सोलह सोमवार व्रत: विधि, कथा और उद्यापन

सोलह सोमवार व्रत: विधि, कथा और उद्यापन

प्रेषित समय :18:28:29 PM / Sat, Jul 12th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

सोलह सोमवार व्रत भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है. यह व्रत विशेष रूप से सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करने वाले, वैवाहिक समस्याओं का सामना कर रहे लोगों के लिए और मनोवांछित जीवनसाथी की प्राप्ति हेतु किया जाता है. इस व्रत की शुरुआत स्वयं माता पार्वती ने की थी, जब उन्होंने भगवान शिव को पुनः प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी.

यह व्रत लगातार 16 सोमवार तक रखा जाता है. संभव हो तो इसे श्रावण मास (सावन) से शुरू करना अत्यंत शुभ माना जाता है.

सोलह सोमवार व्रत की पूजा विधि
तैयारी और सामग्री
सोमवार के दिन प्रातःकाल उठकर नित्यकर्म से निवृत होकर स्नान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को साफ व शुद्ध करें.

पूजा सामग्री:

भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र

जल और गंगाजल

धूप, दीप और इत्र

सफेद चंदन, रोली और अष्टगंध

बेलपत्र, भांग, धतूरा और सफेद पुष्प

सफेद वस्त्र

नैवेद्य: लगभग आधा किलो (आधा सेर) गेहूं के आटे को घी में भूनकर गुड़ मिलाकर तैयार किया गया प्रसाद.

व्रत संकल्प (संकल्प)
किसी भी पूजा या व्रत को शुरू करने से पहले संकल्प लेना आवश्यक है. व्रत के पहले दिन संकल्प लिया जाता है. हाथ में जल, अक्षत, पान का पत्ता, सुपारी और कुछ सिक्के लेकर निम्न मंत्र के साथ संकल्प करें:

संकल्प मंत्र:

ॐविष्णुर्विष्णुर्विष्णुः.श्रीमद्भगवतोमहापुरुषस्यविष्णोराज्ञयाप्रवर्तमानस्याद्यश्रीब्रह्मणोद्वितीयपरार्द्धेश्रीश्वेतवाराहकल्पेवैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमेकलियुगेप्रथमचरणेजम्बूद्वीपेभारतवर्षेभरतखण्डेआर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशेपुण्यप्रदेशेबौद्धावतारेवर्तमानेयथानामसंवत्सरेअमुकामनेमहामांगल्यप्रदेमासानाम्‌उत्तमेअमुकमासेअमुकपक्षेअमुकतिथौअमुकवासरान्वितायाम्‌अमुकनक्षत्रेअमुकराशिस्थितेसूर्येअमुकामुकराशिस्थितेषुचन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषुसत्सुशुभेयोगेशुभकरणेएवंगुणविशेषणविशिष्टायांशुभपुण्यतिथौसकलशास्त्रश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्तिकामःअमुकगोत्रोत्पन्नःअमुकनामअहंअमुककार्यसिद्धियार्थसोलहसोमवारव्रतप्रारम्भकरिष्ये.
सभी सामग्री भगवान शिव के सामने छोड़ दें और दोनों हाथ जोड़कर उनका ध्यान करें.

आवाहन और पूजन
हाथ में अक्षत और फूल लेकर भगवान शिव का आवाहन करें:

आवाहन मंत्र:

ऊँशिवशंकरमीशानंद्वादशार्द्धंत्रिलोचनम्.उमासहितंदेवंशिवंआवाहयाम्यहम्॥
फूल और अक्षत भगवान शिव को अर्पित करें.

सबसे पहले जल समर्पित करें, उसके बाद सफेद वस्त्र अर्पित करें.

सफेद चंदन से तिलक लगाएं और उस पर अक्षत लगाएं.

सफेद पुष्प, धतूरा, बेल-पत्र, भांग और पुष्पमाला चढ़ाएं.

अष्टगंध, धूप और दीप अर्पित करें.

नैवेद्य (प्रसाद) और ऋतु फल भगवान को अर्पित करें.

व्रत कथा श्रवण और आरती
पूजन के बाद सोलह सोमवार व्रत कथा को पढ़ें या सुनें. यह सुनिश्चित करें कि कम से कम एक व्यक्ति शुद्ध होकर और स्वच्छ वस्त्र धारण करके कथा सुने.

तत्पश्चात भगवान शिव की आरती करें. पहले दीप आरती और फिर कर्पूर जलाकर कर्पूरगौरं मंत्र से आरती करें.

सभी उपस्थित लोगों को आरती दें और स्वयं भी लें.

सामर्थ्य अनुसार शिव स्तोत्र, चालीसा या शिवपुराण का पाठ करें.

