सर्प भय से मुक्ति के लिए- देवी मनसा जी के 12 नाम

सर्प भय से मुक्ति के लिए- देवी मनसा जी के 12 नाम

प्रेषित समय :20:42:15 PM / Sat, Jun 21st, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जो वन प्रान्त में या खेत खलिहान के आसपास रहता हो अथवा जिनको सर्प के सपने बार बार आते हो वे इन 12 नामों का पाठ हर पंचमी को या नित्य करें.
( ये देवी आस्तिक मुनि की माता मनसा हैं .) 
 सभी सर्प और नाग इनके नाम का सम्मान करते हैं. या यूँ कहो कि श्रीमनसा नाम के पाॅवर से सहज ही सर्प भाग जाते हैं. 
इनके मंत्र या स्तोत्र को सिद्ध करने पर आप सर्पों पर सो भी सकते हो तथा नाग या अजगर को सवारी बनाकर यात्रा भी कर सकते हो. मंत्र का जप अनुष्ठान 500000 बार जप का है. 

जरत्कारु जगद्गौरी मनसा सिद्ध योगिनी .
वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ..
जरत्कारूप्रियास्तीकमाता विषहरीति च .
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्व पूजिता..

विस्तार -
 मनसादेवीका चरित्र अद्भुत  है इन्होनें मात्र दीक्षा के लिए शिव जी को प्रसन्न किया और शिव स्तोत्र के अनुष्ठान से 
ईश्वर शिव जी ने इनको श्रीहरिमंत्र की दीक्षा दी. ( मनसा जी की कामना हरि मंत्र ही थी ) 
1. ये भगवती कश्यपजीकी मानसी कन्या हैं तथा मनसे उद्दीप्त होती हैं, इसलिये 'मनसा' देवीके नामसे विख्यात हैं.
2.आत्मामें रमण करनेवाली इन सिद्धयोगिनी 3.वैष्णवीदेवीने तीन युगोंतक परब्रह्म भगवान् श्रीकृष्णकी तपस्या की है. गोपीपति परम प्रभु उन परमेश्वरने इनके वस्त्र और शरीरको जीर्ण देखकर इनका 'जरत्कारु' नाम रख दिया. साथ ही, उन कृपानिधिने कृपापूर्वक इनकी सभी अभिलाषाएँ पूर्ण कर दीं, इनकी पूजाका प्रचार किया और स्वयं भी इनकी पूजा की. स्वर्गमें, ब्रह्मलोकमें, भूमण्डलमें और पातालमें - सर्वत्र इनकी पूजा प्रचलित हुई. 
4.सम्पूर्ण जगत्में ये अत्यधिक गौरवर्णा, सुन्दरी और मनोहारिणी हैं; अतएव ये साध्वी देवी 'जगगौरी' के नामसे विख्यात होकर सम्मान प्राप्त करती हैं.
 5.भगवान् शिवसे शिक्षा प्राप्त करनेके कारण ये देवी 'शैवी' कहलाती हैं.
 6.भगवान् विष्णुकी ये अनन्य उपासिका हैं. अतएव लोग इन्हें 'वैष्णवी' कहते हैं.
7. राजा जनमेजयके यज्ञमें इन्हींके सत्प्रयत्नसे नागोंके प्राणोंकी रक्षा हुई थी, अतः इनका नाम 'नागेश्वरी' और 'नागभगिनी' पड़ गया. 
8.विषका संहार करनेमें परम समर्थ होनेसे इनका एक नाम 'विषहरी' है. 
9.इन्हें भगवान् शंकरसे योगसिद्धि प्राप्त हुई थी. अतः ये 'सिद्धयोगिनी' कहलाने लगीं.
10. इन्होंने श्री शंकरसे महान् गोपनीय ज्ञान एवं मृतसंजीवनी नामक उत्तम विद्या प्राप्त की है, इस कारण विद्वान् पुरुष इन्हें 'महाज्ञानयुता' कहते हैं. 
11.ये परम तपस्विनी देवी मुनिवर आस्तीककी माता हैं. अतः ये देवी जगत्में सुप्रतिष्ठित होकर ‘आस्तीकमाता' नामसे विख्यात हुई हैं.
12. जगत्पूज्य योगी महात्मा मुनिवर जरत्कारुकी प्यारी पत्नी होनेके कारण ये 'जरत्कारुप्रिया' नामसे विख्यात हुईं. 

