भगवान शिव के शिवलिंग पर जल चढ़ाने बहुत से लोग जाते हैं .लेकिन कुछ लोगों को पता नहीं होता कि शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाया जाता है, शिवलिंग पर जल कौनसे बर्तन से चढ़ाना चाहिए, जल चढ़ाते समय मुँह किस तरफ होना चाहिए, शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सही तरीका क्या है और जल चढ़ाते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए। अतः यहां यही जानकारी प्रस्तुत है-
समुद्र मंथन के बारे मे सब जानते हैं। जब देवता और राक्षस समुद्र मंथन कर रहे थे तो समुद्र से भयानक विष निकलने लगा था। उस विष को भगवान शिव ने धारण किया था। लेकिन उस विष के प्रभाव से शिवजी का शरीर बहुत गर्म हो गया और उनके शरीर से ज्वालाएं निकलने लगी।
उनकी गर्मी शांत करने के लिए सभी लोग उन पर जल चढ़ाने लगे। जब तक विष निकलता रहा तब तक शिवजी उस विष को ग्रहण करते रहे, और गर्मी शांत करने के लिए सभी लोग उन पर जल गिराते रहे। इससे शिवजी की गर्मी शांत हुई और वे बड़े प्रसन्न हुए। तब उन्होंने प्रण लिया कि जब भी कोई उन पर जल चढ़ाएगा वो उसके जीवन से हर प्रकार का संकट यानि विष ग्रहणू कर लेंगे। इसीलिए संकट निवारण, शिवजी की प्रसन्नता तथा आशीर्वाद के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है।
कभी भी शिवजी को जल तेजी से नहीं चढ़ाना चाहिए। शास्त्रों में भी बताया गया है कि शिवजी को जलधारा अत्यंत प्रिय है। इसलिए जल चढ़ाते समय ध्यान रखें कि जल के पात्र से धार बनाते हुए धीरे से जल अर्पित करें। पतली जलधार शिवलिंग पर चढाने से भगवान शिव की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती है।
यह बहुत महत्वपूर्ण है की शिवजी को जल अर्पण करते समय हमारा मुँह किस तरफ होना चाहिए। शिवजी को जल चढ़ाते समय हमारा मुँह उत्तर की तरफ होना चाहिए। जलहरी की दिशा (मुँह) हमेशा उत्तर की तरफ होती है। अतः हमे जलधारी के मुँह के दूसरी तरफ रहना चाहिए।
सबसे पहले जलहरी के दाईं तरफ जल चढ़ायें वहाँ गणेशजी का स्थान होता है। फिर बाईं तरफ कार्तिकेयजी का स्थान होता है, वहाँ जल चढ़ाएं। इसके बाद दोनों के बीच शिवजी की पुत्री अशोक सुंदरी का स्थान होता है वहाँ जल चढ़ाएं। जलधरी का गोलाकार हिस्सा माता पार्वती का हस्तकमल होता है, उसे साफ करके वहाँ जल चढ़ाएं, इसके बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
पात्र मे भरा पूरा जल चढ़ा देना चाहिए। फिर भी बच जाए तो शिवजी के ऊपर यदि कलश हो तो जल उसमे डाल देना चाहिए।
शिवलिंग पर जल खड़े होकर चढ़ाना चाहिए या बैठकर यह इस पर निर्भर होता है कि शिवलिंग किस प्रकार का है। क्या आप जानते है की शिवलिंग कितने प्रकार के होते हैं। मंदिर मे शिवलिंग दो प्रकार के हो सकते हैं- शक्ति शिवलिंग और विष्णु शिवलिंग (हरी सर्वेश्वर शिवलिंग)
जिस शिवलिंग की जलहरी धरती से छूती हुई होती है वो शक्ति शिवलिंग होता है। इसकी जलहरी माता पार्वती का हस्त कमल होती है। ऐसे शिवलिंग पर बैठकर जल चढ़ाना चाहिए। जो शिवलिंग डमरू के आकार का होता है। जिसकी जलहरी धरती से थोड़ी ऊपर होती है। वो शिवलिंग विष्णु शिवलिंग कहलाता है। इसकी जलहरी ब्रह्माजी का हस्तकमल होती है जलहरी के नीचे बना आकार विष्णु जी का हस्तकमल होता है। ऐसे शिवलिंग पर खड़े होकर जल चढ़ाना चाहिए। खड़े रहकर जल चढ़ाते समय दोनों पैर बराबर नहीं रखना चाहिए। दायाँ पैर आगे और बायाँ पैर थोड़ा पीछे रखना चाहिए।
यह शंका लोगों के मन मे होती है कि शिवलिंग पर जल चढ़ाने का लोटा कौन सी धातु का होना चाहिए। जिस पात्र से शिवजी को जल चढ़ायें वह पत्र तांबे का या चांदी का होना चाहिए। तांबे का लोटा है तो इससे दूध नहीं चढ़ाना चाहिए। जल चढ़ाने के लिए स्टील के बर्तन का उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि स्टील लोहे से बना होता है।
शिव जी को जल अर्पित करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-
ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च।
नमः शन्कराय च मयस्कराय च।
नमः शिवाय च शिवतराय च।।
यदि इस मंत्र का उच्चारण ना कर पायें तो “ॐ नमः शिवाय” का जप भी कर सकते हैं।
।। शिव वंदना ।।
त्रिलाेचन तुम ही महादेव !
हे नीलकंठ हे अविनाशी।
तुमसे शोभित नगरी काशी।।
तुम रामेश्वर तुम सोमनाथ।
तुम डमरू के घोषित निनाद।।
केदारनाथ तुम ममलेश्वर।
तुम गौरापति तुम नागेश्वर।।
महाकाल तुम ओंकारेश्वर।
तुम विश्वनाथ काशीधीश्वर।।
तुम बैद्यनाथ की छवि धारे।
थे दुष्ट त्रिपुर राक्षस मारे।।
तुम मल्लिकार्जुन सरुप धरे।
भीमाशंकर कल्याण करें।।
तुम घृश्णेश्वर का दिव्य रुप।
त्र्यंबकेश्वर हो जगत भूप।।
सबको वरदानी आदिदेव।
*त्रिलाेक भारती ही हैं महादेव।।*
शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सही तरीका क्या है!
प्रेषित समय :19:18:47 PM / Mon, May 5th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर