भविष्यफल कथन की पाराशरीय पद्धति सर्वाधिक प्रचलित होने के साथ- साथ सर्वाधिक सटिक भी है. कुंडली विश्लेषण की पद्धतियों में चंद्र कुण्डली, नवांश कुण्डली और लग्न कुण्डली मुख्य हैं, फिर भी पाराशरीय मतानुसार "भावत् भावम्” सिद्धांत के अनुसार भी सटिक फलकथन किया जा सकता है.
यहाँ हम स्थायी व्यापार अर्थात कर्म भाव से छठा भाव अर्थात कर्म से भाग्य भाव पर ठीक उसी प्रकार विचार करेंगे, जिस प्रकार किसी व्यक्ति/जातक की लग्न कुण्डली का छठा भाव होता है.
व्यक्ति के भाग्य के साथ- साथ उसके व्यवसाय का भाग्य क्या कहता है . व्यवसाय का भाग्य बली है, लंबी दूरी पर होगा या पास, इन सभी बातों का विचार हम यहाँ भावत् भावम् के सिद्धांत से करेंगे . जिस प्रकार लग्न के त्रिकोणवाले, (5, 9 भाव) होने पर जातक का शीघ्र व उच्चस्तरीय उत्थान होता है, उसी प्रकार कर्मभाव/व्यापार स्थान के त्रिकोण अर्थात द्वितीय भाव व षष्ठ भाव के बली होने पर व्यापार का उत्थान होता है .
कुण्डली से अशुभ कहा जाने वाला छठा भाव कहीं आपके बंधे हुए व्यापार की चाबी तो नहीं है? इसका विचार हम इन तथ्यों से भी कर सकते हैं .
छठे भाव में चर राशि होने पर व्यापार का भाग्योदय लंबी दूरी पर होगा अर्थात लाभ के लिये माल की सप्लाई लंबी दूरी पर करनी चाहिये.
छठे भाव में स्वगृही ग्रह हो तो तो व्यवसाय का उत्थान व्यवसाय स्थल के आस-पास ही होगा.
छठें व दसवें भाव में अथवा छठे व ग्यारहवें भाव में स्थान परिवर्तन होने पर (भावात भावम से केन्द्र त्रिकोण में) व्यवसाय का उत्थान उच्च स्तरीय होगा .
छठे भाव में उच्च स्तरीय ग्रह होने अथवा षष्ठेश के उच्च होने पर व्यवसाय का स्वरूप बडे स्तर का होकर उसका विस्तृत क्षेत्र लंबी दूरी का अथवा विदेश में भी हो सकता है .
छठा भाव कर्ज/ऋण का भाव भी है और आज बिना लोन के व्यापार की कल्पना भी नहीं कर सकते . अतः छठे भाव में शुभ ग्रह होने या शुभ ग्रह की युति होने पर ऋणानुबंध में शीघ्र सफलता मिल जाती है . अशुभ ग्रहों की युति होने पर बैंक आदि में फायनेंस में कठिनाई/उलझनें आती हैं .
छठे भाव में नीच ग्रह होने अथवा षष्ठेश का नीच होने के कारण व्यवसाय के भाग्य को अर्थात व्यवसायिक गतिविधियों में जातक को नीचा देखना पडता है अथवा व्यवसाय में अवैध व नीच कार्यों की अधिकता रहती है .
छठे भाव में पाप ग्रहों की युति होने अथवा पाप ग्रहों की स्थिति के कारण व्यापार में उपद्रव व भारी उथल- पुथल की संभावना रहती है .
छठे भाव में सूर्य एवं ग्रहों के फल से जगायें व्यापार का भाग्य :
सूर्य चिकित्सा व शासन (राज्य) का प्रबल कारक माना गया है . अतः छठे भाव में सूर्य होने पर अपने व्यापार को शासन से जोडने का प्रयास करें . आपका व्यापार चाहे जो हो यदि वह शासन या चिकित्सा के क्षेत्र से कुछ अंश भी जुडा है तो शीघ्र ही लाभदायक होगा .
