नौ दिवसीय चैत्र नवरात्र शुरू, कलश स्थापना मुहूर्त सुबह 6 बजकर 12 मिनट से सुबह 7 बजकर 55 मिनट तक

नौ दिवसीय चैत्र नवरात्र शुरू, कलश स्थापना मुहूर्त सुबह 6 बजकर 12 मिनट से सुबह 7 बजकर 55 मिनट तक

प्रेषित समय :20:09:21 PM / Sat, Mar 29th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

चैत्र नवरात्र यानि वासन्तिक नवरात्र 30 मार्च से प्रारंभ हो रहे हैं और 6 अप्रैल तक चलेंगे. नवरात्रों का यह त्योहार हमारे भारतवर्ष में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसका जिक्र पुराणों में भी अच्छे से मिलता है. वैसे तो पुराणों में एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्रों का जिक्र किया गया है, लेकिन चैत्र और आश्विन महीने के नवरात्रों को ही प्रमुखता से मनाया जाता है. बाकी दो नवरात्रों को तंत्र-मंत्र की साधना हेतु करने का विधान है. इसलिए इनका आम लोगों के जीवन में कोई महत्व नहीं है. महाशक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र के दौरान देवी दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों- पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पाँचवाँ स्कंदमाता, छठा कात्यायनी, सांतवा कालरात्रि, आँठवा महागौरी और नौवां  सिद्धिदात्री देवी की पूजा-अर्चना की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा की संज्ञा दी गई है.

नवरात्र के आखिरी दिन कन्याओं को भोजन कराया जाता है व व्रत तोड़ा जाता है. यह हमारी भारतीय संस्कृति का ऐसा त्योहार है जो नारी की महत्ता को, उसकी शक्ति को दर्शाता. नारी वह शक्ति है जो अपने अंदर असीम ऊर्जा को समाये हुये है, जिसके बिना मनुष्य की संरचना, पोषण, रक्षा और आनंद की कल्पना नहीं की जा सकती और नवरात्र में हम उसी नारी शक्ति को देवी मां के रूप में पूजते हैं. चैत्र में आने वाले नवरात्र में कुल देवी-देवताओं की पूजा का भी विशेष प्रावधान बताया गया है. नवरात्र के अंतिम दिन भगवान श्री राम का जन्म होने के कारण नौवें दिन को राम नवमी के नाम से जाना जाता है.

एक बार फिर से याद दिला दूं कि- ये नौ दिवसीय चैत्र नवरात्र आज से शुरू होकर 6 अप्रैल तक चलेंगे. 30 तारीख को पहला दिन है और नवरात्र के पहले दिन देवी मां के निमित्त कलश स्थापना की जाती है. लिहाजा आज कलश स्थापना का सही समय क्या होगा, उसकी सही विधि क्या होगी और आज नवरात्र के पहले दिन देवी दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की उपासना कैसे की जायेगी, आगे हम इस सबकी चर्चा करेंगे.

कलश स्थापना मुहूर्त और विधि

30 मार्च को  कलश स्थापना का सही समय सुबह 6 बजकर 12 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 55 मिनट तक रहेगा.  अब बात करते है कलश स्थापना विधि की- आज सबसे पहले घर के ईशान कोण, यानि उत्तर-पूर्व दिशा के हिस्से की अच्छे से साफ-सफाई करके, वहां पर जल छिड़कर साफ मिट्टी या बालू बिछानी चाहिए. फिर उस साफ मिट्टी या बालू पर जौ की परत बिछानी चाहिए. उसके ऊपर पुनः साफ मिट्टी या बालू की परत बिछानी चाहिए और उसका जलावशोषण करना चाहिए.

जलावशोषण का मतलब है कि उस मिट्टी की परत के ऊपर जल छिड़कना चाहिए. अब उसके ऊपर मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करनी चाहिए. कलश को अच्छे से साफ, शुद्ध जल से भरना चाहिए और उस कलश में एक सिक्का डालना चाहिए. अगर संभव हो तो कलश के जल में पवित्र नदियों का जल भी जरूर मिलाना चाहिए. इसके बाद कलश के मुख पर अपना दाहिना हाथ रखकर–

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती.
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

ये मंत्र पढ़ें और अगर मंत्र न बोल पायें तो या ध्यान न रहे तो बिना मंत्र के ही गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु और कावेरी, पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए उन नदियों के जल का आह्वाहन उस कलश में करना चाहिए और ऐसा भाव करना चाहिए कि सभी नदियों का जल उस कलश में आ जाये. पवित्र नदियों के साथ ही वरूण देवता का भी आह्वाहन करना चाहिए, ताकि वो उस कलश में अपना स्थान ग्रहण कर लें.

