आज की युवा पीढ़ी सिर्फ रिवाज़ नहीं, अनुभव जीना चाहती है. और इस सोच से जन्मा है एक अनोखा ट्रेंड-फेक वेडिंग्स. जी हाँ, #ShaadiForTheVibe और #NotActuallyMarried जैसे हैशटैग के साथ सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा यह चलन अब दिल्ली, बेंगलुरु और पुणे जैसे शहरी युवाओं की नई पसंद बन चुका है.
इन “शादियों” में कोई असली दूल्हा-दुल्हन नहीं होता, लेकिन फुल वाइब ज़रूर होती है. पूरा सेटअप होता है-घोड़ी चढ़ती है, बारात निकलती है, डीजे पर डांस होता है, और पारंपरिक लहंगे-शेरवानी में दोस्त-यार जश्न मनाते हैं. फर्क बस इतना है कि ये शादी असल में किसी की नहीं होती—ये सिर्फ एक अनुभव होती है, कंटेंट के लिए curated एक भव्य इवेंट, जो भावनात्मक बंधन से नहीं बल्कि एस्थेटिक मूड से जुड़ा होता है.
गली बार जब कोई रिश्तेदार आपसे पूछे कि शादी कब कर रहे हो, तो अब आप मुस्कुराकर जवाब दे सकते हैं-"जब भी अगली फेक वेडिंग पार्टी हो!" सुनने में अजीब लगे, लेकिन दिल्ली की युवा पार्टी लाइफ में एक नया और अनोखा ट्रेंड उभर रहा है—शादी जैसी पार्टी, बिना दूल्हा-दुल्हन के.
ना सात फेरे, ना कोई रिश्ता, ना किसी खांसी की शादी का बहाना—बस एस्थेटिक कपड़े, ढोल की थाप, गेंदे के फूलों की सजावट, और शादी वाला मूड.
एक नकली शादी की असली कहानी
साकेत निवासी वेदिका राठी, एक डिजिटल डिजाइनर हैं. इंस्टाग्राम पर उन्हें एक विज्ञापन दिखा-"सिर्फ ₹599 में शादी का पूरा मज़ा, बिना शादी के झंझट!" उन्होंने पहले सोचा यह कोई प्रैंक है, लेकिन जब देखा कि हजारों लोग पहले ही टिकट बुक कर चुके हैं, तो वह चौंक गईं.
वेदिका ने बताया, "मैंने अपनी बेस्ट फ्रेंड्स को कॉल किया और कहा-चलो दुल्हन नहीं बन सकते, तो कम से कम शादी का डेकोर, डांस और ड्रामा तो जी ही सकते हैं!"
आयोजन स्थल: शादी जैसा क्लब, रिश्ता ज़ीरो
यह पार्टी दिल्ली के संजय वन के पास स्थित एक खुले रूफटॉप लाउंज में आयोजित हुई थी. शाम को जैसे ही वे वहां पहुँचीं, माहौल देख हैरान रह गईं.
“चारों तरफ मैजेंटा और पीले पर्दे, कलीरे, गेंदे के झूमर, सेल्फी बूथ और फूलों से सजी एंट्री. कुछ लड़के सेहरा लगाए हुए थे, कुछ लड़कियां लहंगे में जैसे किसी कजिन की संगीत में आई हों."
पार्टी का ड्रेस कोड था – पूरा देसी लुक. वेदिका ने बॉटल ग्रीन लहंगा और मिरर वर्क चोली पहनी थी. साथ में साइड झोला और ऑक्सीडाइज़्ड जूलरी.
“थोड़ा झिझक थी कि ज्यादा ओवर लगूँगी, लेकिन वहां पहुंचते ही एहसास हुआ—हर कोई जैसे पिन्टरेस्ट बोर्ड से निकला था. किसी को कोई फर्क नहीं था कि ये असली शादी नहीं, सब अपनी इंस्टा स्टोरी और रील के लिए फुल तैयारी में थे."
फील असली, शादी नकली
पार्टी में मेहंदी वाले, फूलों का मंडप, मॉक हल्दी सेरेमनी, शादी स्पेशल म्यूज़िक प्लेलिस्ट और लाइव ढोल भी था. कोई स्टेज पर "प्री-वेडिंग डांस एक्ट" कर रहा था, कोई "फेक जयमाला" में दोस्त के साथ पोज दे रहा था.
“सब कुछ असली जैसा था, बस मंडप के बीच कोई शादी नहीं हो रही थी.” वेदिका हँसते हुए बताती हैं.
सिर्फ युवा नहीं, हर उम्र की मस्ती
इस पार्टी में सिर्फ Gen Z ही नहीं थे, बल्कि कई कपल्स, मिडल एज प्रोफेशनल्स और 50+ उम्र के लोग भी पारंपरिक कपड़ों में मस्ती कर रहे थे.