छठे भाव में चन्द्र का फल :
चन्द्रमा मन का प्रबल कारण होकर पानी दूध आदि तरल पदार्थों का प्रतिनिधित्व करता है . अतः छठे भाव में चन्द्रमा होने पर अपने व्यापार को किसी न किसी विधि द्वारा तरल पदार्थों से जोडने का प्रयास करेंगे तो शीघ्र ही आपके साथ व्यापार की भी भाग्योन्नति होगी . मन चंचल होने से चलता- फिरता बिजनेस या फिल्ड वर्क का जॉब लाभकारी रहेगा .
छठे भाव में मंगल का फल :
मंगल शत्रु पक्ष का प्रबल कारक होकर तकनीकी व क्षेत्र के साथ अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है . अतः छठे भाव में मंगल के कारण व्यापार को बार- बार शत्रुओं की पीडा सहनी पड़ती है या शत्रु पक्ष से हानि होती है . साथ ही विरोधियों का सामना करने के कारण व्यापार को आगे बढाने में अत्यधिक श्रम साध्य कार्य करना पडता है . यहाँ हम टैक्निकल फिल्ड से टच करके अपने व्यापार का भाग्य जगा सकते है .
छठे भाव में बुध का फल :
बुध कला विशेष का प्रबल कारक होकर मित्रों व सहयोगियों का प्रतिनिधित्व करता है. अतः छठे भाव में बुध के होने पर व्यापार को कला विशेष जैसे फेंसी गुडस आदि से जोडने पर अथवा कलात्मक वस्तुओं से सुसज्जित करने पर लाभ प्राप्त होता है. दूसरा व्यापार में मित्रों व अधिनस्थ कर्मचारियों को अधिक महत्त्व देने पर भी व्यापार का भाग्योदय होता है .
छठे भाव में गुरु का फल :
गुरु धर्म कर्म व शिक्षा का प्रबल कारक ग्रह है . अतः जब भी छठे भाव में गुरु हो तो व्यापार को किसी धर्म सम्प्रदाय या धार्मिक स्थल अथवा कर्मकांड से संबंधित रखें अथवा शिक्षा के क्षेत्र से जोडें तो शीघ्र ही आपका व्यापार भाग्योन्नति की ओर चल पडेगा .
छठे भाव में शुक्र का फल :
शुक्र स्त्री जाति व सौंदर्य का प्रबल कारक ग्रह है . अतः छठे भाव में शुक्र के होने पर व्यापार में स्त्री जाति व सुन्दरता या सौंदर्य कारक वस्तुओं को प्रधानता दें, और फिर देखें आपके व्यवसाय का भाग्य कैसे अचानक करवट लेता है .
छठे भाव में शनि का फल :
शनि शुद्ध (नीच) जाति व जनता का प्रबल कारक है . अतः छठे भाव में शनि के होने पर अपने व्यापार को जनता के कार्यो से जोडे़ रखें . व्यापार में नीच कर्म अथवा शुद्ध जाति को महत्त्व देने पर व्यापार का भाग्य पलट जायेगा .
छठे भाव में राहु /केतु का फल :
सारे आकस्मिक घटनाक्रमों व उतार- चढाव का प्रबल कारक राहु/केतु को माना गया है . छठे भाव में राहु/केतु के होने पर व्यापार को भारी उतार- चढा़व का सामना करना पड़ता है . अथवा व्यापार में कभी भी स्थिरता नहीं रहती है . ऐसी स्थिति में व्यापार से लाभ प्राप्ति के लिए व्यापार को फिल्ड वर्क से जोड दें अथवा एक स्थायी व्यापार के साथ- साथ छोटे दर्जे के अन्य व्यापार भी करते रहें और उन्हें बार- बार बदलते रहें .
कैसे जगायें व्यापार का भाग्य:
स्वयं के भाग्य के साथ- साथ व्यापार का भाग्य जगाने के लिये हमें अपने भाग्य भाव के स्वामी क़ी उपासना के साथ व्यापार के भाग्य स्थान व पंचम भाव अर्थात (लग्न से द्वितीय व षष्ठ भाव) के रुद्राक्ष को एक साथ पेण्डल के रूप में धारण करना चाहिये . इससे स्वयं के भाग्य के साथ- साथ व्यापार में भाग्योन्नति होगी और असीमित लाभ के अवसरों की प्राप्ति भी होगी.
Astro nirmal
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-