डटे नहीं रहते हैं, जल्दी ही उनके अंदर का उत्साह कम हो जाता है और मुद्दे से हट जाते हैं. मंगल एवं केतु का यह गुण है कि इन्हें सत्ता सुख काफी पसंद होता है. ये राजनीति में एवं सरकारी मामलों में काफी उन्नति करते हैं. शासित होने की बजाय शासन करना इन्हें रूचिकर लगता है. मंगल एवं केतु दोनों को कष्टकारी, हिंसक, एवं कठोर हृदय वाला ग्रह कहा जाता है. परंतु, ये दोनों ही ग्रह जब देने पर आते हैं तो उदारता की पराकष्ठा दिखाने लगते हैं यानी मान-सम्मान, धन-दौलत से घर भर देते हैं.

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-