नई दिल्ली / लंदन. भारत–इंग्लैंड टेस्ट श्रृंखला के पाँचवें और निर्णायक मुकाबले में मैदान पर कुछ ऐसा घटा जिसने खेल की निष्पक्षता, अंपायरिंग की स्वतंत्रता और तकनीकी वाओं जैसे मुद्दों को पुनः बहस के केंद्र में ला खड़ा किया है. ओवल मैदान पर पहले दिन भारतीय कोच गौतम गंभीर और श्रीलंकाई अंपायर कुमार धर्मसेना के बीच हुआ एक दृश्य अब सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जहाँ आरोप है कि अंपायर ने इंग्लैंड को DRS में 'बचाने' के लिए इशारा किया.यह घटना केवल एक कैमरा ऐंगल का परिणाम थी या वाकई DRS की प्रक्रिया में मानवीय हस्तक्षेप का प्रमाण? इस प्रश्न ने लाखों दर्शकों, विशेषज्ञों और पूर्व खिलाड़ियों को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या 'जेंटलमैन गेम' अब भी अपने उसूलों पर टिका हुआ है.
गौतम गंभीर और कुमार धर्मसेना का यह विवाद इस समय केवल एक टेस्ट मैच तक सीमित नहीं है. यह वैश्विक क्रिकेट पर भरोसे, तकनीक और इंसानी निर्णयों की उस जटिल उलझन का प्रतीक बन चुका है जिसमें आज का क्रिकेट उलझा हुआ है.
क्या ICC इस विषय पर स्पष्ट दिशा निर्देश लाएगी? क्या अंपायरों को और पारदर्शिता के साथ DRS प्रक्रिया अपनानी होगी? और क्या दर्शकों का विश्वास दोबारा जीतने के लिए तकनीक को और परिष्कृत किया जाएगा? यह केवल समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल एक बात तो तय है—गंभीर का इशारा और धर्मसेना की निगाहें क्रिकेट की दुनिया में आने वाले बड़े सवालों की दस्तक हैं.
घटना की पृष्ठभूमि
यह दृश्य तब सामने आया जब इंग्लैंड की पहली पारी के दौरान एक एलबीडब्ल्यू की अपील को मैदानी अंपायर ने नकार दिया. भारत ने रिव्यू नहीं लिया, लेकिन बाद में रीप्ले में साफ़ दिखा कि गेंद विकेट को हिट कर रही थी. इसके बाद जब इंग्लैंड की बल्लेबाजी चल रही थी, उसी तरह की एक अपील हुई जिसमें अंपायर धर्मसेना ने तुरंत उंगली खड़ी नहीं की, बल्कि कैमरे में उन्हें एक छोटे से इशारे में कुछ 'संकेत' देते देखा गया. इसी क्षण गंभीर ड्रेसिंग रूम से नाराज़ मुद्रा में उठकर डगआउट की ओर आते दिखे. कैमरे ने उस क्षण को रिकॉर्ड कर लिया — जो बाद में बहस का कारण बना.
सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया और दो धाराएँ
घटना के बाद ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर "UmpireGate", "SaveEnglandDRS", और "GambhirGesture" जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे. बहस दो धाराओं में बंटी—
एक वर्ग का मानना है कि अंपायर धर्मसेना ने इंग्लैंड के हित में 'सहमति' का इशारा दिया और DRS की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए.
दूसरे वर्ग ने कहा कि गंभीर का इशारा गलत समझा गया और धर्मसेना की हरकत केवल एक सहज प्रतिक्रिया थी, जिसे ज़रूरत से ज़्यादा तूल दिया जा रहा है.
विशेषज्ञों की राय
पूर्व भारतीय कप्तान और कमेंटेटर सुनील गावस्कर ने कहा, "अगर यह इशारा DRS से पहले हुआ और उस पर कोई निर्णय नहीं बदला गया, तो इसे 'बिग डील' नहीं बनाना चाहिए. लेकिन अगर तकनीकी介वाओं से पहले कोई इशारा आया है, तो यह जरूर जाँच का विषय है."
वहीं इंग्लैंड के पूर्व बल्लेबाज माइकल वॉन ने ट्वीट किया, "Gambhir’s stare said it all. Something is off with how some DRS calls are handled. Transparency is key."
अंतर्राष्ट्रीय अंपायरिंग परिषद ने अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है.
इस विवाद ने क्रिकेट की कभी न सुलझ पाने वाली बहस को फिर से ज़िंदा कर दिया है—क्या DRS जैसी प्रणाली ने अंपायर की आत्मनिर्भरता को खतरे में डाला है?DRS एक निष्पक्ष तकनीकी मदद है, लेकिन उसका प्रयोग कब और कैसे हो, इसका नियंत्रण अभी भी मानवीय निर्णयों पर निर्भर है. अंपायर यदि इस प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं — चाहे जानबूझ कर या अनजाने में — तो यह DRS के मूल उद्देश्य को ही कमज़ोर करता है.
गौतम गंभीर की भूमिका और भारतीय खेमे की नाराज़गी
गंभीर का मैदान के किनारे से आक्रामक भाव में उतरना न केवल एक कोच की भूमिका को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि भारतीय खेमे को निर्णय पर भरोसा नहीं रहा.
यह पहला मौका नहीं है जब गंभीर ने अंपायरिंग के विरुद्ध अपनी नाराज़गी सार्वजनिक तौर पर व्यक्त की हो. इससे पहले IPL 2024 में भी उन्होंने अंपायर निर्णयों पर सवाल उठाए थे.
क्या यह एक प्रकरण भर है या गहरी प्रणालीगत समस्या?
धर्मसेना एक सीनियर अंपायर हैं जिनकी साख अतीत में मजबूत रही है. लेकिन बार-बार ऐसे विवादों में उनका नाम आना — जैसे 2019 वर्ल्ड कप फाइनल में भी उनका फैसला विवादित रहा था — अब ICC को एक पुनर्मूल्यांकन की दिशा में सोचने को मजबूर करता है.
क्रिकेट जैसे वैश्विक खेल में जहाँ करोड़ों की संख्या में दर्शक और अरबों की कमाई दांव पर लगी होती है, वहाँ एक भी छोटा संदेह खेल की साख को चोट पहुँचा सकता है.
मीडिया कवरेज और कैमरा की भूमिका
इस मामले में कैमरे ने जो दिखाया, वही अंततः जनमत का आधार बन गया. लेकिन सवाल यह भी है — क्या हर कैमरा ऐंगल सच को पूरी तरह दिखा पाता है? या क्या कुछ दृश्य 'फ्रेमिंग' की वजह से भ्रमित करने वाले हो सकते हैं?
बॉलीवुड फिल्म ‘पिंक’ की एक प्रसिद्ध पंक्ति इस संदर्भ में याद आती है — “No means no.” उसी तरह अंपायर का हर इशारा, हर संकेत आजकल "डिजिटल नो" या "डिजिटल यस" बन चुका है. इसलिए कैमरे की ज़िम्मेदारी अब केवल प्रसारण की नहीं, बल्कि सच्चाई दिखाने की भी हो गई है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

