पलपल संवाददाता, जबलपुर। मध्यप्रदेश के प्रशासनिक तंत्र की सुस्ती का शर्मनाक उदाहरण सामने आया है। जबलपुर संभागीय कमिश्नर कार्यालय ने पाटन तहसील से जुड़े एक ज़मीन विवाद की अपील 07 मार्च 2024 को खारिज कर दी थी लेकिन 16 महीने बीत जाने के बाद भी फाइल पाटन ैक्ड कार्यालय तक नहीं पहुंची हैए जो महज़ 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
इस देरी ने न सिर्फ संबंधित पक्षों को उलझन में डाल रखा है बल्कि यह दर्शाता है कि राजस्व तंत्र में जवाबदेही किस कदर गायब हो चुकी है। प्रकरण क्रमांक 145,27/15,16 में अदम-पैरवी के आधार पर आदेश पारित कर दिया गया। लेकिन रिकार्ड वापसी की वैधानिक प्रक्रिया आज तक पूरी नहीं हुई है। यह लापरवाही कोई साधारण चूक नहीं, बल्कि संस्थागत उदासीनता का घातक नमूना है।
क्या जांच के घेरे में आएगा कमिश्नर कार्यालय-
सूत्र बताते हैं कि ऐसा पहला मामला नहीं है। कमिश्नर कार्यालय में कई अन्य फाइलें महीनों से पड़ी धूल फांक रही हैं। जिनमें निर्णय हो चुका है, लेकिन जिलों और तहसीलों को रिकॉर्ड नहीं लौटाया गया है। क्या यह सिर्फ फाइल गुमशुदगी है या जानबूझकर प्रशासनिक शिथिलता। यह सवाल अब राजस्व विभाग, संभागीय आयुक्त और मुख्य सचिव तक पहुंचना चाहिए और जांच का विषय बनना चाहिए।
अब सवाल जनता का है-
अगर महज़ 30 किलोमीटर की दूरी तय करने में 16 महीने लगें, तो न्याय की उम्मीद कितने वर्षों में पूरी होगी।




