काम के घंटे या ‘स्टार एटीट्यूड’? दीपिका बनाम फरा विवाद में बॉलीवुड की कार्य संस्कृति पर बहस

काम के घंटे या ‘स्टार एटीट्यूड’? दीपिका बनाम फरा विवाद में बॉलीवुड की कार्य संस्कृति पर बहस

प्रेषित समय :20:04:06 PM / Sat, Jul 26th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण और निर्देशक-कोरियोग्राफर फराह खान के बीच हाल ही में एक अप्रत्यक्ष विवाद सामने आया है जिसने इंडस्ट्री में काम की शर्तों और कलाकारों की गरिमा को लेकर गंभीर चर्चा छेड़ दी है। यह मामला फिल्म ‘स्पिरिट’ को लेकर शुरू हुआ जिसमें दीपिका को निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा के साथ काम करना था, पर उन्होंने फिल्म छोड़ दी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके पीछे कारण थे—अनियमित शेड्यूल, 8 घंटे से अधिक की शूटिंग ड्यूटी और तयशुदा पेमेंट में अस्पष्टता।

यही वह बिंदु है जहां से असल विवाद ने तूल पकड़ा। फराह खान ने एक सार्वजनिक बयान में बिना किसी का नाम लिए कहा कि "जब आप लाखों कमा रहे हों, तो 8 घंटे काम करना कोई अत्याचार नहीं है।" यह बात सोशल मीडिया पर तेजी से फैली और इसे दीपिका के संदर्भ में देखा गया। लोगों ने इसे एक तरह की passive-aggressive criticism माना, जो दीपिका की पेशेवर सीमाओं और आत्मसम्मान को नीचा दिखाने जैसा था।

दीपिका की चुप्पी, लेकिन प्रभावशाली संदेश

हालाँकि दीपिका ने इस बयान पर कोई सीधा उत्तर नहीं दिया, लेकिन उनके करीबियों के हवाले से यह बात साफ हुई कि वह काम के घंटों को लेकर एक स्पष्ट और स्वस्थ कार्यसंस्कृति चाहती हैं। यह मुद्दा सिर्फ किसी एक फिल्म का नहीं, बल्कि उस व्यापक माहौल का है जहां कलाकारों से उम्मीद की जाती है कि वे काम की अमानवीय शर्तों को 'स्टारडम की कीमत' समझकर सह लें।

फरा खान की सोच या पुराने सिस्टम की जड़ता?

फराह खान जैसी वरिष्ठ हस्तियों की प्रतिक्रिया को दो दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। एक, वह पुराने दौर की प्रतिनिधि हैं जहां 'समर्पण' का मतलब हर कीमत पर काम करना था। लेकिन आज जब स्वास्थ्य, मेंटल वेलबीइंग और प्रोडक्शन एथिक्स को महत्व मिल रहा है, ऐसे बयानों को 'पिछड़ी सोच' माना जा सकता है। यह वही मानसिकता है जिसने इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच से लेकर अत्यधिक वर्कलोड तक कई अस्वस्थ परंपराओं को जन्म दिया।

काम के घंटे: बॉलीवुड में अनलिखा अनुबंध

बॉलीवुड आज भी एक संगठित क्षेत्र की तरह काम नहीं करता। शूटिंग शेड्यूल अक्सर अनिश्चित, असमय और थकाऊ होते हैं। अमेरिका या यूरोप की फिल्म इंडस्ट्री में यूनियन और समयबद्धता का पालन होता है, लेकिन भारत में अब भी 'प्रोड्यूसर की मर्जी ही कायदा' मानी जाती है। दीपिका जैसी वरिष्ठ अभिनेत्री का यह रुख एक नया उदाहरण पेश करता है कि इंडस्ट्री के शीर्ष कलाकार भी अब अपनी सीमाएं तय करना चाहते हैं।

यह विवाद सिर्फ दो लोगों का टकराव नहीं है, बल्कि बॉलीवुड के कामकाजी माहौल की सड़ी-गली व्यवस्था पर एक चोट है। दीपिका पादुकोण जैसी कलाकार यदि गरिमा के साथ काम करने की मांग कर रही हैं, तो उसे 'नखरे' नहीं समझा जाना चाहिए। फरा खान जैसे वरिष्ठ नामों को अब आत्ममंथन करना होगा कि वे नई पीढ़ी की मांगों को समझें—या अपनी प्रतिक्रियाओं से एक प्रगतिशील बहस को कुंद करें।

बॉलीवुड को अब तय करना होगा—क्या वह अनुशासन और सम्मान के नए मानकों को स्वीकार करेगा, या पुराने '24x7 काम ही धर्म है' वाले सोच में ही उलझा रहेगा।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-