फलश्रुति भी -
जरत्कारु जगद्गौरी मनसा सिद्ध योगिनी .
वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ..
जरत्कारूप्रियास्तीकमाता विषहरीति च .
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्व पूजिता..
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले च यः पठेत्.
तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ..
(ब्रह्म वैवर्त पुराण प्रकृतिखण्ड अध्याय 45)

अर्थात् 
जरत्कारु, जगद्गौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तीकमाता, विषहरी और महाज्ञानयुता—इन बारह नामोंसे विश्व इनकी पूजाकरता है. 
1.जो पुरुष पूजाके समय इन बारह नामोंका पाठ करता है, उसे तथा उसके वंशजको भी सर्पका भय नहीं हो सकता.
2. जिस शयनागारमें नागका भय हो, जिस भवनमें बहुतेरे नाग भरे हों, नागोंसे युक्त होनेके कारण जो महान् दारुण स्थान बन गया हो तथा जो नागसे वेष्टित हो, वहाँ भी पुरुष इस स्तोत्रका पाठ करके सर्पभयसे मुक्त हो जाता है-इसमें कोई संशय नहीं है. 
3.जो प्रभु श्रीकृष्ण या इनके गुरु महाभाग शंकर के प्रीत्यर्थे या इन देवी की प्रसन्नता के लिये नित्य इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे देखकर ही नाग भाग जाते हैं.
 4.दस लाख पाठ अनुष्ठान पूर्वक करनेसे यह स्तोत्र मनुष्योंके लिये सिद्ध हो जाता है.
5. जिसे यह स्तोत्र सिद्ध हो गया, वह-
अ. विष-भक्षण करके भी नहीं मरता .
आ. नागोंको भूषण बनाकर अपने शरीर पर धारण कर सकता है भगवान शिव की तरह.
 इ. बड़े बड़े नागों और सभी प्रकार के सर्पों पर वह सवारी करनेमें भी समर्थ हो सकता है. 
ई. वह नागासन, नागतल्प तथा महान् सिद्ध हो जाता है.
मुनिवर ! अब मैं देवी मनसाकी पूजाका विधान तथा सामवेदोक्त ध्यान बतलाता हूँ, सुनो. 
ध्यान- 
'भगवती मनसा श्वेतचम्पक-पुष्पके समान वर्णवाली हैं. इनका विग्रह रत्नमय भूषणोंसे विभूषित है. अग्निशुद्ध वस्त्र इनके शरीरकी शोभा बढ़ा रहे हैं . इन्होंने सर्पोंका यज्ञोपवीत धारण कर रखा है. महान् ज्ञानसे सम्पन्न होनेके कारण प्रसिद्ध ज्ञानियोंमें भी ये प्रमुख मानी जाती हैं. ये सिद्धपुरुषोंकी अधिष्ठात्री देवी हैं. सिद्धि प्रदान करनेवाली तथा सिद्धा हैं; मैं इन भगवती मनसाकी उपासना करता हूँ.' 
इस प्रकार ध्यान करके मूलमन्त्रसे भगवतीकी पूजा करनी चाहिये. 
अनेक प्रकारके नैवेद्य तथा गन्ध, पुष्प और अनुलेपनसे देवीकी पूजा होती है. सभी उपचार मूलमन्त्रको पढ़कर अर्पण करने चाहिये. मुने! इनके मूलमन्त्रका नाम है- 
'मूल कल्पतरु'
 यह सुसिद्ध मन्त्र है. इसमें बारहअक्षर हैं. इसका वर्णन वेदमें है. यह भक्तांक मनोरथको पूर्ण करनेवाला है. 
मन्त्र इस प्रकार है-
'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मनसादेव्यै स्वाहा.' 
1.पाँच लाख  (500000) मन्त्र जप करनेपर यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है.
2. जिसे इस मन्त्रकी सिद्धि प्राप्त हो गयी, वह धरातलपर सिद्ध है. 
3.उसके लिये विष भी अमृतके समान हो जाता है.
4. उस पुरुषकी धन्वन्तरिसे तुलना की जा सकती है.
5. रुद्राक्ष की माला से जप अनुष्ठान के सभी नियमों का पालन करके और शिवालय में शीघ्र सिद्धि मिलती है. 
