रत्न धारण करने का सुझाव राशि अनुसार नहीं दिया जाता

रत्न धारण करने का सुझाव राशि अनुसार नहीं दिया जाता

प्रेषित समय :23:17:32 PM / Tue, May 27th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

हमेशा लग्न कुंडली पर ही ध्यान दिया जाना चाहिए. लग्नराशि ही ज्यादा महत्वपूर्ण होती है._
_कुण्डली में महादशा और अन्तर्दशा का अच्छा या बुरा प्रभाव केवल और केवल जन्म लग्न कुंडली से ही किया जाता है._
_कभी भी किसी जातक को 
*रत्न धारण करने का सुझाव राशि अनुसार नहीं दिया जाता है.
* चन्द्रमा की स्थित से ही हमें राशि के बारे में पता चलता है. राम और रावण की,कृष्ण और कंस की राशि भी एक ही थी, लेकिन दोनों के गुणों में जमीन आसमान का अन्तर था._
राशि का महत्व कभी भी रत्न धारण करने के लिए नहीं होता है.
 *राशि का महत्व केवल ढैय्या और साढ़ेसाती निर्धारण* करने के लिए ही होता है.
राशि का महत्व 
*कुण्डली मिलान में ग्रह-मैत्री के लिए* होता है. क्यूंकि चन्द्रमा मन का कारक ग्रह है और मिलान में इसी राशि को मिलाना अनिवार्य है._
_वर्गीय कुण्डली के अनुसार रत्न कभी भी धारण नहीं किया जाता है._
_जिस ग्रह का रत्न धारण किया जाता है,उस ग्रह का दान नहीं किया जाता है._
_जिस ग्रह का दान किया जाता है,उस ग्रह का रत्न धारण नहीं किया जाता है._
_वाहन किसी भी रंग का हो परन्तु यह बनता लोहे से ही है, *इसलिए यह शनि-राहु का स्वरूप ही होता है.* इसलिए रंग का वहम नहीं करना चाहिए._
_वक्रीय ग्रह का ये मतलब नहीं होता कि,वह अच्छे फल आरम्भ कर देगा,या बुरे फल देना आरम्भ कर देगा, या बुरे फलों में कमी लाएगा. वक्रीय का अर्थ होता है,कि गृह का प्रभाव *तीन गुना बढ़ जाना.*_
_वक्रीय ग्रह का अर्थ यह कदापि नहीं है,कि ग्रह पिछले भाव के फल देगा._
_पति-पत्नी के बीच यदि रिश्ते ठीक नहीं हैं तो *बैडरूम में कृष्ण भगवान की फोटो उत्तर दिशा वाली दीवार पर अवश्य लगाएं.* बैडरूम में सिर्फ कृष्ण भगवान की फोटो होनी चाहिए. कृष्ण भगवान के बाद ही इस पृथ्वी पर प्रेम आया था,इसलिए रिश्तों में मिठास के लिए कृष्ण भगवान की फोटो अवश्य लगाएं._
_ग्रहों का *अंशमात्र और बलाबल* देखने के बाद ही उसके *अच्छे या बुरे* प्रभाव का निर्णय करें._
_सुबह-सुबह अपने *इष्ट ग्रह /देव को, "प्रणाम"* हर जातक को करना चाहिए._
_नवम-पंचम भाव का,लग्न के साथ स्थापित सम्बन्ध और उनके स्वामीयों के बेठने और दृष्टि सम्बन्धों के द्वारा ही आपके  *इष्ट देव* का निर्धारण होता है, *सामान्यत: पंचमेश को इष्ट* मानें._
_ग्रहों के उपाय के साथ-साथ अगर पूर्ण फल लेना है,तो उस *ग्रह से जुड़े रिश्ते* को भी सुधारना चाहिए._
_अगर आपको अपने जन्म *समय का सही ज्ञान न हो,तो किसी भी ग्रह का रत्न धारण करना वर्जित* माना जाता है._
_आपस में *शत्रु ग्रहों* के रत्नो को,एक साथ धारण नहीं किया जाता है._