16 सोमवार का विशेष अनुष्ठान
व्रत के दिन भक्तिपूर्वक उपवास रखें. आधे किलो (आधा सेर) गेहूं के आटे को घी में भूनकर गुड़ मिलाकर अंगा (प्रसाद) बनाएं. इसे तीन बराबर भागों में बांटें.

प्रदोष काल में भगवान शिव का पूजन करें.

एक भाग अंगा भगवान शिव को अर्पित करें.

शेष दो भाग प्रसाद स्वरूप उपस्थित लोगों में बांटें, और स्वयं भी ग्रहण करें.

सोलह सोमवार व्रत कथा
एक बार भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण करते हुए विदर्भ देश के अमरावती नगर में आए. वहां एक शिव मंदिर में उन्होंने रुकने का निर्णय लिया. एक दिन पार्वती जी ने शिवजी से चौसर खेलने को कहा. खेल शुरू हुआ और मंदिर का पुजारी आरती के लिए आया. पार्वती जी ने पुजारी से पूछा कि खेल में कौन जीतेगा. पुजारी ने, जो शिवजी का भक्त था, तुरंत कहा कि महादेव जी जीतेंगे.

जब खेल समाप्त हुआ, तो पार्वती जी जीत गईं और शिवजी हार गए. क्रोधित पार्वती जी ने पुजारी को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया, भले ही शिवजी ने उन्हें रोकने का प्रयास किया था.

पुजारी को कोढ़ हो गया और वह काफी समय तक पीड़ित रहा. एक दिन, एक अप्सरा मंदिर में आई और उसने पुजारी को 16 सोमवार व्रत करने की विधि बताई: सोमवार को साफ कपड़े पहनकर आधा किलो आटे की पंजीरी बनाएं, उसे तीन भागों में बांटें, और प्रदोष काल में शिवजी की पूजा करें. एक भाग प्रसाद रूप में बांटे. 17वें सोमवार को एक चौथाई गेहूं के आटे का चूरमा बनाकर अर्पित करें.

पुजारी ने यह व्रत किया और 16 सोमवार के बाद उसका कोढ़ दूर हो गया.

जब शिवजी और पार्वती जी पुनः उस मंदिर में लौटे और पुजारी को स्वस्थ देखा, तो पुजारी ने उन्हें व्रत की महिमा बताई. पार्वती जी ने भी यह व्रत किया और फलस्वरूप उनका पुत्र कार्तिकेय, जो उनसे दूर हो गए थे, वापस लौट आए और आज्ञाकारी बन गए.

कार्तिकेय ने भी इस व्रत की महिमा सुनी और विदेश गए अपने ब्राह्मण मित्र से मिलने के लिए यह व्रत रखा. 16 सोमवार पूरे होने पर उनका मित्र उनसे मिलने लौट आया. ब्राह्मण मित्र ने भी विवाह की इच्छा से यह व्रत किया.

एक दिन, एक राजा अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर कर रहा था. राजा ने शर्त रखी कि जिस व्यक्ति के गले में हथिनी वरमाला डालेगी, उसी से राजकुमारी का विवाह होगा. उस हथिनी ने उसी ब्राह्मण के गले में वरमाला डाली, और उसका विवाह राजकुमारी से हो गया.

राजकुमारी ने जब ब्राह्मण से पूछा कि उसे यह सौभाग्य कैसे मिला, तो उसने सोलह सोमवार व्रत का फल बताया. राजकुमारी ने भी पुत्र प्राप्ति के लिए यह व्रत रखा और उसे एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई.

जब पुत्र बड़ा हुआ, तो उसने भी राजपाट की इच्छा से यह व्रत रखा. उस समय एक राजा अपनी पुत्री के विवाह के लिए वर तलाश रहा था, और उस बालक को योग्य माना गया. राजा ने अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया. राजा की मृत्यु के बाद वह बालक राजा बन गया.

राजा बनने के बाद भी वह सोलह सोमवार व्रत करता रहा. एक दिन 17वें सोमवार को उसने अपनी पत्नी को पूजा के लिए मंदिर बुलाया, लेकिन रानी ने स्वयं न आकर अपनी दासी को भेज दिया. पूजा समाप्त होने पर आकाशवाणी हुई कि राजा अपनी पत्नी को महल से दूर रखे, अन्यथा उसका विनाश हो जाएगा.

राजा ने रानी को महल से बाहर निकाल दिया. रानी भूखी-प्यासी भटकते हुए कई स्थानों पर गई, लेकिन उसके दुर्भाग्य के कारण जहां भी वह जाती, वहां कुछ न कुछ अनहोनी होती. वह एक बुढ़िया के पास गई, तो उसकी टोकरी उड़ गई. वह एक तेली के घर गई, तो सारे तेल के घड़े फूट गए. वह एक तालाब के पास पहुंची, तो पानी में कीड़े पड़ गए. जिस पेड़ के नीचे वह सोती, उसकी पत्तियां झड़ जातीं.