इस प्रकार आह्वाहन आदि के बाद कलश के मुख पर कलावा बांधिये और एक मिट्टी की कटोरी से कलश को ढक दीजिये. अब ऊपर ढकी गयी उस कटोरी में जौ भरिये. यदि जौ न हो तो चावल भी भर सकते हैं. इसके बाद एक जटा वाला नारियल लेकर उसे लाल कपड़े में लपेटकर, ऊपर कलावे से बांध दें. फिर उस बंधे हुए नारियल को जौ या चावल से भरी हुई कटोरी के ऊपर स्थापित कर दीजिये.

यहां दो बातें विशेष याद दिला दूं- कुछ लोग कलश के ऊपर रखी गयी कटोरी में ही घी का दीपक जला लेते हैं . ऐसा करना उचित नहीं है. कलश का स्थान पूजा के उत्तर-पूर्व कोने में होता है जबकि दीपक का स्थान दक्षिण-पूर्व कोने में होता है. लिहाजा कलश के ऊपर दीपक नहीं जलाना चाहिए. दूसरी बात ये है कि कुछ लोग
कलश के ऊपर रखी कटोरी में चावल भरकर उसके ऊपर शंख स्थापित करते हैं. इसमें कोई परेशानी नहीं है, आप ऐसा कर सकते हैं. बशर्ते कि शंख दक्षिणावर्त होना चाहिए और उसका मुंह ऊपर की ओर रखना चाहिए और चोंच अपनी ओर करके रखनी चाहिए.

इन मंत्रों का करें जप
▪️ इस सारी कार्यविधि में एक चीज़ का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि ये सब करते समय नवार्ण मंत्र अवश्य पढ़ना चाहिए. नवार्ण मंत्र है- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे.”
देखिये एक बार फिर से नवार्ण मंत्र के साथ सारी कार्यविधि समझ लीजिये -
▪️ सबसे पहले उत्तर-पूर्व कोने की सफाई करें और जल छिड़कते समय कहें- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे.”
▪️ फिर कोने में मिट्टी या बालू बिछायी और 5 बार मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ उसके ऊपर जौ बिछाया और मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ उसके ऊपर फिर मिट्टी या बालू बिछायी और मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ उसके ऊपर कलश रखा और मंत्र पढ़ा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ कलश में जल भरा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ उसमें सिक्का डाला- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ वरूण देव का आह्वाहन किया- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ कलश के मुख पर कलावा बांधा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ कलश के ऊपर कटोरी रखी- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ उसमें चावल या जौ भरा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ नारियल पर कपड़ा लपेटा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ उसे कलावे से बांधा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ उस नारियल को जौ या चावल से भरी कटोरी पर रखा- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”
▪️ इस प्रकार सभी चीजें चामुण्डा मंत्र से ही, यानि नवार्ण मंत्र से की जानी है.

नवरात्र के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ करना बड़ा ही फलदायी बताया गया है. जो व्यक्ति दुर्गासप्तशती का पाठ करता है, वह हर प्रकार के भय, बाधा, चिंता और शत्रु आदि से छुटकारा पाता. साथ ही उसे हर प्रकार के सुख-साधनों की प्राप्ति होती है. अतः नवरात्र के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करना चाहिए.

मां शैलपुत्री की ऐसे करें पूजा

आज नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना की जायेगी. आज मां शैलपुत्री की उपासना करने से व्यक्ति को धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है. आज इन सब चीज़ों का लाभ उठाने के लिये देवी मां के इस मंत्र से उनकी उपासना करनी चाहिए. मंत्र है-

‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:.’

आज आपको अपनी इच्छानुसार संख्या में इस मंत्र का जप जरूर करना चाहिए. मंत्र जप के साथ ही शास्त्रों में बताया गया है कि नवरात्र के पहले दिन देवी को शरीर में लेपन के तौर पर लगाने के लिए चंदन और केश धोने के लिए त्रिफला चढ़ाना चाहिए. त्रिफला में आंवला, हर्रड़ और बहेड़ा डाला जाता है. इससे देवी मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाये रखती हैं.

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-