ब्रह्मन् ! जो पुरुष आषाढकी संक्रान्तिके दिन 'गुडा' (कपास या सेंहुड़) नामक वृक्षकी शाखापर यत्नपूर्वक इन भगवती मनसाका आवाहन करके भक्तिभावके साथ पूजा करता है.
 तथा मनसापञ्चमीको उन देवीके लिये बलि अर्पण करता है, वह अवश्य ही धनवान्, पुत्रवान् और कीर्तिमान् होता है. 
महाभाग ! पूजाका विधान कह चुका. अब धर्मदेवके मुखसे जैसा कुछ सुना है, वह उपाख्यान कहता हूँ, सुनो.
प्राचीन समयकी बात है. भूमण्डलके सभी मानव नागोंके भयसे आक्रान्त हो गये थे. नाग जिन्हें काट खाते, वे जीवित नहीं बचते थे. यह देख-सुनकर कश्यपजी भी भयभीत हो गये; अतः ब्रह्माजीके अनुरोधसे उन्होंने सर्पभयनिवारक मन्त्रोंकी रचना की. ब्रह्माजीके उपदेशसे वेदबीजके अनुसार मन्त्रोंकी रचना हुई. साथ ही ब्रह्माजीने अपने मनसे उत्पन्न करके इन देवीको इस मन्त्रकी अधिष्ठात्री देवी बना दिया. तपस्या तथा मनसे प्रकट होनेके कारण ये देवी 'मनसा' नामसे विख्यात हुई. कुमारी अवस्थामें ही ये  भगवान् शंकर से ही गुरुदीक्षा लेने और ज्ञान लेने के लिए शिव के धाम कैलास में चली गयीं.
 कैलासमें पहुँचकर इन्होंने भक्तिपूर्वक भगवान् चन्द्रशेखरकी पूजा करके उनकी स्तुति की. मुनिकुमारी मनसाने देवताओंके वर्षसे हजार (1000)  वर्षोंतक भगवान् शंकरकी उपासना की. तदनन्तर भगवान् आशुतोष इनपर प्रसन्न हो गये. मुने! 
भगवान् शंकरने प्रसन्न होकर इन्हें महान् ज्ञान प्रदान किया. सामवेदकाअध्ययन कराया और भगवान् श्रीकृष्णके कल्पवृक्षरूप अष्टाक्षर मन्त्र का उपदेश किया.
मन्त्रका रूप ऐसा है- लक्ष्मीबीज, मायाबीज और कामबीजका पूर्वमें प्रयोग करके कृष्ण शब्दके अन्तमें 'ङे' विभक्ति लगाकर 'नमः' पद जोड़ दिया जाता है 
('श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय नमः' ) 
जो इस मंत्र को नागपंचमी को  जपता है उससे भी माँ मनसा प्रसन्न होती हैं तथा नाग भय दूर हो जाता है. 
 भगवान् शंकरकी कृपासे जब मुनिकुमारी मनसाको उक्त मन्त्रके साथ 
त्रैलोक्यमङ्गल नामक श्रीकृष्ण कवच,
 पूजनका क्रम, 
सर्वमान्य स्तवन, भुवनपावन ध्यान, 
सर्वसम्मत वेदोक्त पुरश्चरणका नियम
 तथा मृत्युञ्जय-ज्ञान प्राप्त हो गया,
 तब वह साध्वी उनसे आज्ञा ले पुष्करक्षेत्रमें श्रीकृष्ण के दर्शन  के लिए तपस्या करनेके लिये चली गयी.
 वहाँ जाकर उसने परब्रह्म भगवान् श्रीकृष्णकी तीन युगोंतक उपासना की. 
इसके बाद उसे तपस्यामें सिद्धि प्राप्त हुई. भगवान् श्रीकृष्णने सामने प्रकट होकर उसे दर्शन दिये. उस समय कृपानिधि श्रीकृष्णने उस कृशाङ्गी बालापर अपनी कृपाकी दृष्टि डाली. 
उन्होंने उसका दूसरोंसे पूजन कराया और स्वयं भी उसकी पूजा की; साथ ही वर दिया कि 'देवि! तुम जगत् में पूजा प्राप्त करो.' इस प्रकार कल्याणी मनसाको वर प्रदान करके भगवान् अन्तर्धान हो गये.
इस तरह इस मनसादेवीकी सर्वप्रथम भगवान् श्रीकृष्णने पूजा की. तत्पश्चात्  लीलावश जगत को प्रेरणा देने के लिए ( कि मनसा पूज्यनीय है ) इनके गुरु शंकर ने तथा , कश्यप, देवता, मुनि, मनु, नाग एवं मानव आदिसे त्रिलोकीमें श्रेष्ठ व्रतका पालन करनेवाली यह देवी सुपूजित हुई. फिर कश्यपजीने जरत्कारु मुनिके साथ उसका विवाह कर दिया.
हम अक्षयरुद्र अंशभूतशिव सभी भक्तों के साथ  देवी मनसा को नमस्कार करते हैं.

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-