रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के कारण और उनके प्रभावी उपाय

रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के कारण और उनके प्रभावी उपाय

प्रेषित समय :14:23:51 PM / Fri, Jul 25th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

रावण भले ही राक्षस था लेकिन उसने अपनी क्षमता पर कई गूढ़ विद्याएँ हासिल की थी. उन्हीं ज्ञान और विद्याओं को संकलित कर उसने रावण संहिता लिखी थी. रावण ने रावण संहिता में पितृ दोष से उत्पन्न होने वाली जीवन में समस्याएं, उसके लक्षण और उसके निवारण के बारे में भी विस्तृत व्याख्या की है. पितृ दोष तब उत्पन्न होता है जब हमारे पूर्वज हमसे अप्रसन्न होते हैं या उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती. रावण संहिता के अनुसार, यदि जातक के कुंडली में पितृ दोष हो, तो उसके जीवन में कई प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं.रावण संहिता के अनुसार

पितृ दोष के प्रमुख कारण

यदि पूर्वजों के कर्म अधूरे रह गए हों या उन्हें मोक्ष न मिला हो, तो उनकी आत्मा भटक सकती है और संतान के जीवन में पितृ दोष उत्पन्न कर सकती है.
यदि व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान विधिपूर्वक नहीं करता है, तो पितृ नाराज हो जाते हैं.
यदि व्यक्ति या उसके पूर्वजों ने अन्याय, अधर्म, हत्या, स्त्री या ब्राह्मण का अपमान किया हो, तो पितृ दोष बन सकता है.
यदि किसी पूर्वज को किसी संत, देवी-देवता, गुरु या पीड़ित व्यक्ति का श्राप मिला हो, तो उसकी संतान को पितृ दोष झेलना पड़ सकता है.
रावण संहिता के अनुसार, यदि सूर्य, राहु, केतु, शनि और मंगल पीड़ित हों या नीच राशि में हों, तो पितृ दोष उत्पन्न होता है.

रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के लक्षण

संतान की प्राप्ति में बाधा, संतान का स्वास्थ्य खराब रहना या संतान का कुपथ पर चलना.
धन की हानि, उधार बढ़ना, अचानक व्यापार में घाटा.
विवाह में देरी, पति-पत्नी में कलह, तलाक जैसी स्थिति.
परिवार के सदस्यों को लगातार गंभीर बीमारियां होना.
घर में क्लेश, संपत्ति विवाद, घर में दरिद्रता का वास.
बार-बार घर के सदस्यों को चोट लगना या अकाल मृत्यु होना.
रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के उपाय
अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या और श्राद्ध पक्ष में पितरों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करना अनिवार्य बताया गया है. गया, वाराणसी, प्रयागराज, काशी या हरिद्वार में पिंडदान करने से पितृ दोष समाप्त होता है.
हर अमावस्या को पितरों के नाम से जल, तिल और चावल अर्पित करें. किसी योग्य ब्राह्मण से पितृ यज्ञ और पितृ शांति पूजा करवाएं.
हर शनिवार को पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं और घी का दीपक जलाकर "ॐ नमः भगवते वासुदेवाय नमः" का 108 बार जाप करें.
पितृ दोष से मुक्ति के लिए गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों को भोजन कराना बहुत शुभ माना जाता है. विशेषकर कौवों को भोजन देने से पितृ प्रसन्न होते हैं, क्योंकि उन्हें पितरों का प्रतीक माना जाता है.
हर श्राद्ध पक्ष में "ओम नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें. महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करने से पितृ दोष शांत होता है. नर्मदेश्वर शिवलिंग पर जल अर्पित करें और "ॐ पितृभ्यो नमः" मंत्र का जाप करें.
हर अमावस्या को एक पंचमुखी दीपक जलाकर दक्षिण दिशा की ओर रखें और "ॐ पितृदेवाय नमः" मंत्र का 21 बार जाप करें.
प्रत्येक दिन स्नान के बाद काले तिल और जल अर्पण करें और पितरों का ध्यान करें. यह उपाय पितृ दोष को शांत करने में अत्यंत प्रभावी होता है.
हर अमावस्या या श्राद्ध के दिन गरीबों, ब्राह्मणों और अनाथों को भोजन कराना बहुत लाभकारी माना गया है. विशेष रूप से गायों को हरा चारा, रोटी और गुड़ खिलाने से पितृ दोष का नाश होता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-