पलपल संवाददाता, जबलपुर. एमपी में कुपोषण को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई. जिस पर मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा एवं न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने सुनवाई की.
हाईकोर्ट ने सभी जिलों के कलेक्टरों को आदेश दिया है कि वे अपने-अपने जिलों में कुपोषण की स्थिति की रिपोर्ट 4 हफ्ते के भीतर कोर्ट में पेश करें. कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार और मुख्य सचिव से भी जवाब मांगा है. जबलपुर के दीपांकर सिंह ने हाईकोर्ट में यह जनहित याचिका दायर की थी. दीपांकर सिंह की ओर से उनके वकीलों ने कोर्ट को बताया कि सरकार व प्रशासन सिर्फ आंकड़ों का खेल खेल रहे हैं. असली स्थिति बहुत ही खराब है लेकिन उसे छुपाया जा रहा है. बच्चे कमजोर हो रहे हैं, लेकिन सरकार सिर्फ रिपोर्टों में अच्छी तस्वीर दिखा रही है. याचिका में बताया गया कि सरकारी पोषण योजनाओं में प्रोटीन व विटामिन की कमी है.
जिससे बच्चे कमजोर, ठिगने व बीमार हो रहे हैं. पोषण ट्रैकर 2.0 व हेल्थ सर्वे के अनुसार 2025 में कुपोषित बच्चों की संख्या में 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसके अलावा बच्चों व महिलाओं के लिए जो पोषण आहार भेजा जाता है. उसके वितरण और ट्रांसपोर्ट में भी बड़ी गड़बडिय़ां हो रही हैं. कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि पोषण आहार के नाम पर साल 2025 में 858 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है लेकिन जिम्मेदारों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है.
10 लाख बच्चे कुपोषित, 57 प्रतिशत, महिलाएं एनीमिया से पीडि़त-
मध्यप्रदेश में 66 लाख छोटे बच्चे 0.6 साल के हैं जिनमें से 10 लाख से ज्यादा कुपोषित हैं. इनमें 1.36 लाख बच्चे गंभीर रूप से कमजोर हैं. वहीं महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) की दर 57 प्रतिशत है जो बहुत ज्यादा है.
जबलपुर में किराए के नाम पर 1.80 करोड़ रुपए खर्च किए-
याचिका में यह भी बताया गया कि जबलपुर में आंगनबाड़ी केंद्रों के किराए के नाम पर 1.80 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए, जबकि वहां बच्चों की उपस्थिति बहुत कम है. एक आंगनबाड़ी केंद्र में 40-50 बच्चों का रजिस्ट्रेशन होता है, लेकिन आते सिर्फ कुछ ही हैं. इसके बावजूद पूरे बच्चों के हिसाब से खाने और सुविधाओं का पैसा लिया जा रहा है. यह सीधा भ्रष्टाचार है.
वीडियो और झूठी रिपोर्टों का मामला-
रीवा जिले में पोषण आहार को गंदे तरीके से (पैरों से रौंदकर) तैयार करते हुए एक वीडियो वायरल हुआ था. वहीं विदिशा जिले में बच्चों की लंबाई ज्यादा दिखाकर झूठी रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी गई थी. ऐसी गड़बडिय़ां बाकी जिलों में भी हो रही हैं. इसलिए हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए सभी जिलों के कलेक्टरों से सच्चाई बताने वाली रिपोर्ट मांगी है ताकि असली हालत सामने आ सके और बच्चों को सही पोषण मिल सके.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

