भारत का कॉर्पोरेट बॉंड मार्केट ₹10 ट्रिलियन के पार: वित्तीय नवाचार की एतिहासिक छलांग

भारत का कॉर्पोरेट बॉंड मार्केट ₹10 ट्रिलियन के पार: वित्तीय नवाचार की एतिहासिक छलांग

प्रेषित समय :23:24:32 PM / Sat, Jul 26th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली भारत के कॉरपोरेट बॉन्ड मार्केट ने 2025 में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, जिसमें देश की कंपनियों ने कुल ₹10 ट्रिलियन की राशि बॉन्ड्स के माध्यम से जुटाई. यह आंकड़ा भारतीय वित्तीय प्रणाली में बढ़ते आत्मविश्वास, पारदर्शिता और परिपक्वता का प्रमाण माना जा रहा है. निवेशकों और कॉरपोरेट जगत दोनों के लिए यह संकेत है कि अब बैंक ऋणों पर निर्भरता कम हो रही है और पूंजी जुटाने के नए विकल्प विश्वसनीय माने जा रहे हैं.

इस तेज़ी के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक हैं. बेहतर नियामकीय ढांचा, तुलनात्मक रूप से कम ब्याज दरें और म्यूचुअल फंड्स, बीमा कंपनियों व पेंशन फंड्स जैसे संस्थागत निवेशकों की बढ़ती भागीदारी ने इस बदलाव को गति दी है. बॉन्ड के माध्यम से पूंजी जुटाना अब न केवल कम लागत वाला विकल्प बनता जा रहा है, बल्कि यह कंपनियों को लंबी अवधि की स्थिरता और फ्लेक्सिबिलिटी भी प्रदान कर रहा है.

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की ओर से लाए गए नियामकीय सुधारों जैसे कि इन्फॉर्मेशन फाइलिंग में पारदर्शिता, क्रेडिट रेटिंग में मजबूती और द्वितीयक बाज़ार की तरलता ने कॉरपोरेट बॉन्ड्स को एक सुदृढ़ विकल्प के रूप में स्थापित किया है. साथ ही, कंपनियों के बीच भी वित्तीय अनुशासन और कर्ज की गुणवत्ता को लेकर जागरूकता बढ़ी है.

विशेषज्ञों का मानना है कि कॉरपोरेट बॉन्ड मार्केट की यह वृद्धि केवल संख्यात्मक नहीं, बल्कि गुणात्मक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. यह इंगित करता है कि भारत की अर्थव्यवस्था अब वैकल्पिक वित्तीय तंत्रों को अपनाने के लिए तैयार है और पूंजी बाज़ार की संरचना अधिक विविध और संतुलित हो रही है.

बाजार विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्रवृत्ति भविष्य में अधिक कंपनियों को बॉन्ड के ज़रिए पूंजी जुटाने के लिए प्रेरित करेगी, जिससे कॉरपोरेट वित्त में नई गतिशीलता आएगी. इससे ना केवल परियोजनाओं के वित्तपोषण में गति आएगी, बल्कि खुदरा निवेशकों को भी गुणवत्ता वाले डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश का अवसर मिलेगा.

हालांकि, यह भी ध्यान देना होगा कि इस बढ़ते बाजार में जोखिम प्रबंधन, पारदर्शिता और रेगुलेटरी निगरानी और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगी, ताकि निवेशकों का भरोसा बरकरार रह सके.

संक्षेप में, ₹10 ट्रिलियन का यह आंकड़ा सिर्फ एक आर्थिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह भारत की आर्थिक संरचना में बदलाव और वित्तीय नवाचार की दिशा में एक निर्णायक कदम है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-