“हमने अजनबियों के साथ नाचते-गाते इतनी मस्ती की कि भूल ही गए कि हम सब पहली बार मिले थे. यह न कोई रिश्तेदारी थी, न कोई जिम्मेदारी—बस एक vibe थी, जिसे सबने पूरी आत्मा से जिया.”
नकली शादी, असली अर्थ
फेक वेडिंग्स अब सिर्फ मज़ाक नहीं, बल्कि नई पीढ़ी की सोच का प्रतीक बन रही हैं.
यह ट्रेंड दिखाता है कि शादी अब सिर्फ सामाजिक बंधन नहीं, बल्कि एक अनुभव, एक उत्सव, और सोशल मीडिया की आर्ट बन चुका है.
"वाइब पहले, परंपरा बाद में"—यही इस ट्रेंड का असली मोटो है.
जहां एक ओर पुराने विचार इस ट्रेंड को विवाह संस्था का उपहास मानते हैं, वहीं युवा इसे खुद को एक्सप्रेस करने का फन, सुरक्षित और रचनात्मक तरीका मानते हैं. कोई तनाव नहीं, कोई दबाव नहीं—बस जिएं, नाचें, और शादी जैसे माहौल को कला की तरह देखें.
शायद यही आज का सच है—शादी अब सिर्फ एक रिश्ते का नाम नहीं, एक मूड है. और अगर उस मूड को जीने के लिए किसी दूल्हे या दुल्हन की ज़रूरत नहीं, तो “फेक वेडिंग्स” असली खुशी बन चुकी हैं.
Instagram और YouTube जैसे प्लेटफॉर्म्स पर इन फेक वेडिंग्स की रील्स और वीडियोज़ की भरमार है. युवा जोड़े नहीं, बल्कि दोस्त या सोलो क्रिएटर्स इन शादियों को एंजॉय करते हुए दिखते हैं. डेकोरेशन, फोटोग्राफी, हल्दी-मेहंदी के सीन—सब कुछ असली जैसा, लेकिन कमिटमेंट-फ्री.
यह ट्रेंड साफ़ इशारा करता है कि आज का युवा सामाजिक दबावों से ज़्यादा आत्म-अभिव्यक्ति और मस्ती को महत्व देता है. शादी अब सिर्फ सामाजिक दायित्व नहीं, बल्कि एक वाइब बन चुकी है—जिसे जीने के लिए अब असली दूल्हा-दुल्हन की ज़रूरत नहीं.
‘फेक वेडिंग्स’ क्यों हो रहीं हैं पॉपुलर?
एस्थेटिक सोशल कंटेंट: आज का युथ इंस्टाग्राम-योग्य पलों की तलाश में रहता है. शादी जैसा रंगीन और भव्य माहौल reels और shorts के लिए परफेक्ट होता है.
नो कमिटमेंट, ओनली फन: कोई सामाजिक ज़िम्मेदारी नहीं, कोई पंडित या रजिस्ट्रेशन नहीं—बस डांस, ड्रामा और दोस्तों के साथ मस्ती.
इमोशनल रिलीज: शादी के ख्वाब देखने वाले लेकिन प्रतिबद्धता से डरने वाले युवा इन आयोजनों के ज़रिए एक wishful fulfillment का अनुभव करते हैं.
कल्चर एक्सपीरियंस: विदेशी युवाओं से लेकर शहरी भारत के क्रिएटिव माइंड्स तक, सबको भारतीय शादी की चमक-धमक आकर्षित करती है—अब इसके लिए असली शादी की जरूरत नहीं.
आयोजनों की नई इंडस्ट्री
दिल्ली, मुंबई, पुणे जैसे शहरों में अब फेक वेडिंग प्लानर्स उभरने लगे हैं, जो पूरे पैकेज ऑफर करते हैं-लोकेशन, डेकोर, ड्रेस, म्यूजिक और यहां तक कि फेक पंडित और फेक वरमाला तक. खर्चा 50 हज़ार से 2 लाख रुपये तक, लेकिन सोशल मीडिया पर लाइक्स की गारंटी.
हालांकि कई लोग इस ट्रेंड को संस्थागत विवाह का मज़ाक मानते हैं, लेकिन युवा इसे एक कला और उत्सव का जरिया मानते हैं. यह बदलाव भारतीय समाज में रिश्तों को लेकर बदलती सोच की तरफ इशारा करता है-जहाँ अनुभव और प्रस्तुति, स्थायित्व से ज़्यादा मायने रखने लगे हैं.
‘फेक वेडिंग’ ट्रेंड दिखाता है कि कैसे युवा पीढ़ी परंपरा को तोड़ते हुए भी उससे जुड़ना चाहती है-अपने ही ढंग से, अपनी शर्तों पर. यह एक विरोध नहीं, बल्कि एक नया उत्सव है—जहाँ रिश्ते भले नकली हों, पर वाइब पूरी तरह रियल होती है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

