तेलंगाना बीजेपी में बढ़ती अंदरूनी खींचतान के बीच संगठनात्मक पुनर्गठन की तैयारी तेज़

तेलंगाना बीजेपी में बढ़ती अंदरूनी खींचतान के बीच संगठनात्मक पुनर्गठन की तैयारी तेज़

प्रेषित समय :18:35:19 PM / Wed, Jul 30th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

विशेष रिपोर्ट.  हैदराबाद. तेलंगाना में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपनी संगठनात्मक संरचना को नए सिरे से गढ़ने की दिशा में आगे बढ़ रही है, लेकिन यह प्रक्रिया सुगम नहीं दिख रही. राज्य समिति के 20 महत्वपूर्ण पदों को लेकर नेताओं के बीच तेज़ अंदरूनी खींचतान उभर आई है, जिससे पार्टी के भीतर असंतोष की स्थिति पैदा हो गई है. इस खींचतान को संतुलित करने और कार्यकर्ताओं की व्यस्तता बनाए रखने के उद्देश्य से भाजपा ने अब 19 मुद्दा-आधारित प्रकोष्ठों को फिर से सक्रिय करने की योजना बनाई है.

अंदरूनी संघर्ष का रूप
राज्य इकाई के 20 पद — जिनमें महासचिव, सचिव, उपाध्यक्ष, प्रवक्ता आदि शामिल हैं — पर नियुक्तियों को लेकर वरिष्ठ नेताओं के खेमों में रस्साकशी तेज़ हो गई है. एक ओर पुराने नेताओं का गुट है जो पार्टी की पारंपरिक संरचना और कार्यशैली को बनाए रखना चाहता है, वहीं दूसरी ओर नए चेहरों और दिल्ली समर्थित नेतृत्व की ओर झुकाव रखने वाले युवा नेता भी जगह पाने की कोशिश में हैं.

पार्टी सूत्रों के अनुसार, हैदराबाद, करीमनगर और वारंगल जैसे प्रमुख जिलों से जुड़े नेता संगठन में प्रभावशाली पदों की माँग कर रहे हैं. कुछ नेताओं ने तो यहां तक आरोप लगाया है कि पार्टी में पारदर्शिता की कमी है और कुछ चुनिंदा चेहरों को ही मौका दिया जा रहा है.

19 प्रकोष्ठों की पुनर्स्थापना
इस खींचतान के बीच प्रदेश भाजपा अध्यक्ष जी. किशन रेड्डी ने पार्टी संगठन में संतुलन लाने और जमीनी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से 19 प्रकोष्ठों को सक्रिय करने का ऐलान किया है. ये प्रकोष्ठ कृषि, सिंचाई, कल्याण, महिला सशक्तिकरण, आदिवासी अधिकार, अल्पसंख्यक कल्याण, शहरी विकास, युवाओं की शिक्षा, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य आदि जैसे मुद्दों पर काम करेंगे.

पार्टी प्रवक्ता की मानें तो “यह केवल संगठनात्मक समायोजन नहीं, बल्कि भाजपा की जमीनी ताकत को फिर से सक्रिय करने का प्रयास है. कार्यकर्ता इन मुद्दों पर शोध करेंगे, ज़मीन से रिपोर्ट लाएंगे और पार्टी को वैकल्पिक नीतिगत सुझाव देंगे.”

नेतृत्व की दुविधा
राज्य अध्यक्ष किशन रेड्डी स्वयं इस समय दोहरी भूमिका निभा रहे हैं — केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री रहते हुए वे राज्य संगठन की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं. इससे उनकी उपस्थिति सीमित हो गई है और ज़िला इकाइयों में समन्वय की कमी देखने को मिल रही है.

दूसरी ओर, बंडी संजय जैसे नेताओं के समर्थक अभी भी उन्हें सक्रिय भूमिका में देखना चाहते हैं. पार्टी के भीतर ये मतभेद खुलकर भले सामने न आए हों, लेकिन ज़िला बैठकों और सांगठनिक कार्यक्रमों में इसका असर दिखने लगा है.

हालिया चुनावी प्रदर्शन का असर
2023 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी, और कई स्थानों पर पार्टी दूसरे स्थान से भी नीचे खिसक गई थी. इस पराजय ने राज्य संगठन में आत्ममंथन का दौर शुरू किया है. कुछ नेताओं का मानना है कि चुनावों में खराब प्रदर्शन का एक कारण आंतरिक समन्वय की कमी भी थी.

पार्टी अब अपने पुराने वोटबैंक — शहरी मध्यम वर्ग, व्यापारी वर्ग और युवाओं — को फिर से संगठित करने के लिए नीतिगत मुद्दों की ओर ध्यान केंद्रित कर रही है. इसमें इन प्रकोष्ठों की भूमिका अहम मानी जा रही है.

विपक्ष की प्रतिक्रिया
कांग्रेस और बीआरएस (पूर्व की टीआरएस) दोनों ही भाजपा की इस कवायद को 'अंदरूनी संकट का लक्षण' बता रहे हैं. कांग्रेस नेता अनिल कुमार ने कहा, “भाजपा अब गुटबाज़ी में उलझ गई है, और संगठन का पुनर्गठन उसकी विफलता को ढँकने का प्रयास है.”

वहीं बीआरएस की ओर से कहा गया कि “तेलंगाना की जनता को केवल चुनावी वक्त में याद करने वाली भाजपा अब मुद्दों की राजनीति का ड्रामा कर रही है.”

भाजपा के लिए यह समय बेहद निर्णायक है. एक ओर उसे आंतरिक असंतुलन को संभालना है, दूसरी ओर लोकसभा चुनावों की तैयारियों में गति भी लानी है. ऐसे में प्रकोष्ठों का पुनर्गठन केवल एक औपचारिक कदम नहीं रह जाएगा, बल्कि इस पर भाजपा की जमीनी पकड़ और सांगठनिक ताकत का भविष्य टिका है. यदि पार्टी इन प्रकोष्ठों के माध्यम से कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने और आम जनता से जुड़े मुद्दों पर संवाद स्थापित करने में सफल होती है, तो वह आगामी चुनावों में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर सकती है.

वरना यह पुनर्गठन एक काग़ज़ी कवायद बनकर रह जाएगा — और वह पार्टी के लिए अंदरूनी असंतोष की जड़ और गहरी कर देगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-