साइबर ऑडिट अब ज़रूरत नहीं ज़िम्मेदारी है, बिहार से शुरू हुई डिजिटल सुरक्षा की नई पहल

साइबर ऑडिट अब ज़रूरत नहीं ज़िम्मेदारी है, बिहार से शुरू हुई डिजिटल सुरक्षा की नई पहल

प्रेषित समय :23:03:00 PM / Sat, Jul 26th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अभिमनोज
सुरक्षा की सबसे गूंगी चेतावनी वही होती है जो दिखती नहीं. और आज के दौर में साइबर ख़तरा ठीक वैसा ही है—अदृश्य, पर सर्वव्यापी. यह बम की तरह नहीं गिरता, यह चुपचाप हमारी स्क्रीन, डेटा और सिस्टम के ज़रिए हमारी आत्मा में सेंध लगा देता है.

बिहार सरकार ने हाल ही में सभी सरकारी विभागों, कार्यालयों और डिजिटल प्रतिष्ठानों में साइबर सुरक्षा ऑडिट को अनिवार्य किया है. यह फ़ैसला एक सूखी सरकारी सूचना नहीं, बल्कि एक डिजिटल आत्म-निरीक्षण है—इस बात की जांच कि क्या हमारी संस्थाएँ, हमारे सिस्टम, और उससे भी बढ़कर, हमारा विश्वास सुरक्षित है?

देश-दुनिया में साइबर खतरे तेजी से बढ़ रहे हैं, लिहाजा साइबर सुरक्षा ऑडिट बेहद महत्वपूर्ण हो गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बिहार में सरकारी वेबसाइटों पर बढ़ते साइबर खतरों के बीच सरकार ने ईओयू (आर्थिक अपराध इकाई) को नोडल एजेंसी बनाकर बड़ी पहल की है और सी-डैक, I4C सहित विभिन्न राष्ट्रीय संस्थानों की मदद से ऑडिट किया जाएगा.

बिहार में साइबर अपराध की बढ़ती घटनाओं और सरकारी संस्थानों की वेबसाइटों पर लगातार हो रहे हमलों को देखते हुए अब सभी विभागों, कार्यालयों और प्रतिष्ठानों की डिजिटल संरचना की समग्र सुरक्षा जांच कराई जाएगी.

साइबर सुरक्षा ऑडिट का उद्देश्य साइबर जोखिमों को कम करना, संभावित डेटा उल्लंघनों को रोकना और संस्थागत आईटी संरचनाओं की सशक्त सुरक्षा सुनिश्चित करना है. इस प्रक्रिया के ज़रिए सूचना सुरक्षा, नेटवर्क सुरक्षा और सिस्टम सुरक्षा उपायों का आकलन किया जा सकेगा, जिससे IT बुनियादी ढांचे की कमजोरियों की पहचान कर उन्हें दूर किया जा सकेगा.

ऑडिट के ज़रिए यह भी स्पष्ट होगा कि सरकारी संस्थानों की वेबसाइटें, डिजिटल सेवाएं, ऑनलाइन लेनदेन और अन्य कार्य साइबर सुरक्षा मानकों पर कितने सुरक्षित हैं. जहां कहीं भी खामियां या चूक मिलेगी, वहां तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई की जाएगी, जिससे भविष्य में किसी साइबर हमले की गुंजाइश न रहे.

इस प्रक्रिया में बिहार सरकार को राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा संस्थानों का तकनीकी सहयोग मिलेगा और विशेषज्ञता के आधार पर विभागों की वेबसाइटों व इंफ्रास्ट्रक्चर का परीक्षण किया जाएगा. सभी सरकारी विभागों और संस्थानों में यह प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से लागू की जाएगी, जिसमें साइबर हाइजीन मानकों और सुरक्षा प्रोटोकॉल की जांच की जाएगी ताकि यह स्पष्ट हो सके कि कहां और कैसी कमजोरियाँ हैं.

उल्लेखनीय है कि हाल ही में एम्स पटना के सिस्टम पर बड़ा साइबर हमला हुआ था. इसके अलावा स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट, डॉयल 112, जल वितरण प्रणाली जैसी प्रमुख सरकारी सेवाओं की वेबसाइटों पर भी साइबर अटैक की कोशिशें हो चुकी हैं. इस पृष्ठभूमि में यह ज़रूरी हो गया था कि राज्य की डिजिटल संरचना को और अधिक मजबूत किया जाए.

इस अभियान की निगरानी ईओयू के एडीजी नैयर हसनैन खान कर रहे हैं. उनका कहना है कि वर्तमान समय में साइबर अपराध सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है. कई बड़े साइबर गैंग और उनके नेटवर्क की पहचान की जा चुकी है और उनके विरुद्ध तेज़ व सख्त कार्रवाई भी की जा रही है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह ऑडिट केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि साइबर सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का ठोस प्रयास है.

साइबर ऑडिट इस विश्वास की मरम्मत है. यह सिर्फ सर्वर की सिक्योरिटी नहीं जांचता, यह सिस्टम की ईमानदारी का परीक्षण है.

अगर यह ऑडिट सही मायनों में लागू होता है, तो यह भारत को उन देशों की पांत में खड़ा करेगा जो डिजिटल युग की जिम्मेदारी समझते हैं. इज़रायल, जर्मनी, सिंगापुर जैसे देशों ने साइबर सुरक्षा को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का हिस्सा बना लिया है, जबकि भारत में यह अब तक केवल आईटी विभागों की "बैकबेंच फाइलों" में सिमटा रहा है. बिहार की यह पहल उस अनदेखी को तोड़ती है.

ईओयू की निगरानी में चल रही यह प्रक्रिया, सी-डैक और I4C जैसे तकनीकी संस्थानों की मदद से आगे बढ़ेगी, लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण होगी—प्रशासन की राजनैतिक और नैतिक प्रतिबद्धता.

हमारा सिस्टम कितना भी आधुनिक क्यों न हो, अगर उसमें सेंध लगाने वाला एक लिंक बचा रह जाए, तो पूरी इमारत गिर सकती है. और भारत जैसे देश में, जहां डिजिटल साक्षरता अभी भी सीमित है, वहां यह गिरावट केवल तकनीकी नहीं—सामाजिक त्रासदी बन सकती है.

तो साइबर ऑडिट एक चेकलिस्ट नहीं है, यह एक डिजिटल चरित्र परीक्षण है. यह हमसे सवाल करता है—क्या हम ईमानदारी से अपने डिजिटल भविष्य को सुरक्षित रखना चाहते हैं, या बस दिखावे का फायरवॉल बनाना चाहते हैं?

और अगर जवाब ‘हाँ’ है, तो यह काम सिर्फ बिहार का नहीं, पूरे भारत का होना चाहिए.

क्योंकि आज की साइबर चेतावनी बम की तरह गिरती नहीं, चुपचाप डेटा से होकर हमारे सिस्टम को निगल जाती है. और उससे लड़ने का एकमात्र रास्ता है—जागरूकता, तैयारी और सक्रिय साइबर निगरानी.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-