लोग इस घटना को देखकर मंदिर के पुजारी के पास गए. पुजारी ने राजकुमारी की हालत देखकर उसे अपने आश्रम में रहने को कहा. वहां भी जो खाना या पानी वह लाती, उसमें कीड़े पड़ जाते. पुजारी ने उससे पूछा कि यह सब क्यों हो रहा है. राजकुमारी ने शिव पूजा में न जाने वाली अपनी कहानी सुनाई. पुजारी ने उसे फिर से सोलह सोमवार व्रत करने की सलाह दी.

राजकुमारी ने सोलह सोमवार व्रत किया. 17वें सोमवार को राजा को अपनी पत्नी की याद आई और उसने अपने आदमियों को उसे ढूंढने भेजा. वे उसे पुजारी के आश्रम में ढूंढ लाए. पुजारी ने कहा कि राजा स्वयं आकर उसे ले जाए. राजा वहां आया और राजकुमारी को वापस महल लेकर गया.

इस प्रकार, जो भी भक्तिपूर्वक सोलह सोमवार व्रत करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

16 सोमवार व्रत उद्यापन विधि
उद्यापन 16 सोमवार व्रत पूर्ण होने पर 17वें सोमवार को किया जाता है. श्रावण मास के प्रथम या तृतीय सोमवार को उद्यापन करना सबसे उत्तम माना जाता है. कार्तिक, श्रावण, ज्येष्ठ, वैशाख या मार्गशीर्ष मास के किसी भी सोमवार को भी उद्यापन किया जा सकता है. इस दिन उमा-महेश और चन्द्रदेव का संयुक्त रूप से पूजन और हवन किया जाता है.

उद्यापन की प्रक्रिया:

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और चार द्वारों का मंडप तैयार करें.

वेदी बनाकर देवताओं का आह्वान करें और कलश की स्थापना करें.

कलश में पानी से भरा पात्र रखें.

पंचाक्षर मंत्र (ॐ नमः शिवाय) से भगवान शिव को वहां स्थापित करें.

गंध, पुष्प, धूप, नैवेद्य, फल, दक्षिणा, ताम्बूल, फूल, दर्पण आदि अर्पित करें.

भगवान शिव को पंच तत्वों से स्नान कराएं और हवन प्रारंभ करें.

हवन की समाप्ति पर आचार्य को दक्षिणा, आभूषण और गाय का दान करें.

पूजा का सभी सामान भी उन्हें दें और उन्हें भोजन कराकर विदा करें.

17वें सोमवार को विशेष रूप से पाव भर गेहूं के आटे की बाटी, घी और गुड़ मिलाकर चूरमा बनाएं, भोग लगाएं और प्रसाद बांटें.

महत्वपूर्ण आरती, स्तोत्र और मंत्र
महादेव जी की आरती

ॐजयगंगाधरजयहरजयगिरिजाधीशा.त्वंमांपालयनित्यंकृपयाजगदीशा॥हर...॥
(यहां मूल पाठ में दी गई संपूर्ण महादेव जी की आरती का पाठ किया जाता है.)

त्रिदेवों की आरती (ॐ जय शिव ओंकारा)
ॐजयशिवओंकारा....एकाननचतुराननपंचांननराजे.हंसासंन,गरुड़ासन,वृषवाहनसाजे॥ॐजयशिवओंकारा...
(यहां मूल पाठ में दी गई संपूर्ण त्रिदेवों की आरती का पाठ किया जाता है.)

रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थलेगलेऽवलम्ब्यलम्बितांभुजंगतुंगमालिकाम्‌.डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयंचकारचंडतांडवंतनोतुनःशिवःशिवम॥1॥
(यहां मूल पाठ में दिया गया संपूर्ण शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किया जाता है.)

धनदायक शिव कुबेर मंत्र
यह मंत्र विशेष रूप से आर्थिक समस्याओं को दूर करने और धन प्राप्ति के लिए प्रभावी माना जाता है.

मंत्र: ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:

मंत्र जप विधि:

इस मंत्र का जाप व्रत के दिन सुविधा अनुसार, विशेषकर सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में करना चाहिए.

स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर शिव मंदिर में प्रवेश करें.

यदि संभव हो तो बिल्व वृक्ष की जड़ों के समीप बैठकर जाप करें.

इस मंत्र का एक हजार बार जाप करने से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और दरिद्रता समाप्त होती है.

जाप करते समय भगवान शिव का ध्यान अवश्य करें, क्योंकि कुबेर देव भगवान शिव को अपना गुरु मानते हैं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-