_अगर रत्न *गलत धातु* में धारण किये जाएँ,तो वह  अपना प्रभाव नहीं देता है._
_*गलत उंगली में डाला गया रत्न भी,अपना प्रभाव नहीं देता है. बल्कि गलत उंगली में पहना गया रत्न ज्यादा हानिकारक* होता है._
रत्न पहनने का अर्थ केवल उस ग्रह का *बल बढ़ाना है. लोग रत्नों से एक *चमत्कार की अपेक्षा* रखते है. जोकि सत्य नहीं है._
_ किसी भी *ग्रह की वस्तु* के दान करने का अर्थ यह होता है,कि वह दान उस  ग्रह के *बुरे प्रभाव* को कम करे._
_*सूर्य देव* को हमेशा *सादा जल ही चढ़ाना चाहिए I उसमे कोई भी चीज़ नहीं डाली जाती I सूर्य को जल देने का अर्थ है,कि सूर्य की किरणें छनकर हमारे शरीर में प्रवेश करती हैं,और उसके मारक प्रभाव को कम करती हैं I किसी भी चीज़ को जल में डालने से उसका महत्व कम हो जाता है ! सूर्य देव को जल तभी दें जब वह कुंडली में मारक* गृह हों !_
_*पीपल को जल शनिवार को किसी भी समय दिया जा सकता है.* उसमें समय की कोई पाबन्दी नहीं होती है. पीपल हर समय जागने वाला वृक्ष है,और २४ घंटे ऑक्सीजन गैस ही छोड़ता है. पीपल को भी *सादा जल ही,चढ़ाया जाता है. कच्ची लस्सी या कोई भी चीज उसमे डालने का कोई महत्त्व नहीं है. उल्टा उसकी जड़ को खराब करता है.जिसका प्रभाव अशुभ* होता है._
_*शनि देव,राहु देव और केतु देवता का पाठ,* सूर्यास्त के बाद या सोने से पहले किया जाता है. क्यूंकि ये देवता सूर्यास्त के बाद ही उदय होते है ! इसी तरह इनका *दान भी सूर्यास्त के बाद* ही होता है ! परन्तु *अमावस्या वाले दिन* सारे दिन में किसी भी समय हम शनि देव,राहु देव, केतु देव का पाठ और दान कर सकते हैं. क्यूंकि _*अमावस्या होती ही शनि देव जी* की है ! वो सारे दिन उपस्थित रहते हैं!_
_किसी भी जातक की कुण्डली में *ग्रहण योग (सूर्य-ग्रहण, चंद्र-ग्रहण )* है तो उस ग्रह का पाठ या दान, *ग्रहण वाले दिन* करना प्रभावशाली होता है!_
_किसी भी ग्रह की महादशा,अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा में,उसका *पाठ स्वयं करना* चाहिए. वह ज्यादा असरकारी होता है ! अगर पाठ,कारक ग्रह की दशा का है,तो वह *शुभ फलदाई* है ! यदि मारक ग्रह की महादशा का है,तो *उसका पाठ सही राह दिखाता है.* और उसके *मारकत्व* को कम करता है !_
_सामान्य नियम के अनुसार कुण्डली मे पंचम घर का स्वामी,जातक का इष्ट ग्रह (इष्टदेव ) होता है. उसका पाठ किसी भी दशा,या खराब गोचर में हमेशा लाभकारी होता है._
_*स्वर्ग सिधार चुके पूर्वजों की फोटो* हमेशा *दक्षिण-दिशा* की दीवार पर लगाएं.उनको प्रतिदिन प्रणाम करना सर्वदा फलदाई होता है.इससे उनका आशीर्वाद मिलता है._
_*राहु और केतु* ग्रह का *रत्न* कभी भी किसी जातक को धारण नहीं करना चाहिए. क्यूंकि इन ग्रहों के कारक तत्व गलत हैं._
_*केले के वृक्ष को सदैव सादा जल* से सींचा जाता है. कभी भी उसमें *हल्दी* या अन्य पदार्थ ना डालें._
