अभिमनोज
आमतौर पर माता-पिता में से बच्चे की कस्टडी को लेकर अदालत बहुत ही गंभीरता से फैसले करती है, कस्टडी के दौरान बच्चे पर भावनात्मक, स्वास्थ्य पर, सोच पर, व्यवहार पर, सुरक्षा पर, विकास पर क्या असर पड़ रहा है, इसी के आधार पर निर्णय लिया जाता है.
खबर है कि.... एक पिता को इसलिए अपनी बेटी की कस्टडी गंवानी पड़ी क्योंकि वह उसे पंद्रह दिनों में एक बार भी घर का बना खाना नहीं दे पाया.
खबरों की मानें तो.... सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने एक आठ साल की बच्ची से संवाद करने के बाद यह फैसला सुनाते हुए केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पिता को महीने में पंद्रह दिन बच्ची की कस्टडी दी गई थी.
खबरों पर भरोसा करें तो.... फैसले में कहा गया है कि- होटल से खरीदे गए भोजन का लगातार सेवन एक वयस्क व्यक्ति के लिए भी स्वास्थ्य के नजरिए से खतरा पैदा कर सकता है, तो आठ साल की छोटी बच्ची की तो बात ही क्या करें.
बच्ची को उसके उत्तम स्वास्थ्य, वृद्धि और विकास के लिए घर का बना पौष्टिक खाना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से पिता बच्ची को ऐसा पोषण देने की स्थिति में नहीं है.
पीठ का कहना है कि- बच्ची को अपने छोटे भाई के अलावा मां के घर पर बेहतर वातावरण मिलेगा, यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने हर महीने पंद्रह दिन की कस्टडी पिता को देने के हाईकोर्ट के आदेश पर भी नाराजगी जताई और इसे- पूरी तरह अनुचित करार दिया!
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने पिता से छीनी बेटी की कस्टडी!
प्रेषित समय :19:39:04 PM / Fri, May 2nd, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

