नई दिल्ली.अगर हाल के महीनों में आपने सब्जियों, चाय-कॉफी या दैनिक उपयोग की चीज़ों की कीमतों में तेज़ उछाल महसूस किया है, तो यह केवल मंडियों की मांग और आपूर्ति का मामला नहीं है. एक नई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार, भारत समेत 18 देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की चरम घटनाओं ने खाद्य वस्तुओं की कीमतों को भारी रूप से प्रभावित किया है.
इस अध्ययन को Barcelona Supercomputing Centre के वैज्ञानिक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ के नेतृत्व में तैयार किया गया है, जिसमें भारत, अमेरिका, यूके, जापान, इथियोपिया, स्पेन, ब्राज़ील, दक्षिण कोरिया, घाना जैसे देशों के आंकड़े शामिल हैं.
भारत में हीटवेव से प्याज़ और आलू 80% तक महंगे
रिपोर्ट के अनुसार, मई 2024 में भारत में पड़ी हीटवेव के बाद प्याज़ और आलू की कीमतों में 80% तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई. वैज्ञानिकों ने बताया कि यह गर्मी सामान्य से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक थी और इसे एक "असामान्य और गंभीर" जलवायु घटना बताया गया.
भारत जैसे देश में, जहां ये सब्ज़ियाँ आम आदमी की रसोई की रीढ़ हैं, ऐसी कीमतों में उछाल का असर सीधे आम जनता की थाली पर पड़ता है. दुनिया के अन्य देशों में क्या हुआ?
यह समस्या केवल भारत तक सीमित नहीं है. रिपोर्ट में अन्य देशों के भी ऐसे उदाहरण दिए गए हैं जहां जलवायु आपदाओं के कारण खाद्य कीमतों में भारी वृद्धि हुई:
यूके: जनवरी–फरवरी 2024 के बीच आलू की कीमतें 22% बढ़ीं. कारण – भारी सर्दियों की बारिश, जो जलवायु परिवर्तन से 20% ज़्यादा और 10 गुना अधिक संभावित पाई गई.
अमेरिका (कैलिफ़ोर्निया और एरिज़ोना): 2022 की गर्मियों के सूखे और जल संकट के कारण नवंबर 2022 में सब्ज़ियों की कीमतें 80% तक बढ़ गईं.
इथियोपिया: 2022 के सूखे के बाद, मार्च 2023 में खाद्य कीमतों में 40% की वृद्धि हुई. यह सूखा 40 वर्षों में सबसे भीषण था.
स्पेन और इटली: 2022–23 के सूखे के कारण जैतून के तेल की कीमतें यूरोप में 50% तक बढ़ गईं.
आइवरी कोस्ट और घाना: 2024 की हीटवेव के बाद कोको की वैश्विक कीमतों में 280% तक उछाल आया. ये देश दुनिया के 60% चॉकलेट उत्पादन में योगदान करते हैं.
ब्राज़ील और वियतनाम: सूखे और रिकॉर्ड हीटवेव के चलते 2023–24 में कॉफ़ी की कीमतें क्रमशः 55% और 100% तक बढ़ीं.
जापान: अगस्त 2024 की हीटवेव के बाद चावल की कीमतें 48% बढ़ीं — देश का अब तक का सबसे गर्म गर्मी का मौसम रहा.
दक्षिण कोरिया: अगस्त 2024 में गोभी की कीमतें 70% तक बढ़ गईं.
पाकिस्तान: अगस्त 2022 की बाढ़ के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य कीमतें 50% बढ़ गईं — उस समय 547% अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई थी.
ऑस्ट्रेलिया: 2022 की बाढ़ के बाद लेट्यूस की कीमतें 300% तक बढ़ गईं — यह देश की सबसे बड़ी बाढ़ बीमा घटना बनी.
गरीबों पर सबसे गंभीर असर
Food Foundation की रिपोर्ट के अनुसार, पोषणयुक्त खाद्य पदार्थ आज भी कम पौष्टिक खाद्य की तुलना में प्रति कैलोरी दो गुना महंगे हैं. ऐसे में जब महंगाई बढ़ती है, तो कम-आय वाले परिवार महंगे फल-सब्ज़ियों को छोड़कर सस्ते और पोषणहीन विकल्प अपनाते हैं.
इससे बच्चों में कुपोषण, और बड़ों में हृदय रोग, डायबिटीज़ और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है. रिपोर्ट यह भी बताती है कि खराब डाइट और खाद्य असुरक्षा का सीधा असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है.
भारत के लिए चेतावनी
भारत जैसे देश में, जहां पहले से ही बड़ी आबादी पोषण की कमी और स्वास्थ्य असमानताओं से जूझ रही है, वहां जलवायु परिवर्तन से जुड़ी ये घटनाएं एक साथ दोहरी मार बनकर उभर रही हैं — एक तरफ खेती और खाद्य संकट, दूसरी तरफ स्वास्थ्य और पोषण संकट.
वैश्विक मंच पर चर्चा: UN सम्मेलन की तैयारी
यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब 27 जुलाई को UN Food Systems Summit आयोजित होने वाला है. यह शिखर सम्मेलन इथियोपिया और इटली की संयुक्त मेज़बानी में होगा — और दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों देश खाद्य संकट से प्रभावित देशों की सूची में शामिल हैं.
क्या है आगे की राह?
रिपोर्ट के प्रमुख लेखक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ ने चेतावनी दी:
“जब तक हम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को पूरी तरह बंद नहीं करते, ये चरम मौसम और बढ़ेंगे. और इनका असर सीधे आपकी थाली पर पड़ेगा.”
यह सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि साफ संकेत है — जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की नहीं, बल्कि आपके आज की थाली का संकट बन चुका है.
अब सवाल यह नहीं कि मौसम कब बदलेगा — सवाल यह है कि हम कब बदलेंगे?
अगर जलवायु बदलाव ने खेती को संकट में डाल दिया है, तो आगे थाली भरने की जंग और कठिन होने वाली है.

