बिहार के इस गांव में ब्राह्मण पुजारियों पर लगा प्रतिबंध, इस अनोखे फरमान का यह है कारण

बिहार के इस गांव में ब्राह्मण पुजारियों पर लगा प्रतिबंध, इस अनोखे फरमान का यह है कारण

प्रेषित समय :15:55:57 PM / Mon, Jun 30th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

पटना. उत्तर प्रदेश के इटावा में एक कथावाचक के साथ हुई अभद्रता के बाद अब बिहार के मोतिहारी जिले का एक गांव चर्चा का विषय बन गया है. यहां कथित तौर पर ग्रामीणों ने ब्राह्मण पुजारियों के गांव में प्रवेश पर रोक लगा दी है. जगह-जगह दीवारों और बिजली के खंभों पर ब्राह्मण विरोधी संदेश लिखे जा रहे हैं. इतना ही नहीं, कई ग्रामीणों ने अपने घरों के बाहर भी ऐसे बोर्ड लगा दिए हैं जिनमें साफ लिखा है, इस गांव में ब्राह्मण पुजारियों का प्रवेश व पूजा कराना मना है. पूरा मामला आदापुर प्रखंड स्थित टिकुलिया गांव का बताया जा रहा है.

ग्रामीणों ने बताया कारण

इस विरोध की पृष्ठभूमि उत्तर प्रदेश के इटावा जिले से जुड़ी है, जहां हाल ही में एक ओबीसी (यादव) कथावाचक के साथ कथित तौर पर अपमानजनक व्यवहार किया गया. इस घटना से आहत टिकुलिया गांव के लोगों ने इसका विरोध अपने तरीके से करने का फैसला लिया. ग्रामीणों का कहना है कि उनका विरोध उन ब्राह्मणों से है, जो वेद-शास्त्रों का ज्ञान नहीं रखते, फिर भी खुद को पुजारी बताते हैं और पूजा-पाठ करवाते हैं. साथ ही ग्रामीण ऐसे पुजारियों के मांस और शराब सेवन को भी गलत ठहरा रहे हैं.

धर्म के नाम पर आडंबर पसंद नहीं

गांव के लोगों का यह भी कहना है कि वे किसी जाति विशेष का विरोध नहीं कर रहे हैं. बल्कि वे ऐसे किसी भी व्यक्ति का सम्मान करते हैं, जो वास्तव में वेदों का ज्ञाता हो, फिर चाहे वह किसी भी जाति का क्यों न हो. लेकिन वे ऐसे ब्राह्मण पुजारियों से पूजा-पाठ नहीं करवाना चाहते, जो वेद ज्ञान से अज्ञान हैं और धर्म के नाम पर आडंबर कर रहे हैं.

गांव में ब्राह्मणों का आना बंद

गांव में ब्राह्मण पुजारियों के प्रवेश पर रोक लगाने के बाद अब कोई भी ब्राह्मण इस गांव में पूजा-पाठ कराने नहीं आ रहा है. टिकुलिया गांव की आबादी में ओबीसी और ईबीसी समुदाय के लोग बहुसंख्यक हैं. गांव में ब्राह्मण परिवार नहीं रहते, लेकिन आसपास के गांवों में इनकी संख्या है. ग्रामीणों का कहना है कि यह कदम जातिवादी नहीं है, बल्कि यह उस धार्मिक आचरण के विरोध में है, जिसमें ज्ञान के बिना पूजा-पाठ कर पेशा बनाया गया है. इटावा की घटना ने उन्हें जागरूक किया है और वे अब सिर्फ ज्ञान के आधार पर ही धर्माचार्यों को स्वीकार करना चाहते हैं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-