_किसी भी ग्रह का उपाय घर की चारदीवारी में नहीं करना चाहिए. जैसे चीटियों को कुछ भी डालना. सिर्फ पक्षियों का दाना ज्वार-बाजरा आदि,घर की छत पर डाला जा सकता है._
_कभी भी किसी गरीब को दान में पैसे ना दें. कुछ खाने की चीज दें. पैसे से वह कुछ भी गलत चीज खरीद कर,उसका सेवन करेगा तो उसके जिम्मेदार आप होंगे.उसका गलत प्रभाव आप पर भी पड़ेगा. यदि वह खाने वाली वस्तु फेंक भी देता है,तो उसे चीटियाँ वगैरा खा जाएँगी. तो इससे आप पर भी अच्छा प्रभाव होगा._
_रत्न धारण करने से कोई चमत्कार नहीं होता,बल्कि जिस ग्रह की किरणों की, हमारे शरीर में कमी है,वह उसे पूरी करता है._
*_रत्न धारण:-_*
      _कभी भी गोचर या दशा,अन्तर-दशा,देख कर नहीं पहना जाता,अपितु *जन्म लग्न कुण्डली में स्थित ग्रहों की स्थिति* को देख कर पहने जाते हैं._
*_किसी भी ग्रह के_*
   _पाठ-पूजन,और *मंत्र उच्चारण* से उस ग्रह का बल नहीं बढ़ता है,बल्कि प्रसन्न होकर,वह *ग्रह आशीर्वाद* देता है._
_बल बढ़ाने के लिए ग्रह से सम्बंधित *रत्न धारण* किया जाता है. उसी ग्रह से सम्बंधित खाने-पीने की वस्तुओं का सेवन करने और *रंग धारण* करने से भी *ग्रहों का बल* बढ़ जाता है._
दीवार पर लगी हुई *घड़ी कभी भी रुकी हुई* नहीं होनी चाहिए यह अशुभता की निशानी है._
_घर के पानी वाले *नल टपकते या बहते* हुए नहीं होने चाहिए,उससे घर की *बरकत* में रुकावट आती है._
_राहु देव अगर कुण्डली में खराब हों,तो *नमक के पोछे लगाना चाहिए ! इससे राहु देव शांत* होते हैं._
_ मानसिक परेशानी दूर करने के लिए *मोर पंख* की हवा लेनी चाहिए._
_किसी भी *ग्रह का पाठ* कोई भी कर सकता है ! *शनि मंदिर* में जाकर कोई भी *माथा टेक* सकता है._
_घर का कबाड़ और रद्दी का सामान *घर की छत* पर नहीं होना चाहिए._
_घर में लगाने वाला *झाड़ू* भी खुले में न पड़ा हो ! यह अशुभता का सूचक है._
_सोते समय *मोबाइल फोन* तीन फिट दूर होना चाहिए._
    _और *पानी का गिलास* व *फोन* पास-पास नहीं होना चाहिए._
_*दक्षिण दिशा* की तरफ सिर करके *सोना* चाहिए._
_ सुबह उठते ही *उत्तर दिशा* की तरफ प्रणाम करने से *कुबेर देवता* प्रसन्न होते हैं तथा घर में *धन की बरकत* का वातावरण बनता है._
_*बच्चों का मुख,* पढ़ाई करते समय *पूर्व दिशा* की ओर होना चाहिए._
_*बच्चों से* तुलसी के पौधे मे जल चढ़ाने से,उनकी बुद्धि का विकास होता है._
*_घर में कैलेंडर_*
 _पिछले महीने का नहीं होना चाहिए._
      _ यदि संभव हो,तो घर के उत्तर-पश्चिम दिशा में मछली -घर रखें._
*_घर में लगी तश्वीरें_*
     क्रूर पशु-पक्षी,या युद्ध और विनाश दर्शाने वाली नहीं होना चाहिए. सभी तस्वीरें प्रसन्नता का प्रतीक या प्रदर्शन करने वाली होनी चाहिए.

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-