विघ्नों का विनाशक, स्तोत्रों का राजा-श्री गणपति स्तोत्रराज

विघ्नों का विनाशक, स्तोत्रों का राजा-श्री गणपति स्तोत्रराज

प्रेषित समय :19:47:50 PM / Wed, Jul 30th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जब जीवन में मार्ग अवरुद्ध हो, जब प्रयत्नों के बाद भी फल न मिले, और जब भीतर की शक्ति कमजोर पड़ने लगे—तब एक ऐसी स्तुति है जो न केवल बाधाओं को हरती है, बल्कि साधक को अपने आत्मिक केंद्र से जोड़ देती है. श्री गणपति स्तोत्र राज, गणेश पुराण से उद्भूत यह दिव्य स्तोत्र, सिर्फ शब्दों का संकलन नहीं, बल्कि एक आत्म-संवाद है. कहा जाता है कि स्वयं महर्षि नारद ने इसका पाठ कर असम्भव को सम्भव बनाया. इसकी हर पंक्ति में मंत्रशक्ति है, और हर श्लोक में वह भावनात्मक ऊष्मा जो मन को झुका देती है, और आत्मा को जाग्रत करती है.

कोई कुछ भी नहीं कर सकता ! लेकिन यह स्तोत्र बहुत कुछ कर सकता है ! गणेश पुराण के उपासना खंड के अध्याय १३ में ब्रह्मा-विष्णु एवं महेश द्वारा गणपति स्तुति का वर्णन है. इसे स्तोत्र राज इसीलिए कहा गया है क्योंकि यह स्तुति कोई ऋषि या मनुष्य ने नहीं बल्कि ब्रह्माण्ड की तीन शक्तियों ने रची है.

जीवन में मनुष्य कई बार केवल भटकता रहता है. मनुष्य को यह ज्ञात ही नहीं हो पता ही समस्याओं से निकलने के लिए क्या करना चाहिए. अज्ञान में भटकते हुए मनुष्य के लिए श्री गणपति स्तोत्र राज एक दुर्लभ और महत्त्वपूर्ण स्तोत्र है.

इस स्तोत्र के अंतिम श्लोकों में वर्णन है की इस स्तोत्र को नित्य पठन करने से भगवान गणेश करुणा से पूर्ण होकर आनंदित होते है. इस दिव्य स्तोत्र को छोड़कर ऐसा कोई भी गणपति स्तोत्र में उल्लेख नहीं है की गणपति करुणा से पूर्ण होकर आनंदित हो रहे है. अगर व्यक्ति किसी भी संकट में हो तो इस स्तोत्र राज का पठन अवश्य करें लाभप्राप्त होंगे.

गणेशाय नमः.
ब्रह्मविष्णुमहेश्चरा ऊचुः
अजं निर्विकल्पं निराकारमेकं निरानन्दमद्वैतमानन्दपूर्णम्.
परं निर्गुणं निर्विशेषं निरीहं परब्रह्मरूपं गणेशं भजेम..१..
गुणातीतमाद्यं चिदानन्दरूपं चिदाभासकं सर्वगं ज्ञानगम्यम्.
मुनिध्येयमाकाशरूपं परेशं परब्रह्मरूपं गणेशं भजेम..२..
जगत्कारणं कारणाज्ञानरूपं सुरादिं सुखादिं युगादिं गणेशम्.
जगद्वापिनं विश्ववन्द्यं सुरेशं परब्रह्मरूपं गणेशं भजेम..३..
रजोयोगततो ब्रह्मरूपं श्रुतिज्ञं सदा कार्यसक्तं हृदाऽचिन्त्यरूपम्.
सर्वविद्यानिधानं जगत्कारकं परब्रह्मरूपं गणेशं नताः स्मः..४..
सदा सत्त्वयोगं मुदा क्रीडमानं सुरारीन् हरन्तं जगत्पालयन्तम्.
अनेकावतारं निजाज्ञानहारं सदा विष्णुरूपं गणेशं नमामः..५..
तमोयोगिनं रुद्ररूप त्रिनेत्रं जगद्धारकं तारकं ज्ञानहेतुम्.
अनेकागमैः स्वं जनं बोधयन्तं सदा शर्वरूपं गणेशं नमामः..६..
तमःस्तोमहारं जनाज्ञानहारं त्रयीवेदसारं परब्रह्मपारम्.
मुनिज्ञानकारं विदूरे विकारं सदा ब्रह्मरूपं गणेशं नमामः..७..
निजैरौषधीस्तर्पयन्तं करोधैः सुरौघान्कलाभिः सुधास्राविणीभिः.
दिनेशांशु सन्तापहारं द्विजेशं शशाङ्कस्वरूपं गणेशं नमामः..८..
प्रकाशस्वरूपं नभोवायुरूपं विकारादिहेतुं कलाकालभूतम्.
अनेकक्रियानेक शक्तिस्वरूपं सदा शक्तिरूपं गणेशं नमामः..९..
प्रधानस्वरूपं महतत्वरूपं धरावारिरूपं दिगीशादिरूपम्.
असत्सत्स्वरूपं जगद्धेतुभूपं सदा विश्वरूपं गणेशं नमामः..१०..
त्वदीये मनः स्थापयेदङ्गियुग्मे जनो विघ्नसङ्खान्न पीडां लभेत.
लसत्सूर्यविम्बे विशाले स्थितेऽयं जनो ध्वान्त पीडां कथं वा लभेत..११..
वयं भ्रामिताः सर्वथाऽज्ञानयोगा दलब्ध्वा तवाङ्किम बहून्वर्षपूगान्.
इदानीमवाप्तास्तवैव प्रसादात् प्रपन्नान सदा पाहि विश्वम्भराद्य..१२..
ब्रह्मोवाच.
एवं स्तुतो गणेशस्तु सन्तुष्ठोऽभून्महामुने.
कृपया परयोपेतोऽभिधातुं तान् प्रचक्रमे..१३..

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-