रुद्रहृदयोपनिषद् एक दुर्लभ शैव उपनिषद जो निष्काम उपासना के माध्यम से मोक्ष का मार्ग दर्शाती

रुद्रहृदयोपनिषद् एक दुर्लभ शैव उपनिषद जो निष्काम उपासना के माध्यम से मोक्ष का मार्ग दर्शाती

प्रेषित समय :21:42:35 PM / Mon, Jul 28th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

रुद्रहृदयोपनिषद् एक दुर्लभ और अल्पज्ञात शैव उपनिषद् है, जो कृष्ण यजुर्वेद से सम्बद्ध उपनिषदों में गिनी जाती है. इसका मुख्य उद्देश्य भगवान रुद्र (शिव) के हृदय स्वरूप को प्रकट करना है. यह उपनिषद अत्यंत गूढ़ भावों और मंत्रात्मक शैली में रुद्र के आध्यात्मिक रहस्य और उपासना-पथ को स्पष्ट करती है.

रुद्रहृदयोपनिषद् यह सिखाती है कि यदि साधक मन से कामनाएं छोड़कर भगवान रुद्र की उपासना करता है, तो वह जीवन में शांति, परिपूर्णता और अंततः परमात्मा से एकत्व प्राप्त करता है.

*रुद्रहृदयोपनिषद्* में भगवान् की श्रेष्ठता के विषय में इस प्रकार लिखा है -
_सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:._
_रुद्रात्प्रवर्तते बीजं बीजयोनिजनार्दन:.._
_यो रुद्र: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मा स हुताशन:.._
प्रमाण के अनुसार रुद्र ही मूलप्रकृति-पुरुषमय आदिदेव साकार ब्रह्म हैं.
वेद के ब्राह्मण-ग्रन्थों में, उपनिषदोंमें, स्मृतियों और पुराणों में शिवार्चन के साथ रुद्राभिषेक आदि की विशेष महिमा का वर्णन है.
_यश्च सागरपर्यान्तां सशैलवनकाननाम्._
_सर्वान्नात्मगुणोपेतां सुवृक्षजलशोभिताम्.._
*अर्थात्-* जो व्यक्ति समुद्रपर्यन्त वन, पर्वत, जल एवं वृक्षों से युक्त तथा श्रेष्ठ गुणों से युक्त ऐसी पृथ्वी का दान करता है, जो धन-धान्य, सुवर्ण और औषधियों से युक्त है, उससे भी अधिक पुण्य एक बार के रुद्राभिषेक का है. रुद्राष्टाध्यायी एवं रुद्रमाहात्म्य का अवलोकन.
*वेदोऽखिलो धर्ममूलम्.* वेदों एवं उनकी विभिन्न.. संहिताओं में प्रकृति के अनेक तत्त्वों-जल, वायु, आकाश, उषा, संध्या इत्यादि के तथा इन्द्र, सूर्य, सोम, रुद्र, विष्णु आदि देवों के वर्णन और स्तुति-सूक्त प्राप्त होते हैं. इनमें कुछ ऋचाएं निवृत्तप्रधान एवं कुछ प्रवृत्तिप्रधान हैं. शुक्लयजुर्वेद संहिता के अन्तर्गत *रुद्राष्टाध्यायी* के रूप में भगवान रुद्र का वर्णन किया गया है.
*शिवपुराण* में सनकादि ऋषियों के प्रश्न पर स्वयं शिवजी ने रुद्राष्टाध्यायी के मन्त्रों द्वारा अभिषेक का माहात्म्य बतलाया गया है. धर्मशास्त्र के विद्वानों ने रुद्राष्टाध्यायी के छ: अङ्ग निश्चित किये हैं, तदनुसार रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय का शिवसङ्कल्पसूक्त है हृदय. द्वितीय अध्याय का पुरुषसूक्त सिर एवं उत्तरनारायणसूक्त शिखा है. तीसरा अध्याय का अप्रतिरथसूक्त कवच है, चतुर्थाध्याय का मैत्रसूक्त नेत्र है, एवं ५वें अध्याय का शतरुद्रीयसूक्त अस्त्र कहा है. जिस प्रकार एक योद्धा युद्ध में अपने अङ्गों एवं आयुधों को सुसज्ज-सावधान करता है, उसी प्रकार अध्यात्ममार्गी साधक रुद्राष्टाध्यायी के पाठ एवं अभिषेक के लिए सुसज्ज होता है.
*रुद्राष्टाध्यायी* के प्रत्येक अध्याय का अवलोकन किया जा रहा है-
*रुद्राभिषेक* में प्रयुक्त होने वाले प्रशस्त द्रव्य
भगवान सदा शिव की प्रसन्नता के निमित्त निष्कामभाव से यजन करना इसका अनन्त फल है शास्त्रों में विविध कामनाओं के निमित्त अनेक द्रव्यों का निर्देश दिया हुआ है.
जल से रुद्राभिषेक करने पर वृष्टि होती है, व्याधि की शान्ति के लिए कुशोदक से अभिषेक करना चाहिए पशुप्राप्ति के लिए दही, लक्ष्मी प्राप्ति के लिए गन्ने का रस, धन प्राप्ति के लिए मधु तथा घृत एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए तीर्थ के जल से अभिषेक करना चाहिए पुत्र प्राप्ति के लिए दूधद्वारा रुद्राभिषेक का विधान बताया गया है.
जल की धारा भगवान् शिव को अति प्रिय है अत: ज्वर के प्रभाव को कम करने के लिए जलधारा से अभिषेक करना चाहिए.
_रुद्रजापी विमुच्येत महापातकपञ्चरात्._
_सम्यग्ज्ञानं च लभते तेन मुच्येत बन्धनात्.._
शास्त्रों में भगवानरुद्र की प्रसन्नताके लिये निष्कामभाव से रुद्रपाठ का अनन्त फल है बताया गया है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-