गौरी स्तुति का पाठ और गायन जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाने के लिए किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि गौरी माता की आराधना करने से विवाह में आने वाली समस्याएं दूर होती हैं, वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य बना रहता है, और पारिवारिक कलह समाप्त होती है. विशेष रूप से कुंवारी कन्याएं माता गौरी की आराधना कर अच्छे वर की प्राप्ति के लिए गौरी स्तुति का पाठ करती हैं.
गौरी स्तुति के श्लोक और मंत्र
अभिनव- नित्याममरसुरेन्द्रां
विमलयशोदां सुफलधरित्रीम्.
विकसितहस्तां त्रिनयनयुक्तां
नयभगदात्रीं भज सरसाङ्गीम्.
अमृतसमुद्रस्थित- मुनिनम्यां
दिविभवपद्मायत- रुचिनेत्राम्.
कुसुमविचित्रार्चित- पदपद्मां
श्रुतिरमणीयां भज नर गौरीम्.
प्रणवमयीं तां प्रणतसुरेन्द्रां
विकलितबिम्बां कनकविभूषाम्.
त्रिगुणविवर्ज्यां त्रिदिवजनित्रीं
हिमधरपुत्रीं भज जगदम्बाम्.
स्मरशतरूपां विधिहरवन्द्यां
भवभयहत्रीं सवनसुजुष्टाम्.
नियतपवित्रामसि- वरहस्तां
स्मितवदनाढ्यां भज शिवपत्नीम्.
पूजन विधि
गौरी स्तुति के साथ पूजन का विशेष महत्व है. पूजन विधि में देवी गौरी की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीप जलाया जाता है और उन्हें फूल, फल, अक्षत, कुमकुम और नारियल अर्पित किए जाते हैं. इसके बाद भक्त गौरी स्तुति का पाठ करते हैं.
विशेष अवसरों पर गौरी पूजन के साथ-साथ शिव जी की आराधना भी की जाती है. यह मान्यता है कि शिव और शक्ति की संयुक्त उपासना जीवन के सभी कष्टों का निवारण करती है.
विशेष पर्व
गौरी स्तुति का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि, हरियाली तीज, गणगौर, करवा चौथ, और वट सावित्री व्रत जैसे पर्वों पर किया जाता है. इनमें गणगौर का पर्व मुख्य रूप से देवी गौरी के प्रति समर्पित है. राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में यह पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है.
मनोकामना पूर्ति
यह माना जाता है कि गौरी स्तुति का नियमित पाठ करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जिन कन्याओं का विवाह में विलंब हो रहा हो, वे माता गौरी की विशेष कृपा पाने के लिए उनका ध्यान करती हैं. विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन की खुशहाली और दीर्घायु के लिए गौरी स्तुति का पाठ करती हैं.