क्रिप्टो में भारतीय युवा निवेशकों की मेहनत की कमाई लुट रही है और सरकार अब भी मौन क्यों ?

क्रिप्टो में भारतीय युवा निवेशकों की मेहनत की कमाई लुट रही है और सरकार अब भी मौन क्यों ?

प्रेषित समय :22:46:36 PM / Sun, Jul 27th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अभिमनोज

भारत में क्रिप्टोकरेंसी की यात्रा जितनी तेज़ हुई है, उतनी ही अव्यवस्थित भी रही है. सरकार ने कर व्यवस्था बना दी -30% कर और 1% टीडीएस की कठोरता भी लागू कर दी, लेकिन न कोई नियामक संस्था है, न कोई जवाबदेही तय है. जब साइबर हमले होते हैं, निवेशकों का करोड़ों रुपया लुट जाता है -तब कोई नहीं पूछता कि "इनका मालिक कौन?"

यह सवाल अब इसलिए और तीखा हो गया है क्योंकि हालिया महीनों में भारत की अग्रणी क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंजों पर बड़े साइबर हमले हुए हैं. कोइन डीसीएक्स से ₹378 करोड़ और वज़ीरएक्स से ₹1983 करोड़ की चोरी हुई. ये केवल आंकड़े नहीं हैं - ये उस मध्यमवर्गीय निवेशक की बचत हैं, जिसने ‘डिजिटल फ्यूचर’ के सपने देखे थे.

लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ. इतिहास गवाह है :
मई 2024, जापान की DMM बिटकॉइन पर ₹2642 करोड़ की साइबर चोरी हुई, जहां हैकर्स ने वॉलेट एड्रेस में हेरफेर करके फंड ट्रांसफर किया. तकनीकी नाम है "एड्रेस पॉइजनिंग", लेकिन असल में यह एक प्रकार का डिजिटल छल है, जिसमें आपका पैसा बिना भनक के गायब हो सकता है.

सितंबर 2020, सिंगापुर की KuCoin एक्सचेंज पर हैकरों ने ₹2434 करोड़ चुराए — बिटकॉइन, एथेरियम और ईआरसी‑20 टोकन. अनुमान है कि कर्मचारियों को निशाना बनाकर फिशिंग अटैक से यह राशि चुराई गई और फिर उसे ब्लैक मार्केट मिक्सिंग सेवाओं के ज़रिए 'अदृश्य' बना दिया गया.

भारत की ज़मीन पर जुलाई 2024 में वज़ीरएक्स पर फिर से हमला हुआ. ₹2035 करोड़ की साइबर चोरी हुई. यह हमला स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स के मल्टीसिग वॉलेट की खामी का फायदा उठाकर हुआ. यानी तकनीक की जो परत सुरक्षा की तरह दिखती थी, वह खुद दरवाज़ा बन गई.

मई 2025, Setus Protocol नामक डीफाई प्लेटफ़ॉर्म पर ₹2252 करोड़ का हमला हुआ. यह हमला स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट की रीएंट्रेंसी समस्या या लॉजिक एरर के ज़रिए हुआ — टेक्निकल खामी को गहराई से समझने वाले हैकर्स ने लिक्विडिटी पूल को पूरा खाली कर दिया.

ये आंकड़े मिलाकर देखें तो सिर्फ एक वर्ष में ₹11,000 करोड़ से ज़्यादा की डिजिटल धनराशि दुनिया भर में हैक हो चुकी है. भारत इसका प्रमुख हिस्सा है, और यह सवाल बार-बार उठता है“जब निवेश सरकार की नजर में है, तो सुरक्षा क्यों नहीं?”

क्रिप्टोकरेंसी की खास बात यह है कि यह डिसेंट्रलाइज़्ड है  यानी किसी एक संस्था या सरकार के अधीन नहीं है. लेकिन जब कोई एक्सचेंज भारत में रजिस्टर होता है, भारतीय निवेशकों का पैसा लेता है, भारतीय बैंकिंग सिस्टम का उपयोग करता है — तो क्या उसकी निगरानी नहीं होनी चाहिए?

सरकार ने टैक्स लगा दिए, लेकिन रेग्युलेशन नहीं दिया. रिज़र्व बैंक अभी भी इसे मुद्रा मानने को तैयार नहीं, और सेबी (SEBI) कहती है कि यह हमारी सीमा के बाहर है. ऐसे में एक वैक्यूम बनता है , जहाँ कोई भी जवाबदेह नहीं होता. जब तक आपके डिजिटल वॉलेट में सबकुछ ठीक है, तब तक सब चुप हैं. लेकिन जैसे ही आप हैक होते हैं ,आपके सामने न कोई संस्था है, न न्याय की कोई स्पष्ट व्यवस्था.

भारत में हर दिन युवा, नौकरीपेशा, उद्यमी ,क्रिप्टो में निवेश कर रहे हैं. कभी बिटकॉइन, कभी एथेरियम, कभी मीम टोकन. लेकिन इन्हें यह नहीं पता कि अगर उनका वॉलेट हैक हुआ, अगर उनका निवेश उड़ गया, तो वे कहाँ जाएंगे? किसे पुकारेंगे?

दुखद यह है कि इस पूरे परिदृश्य में क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज कंपनियां खुद भी जवाबदेही से दूर भागती हैं. अक्सर वे यह कहकर पल्ला झाड़ लेती हैं कि “यूज़र की लापरवाही थी, हमने तो सिक्योरिटी सलाह दी थी.” और सरकार चुपचाप यह तमाशा देखती रहती है.

अब समय आ गया है कि भारत सरकार को न सिर्फ टैक्स व्यवस्था बनाए रखना चाहिए, बल्कि एक क्रिप्टो नियामक निकाय (Crypto Regulatory Authority) की स्थापना करनी चाहिए, जो निवेशकों की शिकायत सुने, तकनीकी ऑडिट करे, साइबर हमलों की जांच कर सके, और ऐसे प्लेटफॉर्म्स को अनिवार्य रूप से साइबर बीमा (Cyber Insurance) के दायरे में लाए.

क्योंकि डिजिटल युग में चुप रहना भी अपराध है  और जब सुरक्षा गायब हो, तो 'विकास' एक छलावा बन जाता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-