बॉलीवुड पोस्टर्स में 'कॉपी-पेस्ट' ट्रेंड सोशल मीडिया पर रचनात्मकता पर सवाल के साथ तेज़ी से वायरल

बॉलीवुड पोस्टर्स में

प्रेषित समय :21:07:11 PM / Sun, Aug 3rd, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

बॉलीवुड में जहां एक ओर कहानियों और अभिनेताओं पर ध्यान केंद्रित होता है, वहीं फिल्म के प्रचार माध्यम—विशेष रूप से पोस्टर और टीज़र—भी दर्शकों की पहली छाप बनाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. लेकिन हालिया दिनों में इंटरनेट और सोशल मीडिया एक विचित्र परंतु चिंताजनक प्रवृत्ति से भर उठा है: बॉलीवुड फिल्मों के पोस्टरों में अद्भुत समानता. ‘Saiyaara’, ‘Aankhon Ki Gustakhiyaan’ और ‘Dhadak 2’ जैसी फिल्मों के पोस्टर्स में एक जैसे रंगों, पोज़िशनिंग और भावों का दोहराव देखकर दर्शकों ने इसे “कॉपी-पेस्ट ट्रेंड” करार दे दिया है.
बॉलीवुड में चल रहा यह "कॉपी-पेस्ट पोस्टर ट्रेंड" भले ही एक मामूली डिज़ाइन समस्या लगे, लेकिन यह भारतीय सिनेमा की रचनात्मकता और सांस्कृतिक विविधता के लिए गंभीर संकेत है. जब दर्शक सोशल मीडिया पर डिज़ाइन की copycat culture की आलोचना कर रहे हैं, तब फिल्म निर्माताओं और क्रिएटिव टीम्स को यह आत्मचिंतन करने का समय है कि दर्शक अब केवल ‘स्टार’ नहीं, बल्कि विचार और प्रस्तुति की नवीनता को भी महत्व देते हैं.

यदि सिनेमा को एक जीवित सांस्कृतिक संस्था बनाए रखना है, तो उसकी दृश्यात्मक भाषा को भी उतनी ही संजीदगी से विकसित किया जाना चाहिए जितना उसकी कहानी को.

घटनाक्रम और सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
यह सब तब शुरू हुआ जब सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने तीन प्रमुख फिल्मों के पोस्टर्स की तुलना करते हुए पाया कि सभी में मुख्य जोड़े एक ही स्टाइल में—माथे को छूते हुए, बंद आंखों से प्रेम व्यक्त करते—दिखाए गए हैं. कुछ ने तो इन पोस्टरों के collage memes बना डाले, कुछ ने इंस्टाग्राम स्टोरीज़ में "कहां है originality?" जैसे सवाल उठाए. Reddit पर इस पर एक thread को हज़ारों upvotes मिले और ट्विटर पर "Copy-Paste Bollywood" ट्रेंड करने लगा.

कई डिज़ाइन छात्रों और मार्केटिंग विशेषज्ञों ने भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह केवल 'ट्रेंड फॉलो' करने का मामला नहीं, बल्कि रचनात्मक जड़ता (creative stagnation) का संकेत है.

मूलता बनाम फार्मूला
भारतीय फिल्म उद्योग में यह पहली बार नहीं हो रहा. पहले भी कई फिल्मों के टीज़र्स और गानों की मेल-जोल पर आलोचना हुई है, लेकिन पोस्टर डिज़ाइन में इस तरह की व्यापक समानता ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या बॉलीवुड अब फार्मूला-निर्माण की गिरफ्त में है?

डिज़ाइन एक ऐसी भाषा है जो फिल्म के सार को बताने से पहले दर्शकों के भीतर उत्सुकता जगाती है. लेकिन यदि हर दूसरी फिल्म का प्रमोशनल पोस्टर एक जैसा दिखे, तो दर्शक न केवल ऊबते हैं, बल्कि फिल्म की गंभीरता और मौलिकता पर भी सवाल उठाते हैं.

रचनात्मकता और बाजार का द्वंद्व
एक प्रमुख ग्राफिक डिज़ाइनर, जिनका नाम हम गोपनीय रखते हैं, कहते हैं:
"कई बार मार्केटिंग टीम्स फिल्म के मूल कथ्य को नहीं, बल्कि दर्शकों के साथ 'पहले से काम कर चुके विज़ुअल' का उपयोग करती हैं, जिससे engagement बढ़े. परंतु यह दृष्टिकोण लंबे समय में ब्रांड की क्रेडिबिलिटी को नुकसान पहुंचा सकता है."

यह स्पष्ट है कि यह ट्रेंड केवल रचनात्मक आलस्य का नतीजा नहीं, बल्कि एक प्रकार का व्यावसायिक दृष्टिकोण भी है जहां 'सेफ प्ले' को प्राथमिकता दी जाती है.

दर्शकों की अपेक्षाएं
आज के डिजिटल युग में दर्शक केवल कंटेंट नहीं चाहते, वे क्रिएटिविटी और नवाचार को भी मूल्य देते हैं. जब दर्शक फिल्म से जुड़ी हर छोटी-बड़ी चीज़—जैसे कि टीज़र, पोस्टर, इंटरव्यूज़—को ऑनलाइन consume करते हैं, तो वे उसमें नवीनता की तलाश करते हैं.

सोशल मीडिया पर कई यंग यूज़र्स ने यह भी लिखा कि वे अब ऐसी फिल्मों से बचना चाहते हैं जिनके पोस्टर्स ही मौलिक न हों, क्योंकि यह दर्शाता है कि फिल्म भी 'cut-copy-paste' ही हो सकती है.

फिल्म निर्माताओं की ज़िम्मेदारी
यह स्थिति केवल डिज़ाइन एजेंसी या सोशल मीडिया टीम की नाकामी नहीं, बल्कि निर्माताओं की दृष्टि का भी दर्पण है. जब फिल्म का पहला विज़ुअल ही अनप्रेरित हो, तो यह दर्शाता है कि फिल्म निर्माण में भी नवाचार की संभावना कम हो सकती है.

कई युवा फिल्म निर्माता और प्रोडक्शन हाउस अब AI-जनरेटेड पोस्टर्स, illustrative designs और hyper-local visual storytelling की ओर बढ़ रहे हैं. परंतु बड़ी कंपनियां अभी भी वही फॉर्मूला अपनाने में विश्वास रखती हैं, जिससे सुरक्षित ROI की गारंटी मिलती हो.

यह ट्रेंड कहां ले जा सकता है?
यदि यह ट्रेंड जारी रहा, तो इससे दो स्पष्ट परिणाम होंगे—

विश्वसनीयता की क्षति: दर्शकों को लगेगा कि बॉलीवुड केवल दोहराव पर आधारित है और उसकी कला में नयापन नहीं बचा.

आर्ट डायरेक्टर्स और डिज़ाइनर्स की संभावनाओं को आघात: जो रचनात्मकता के साथ प्रयोग करना चाहते हैं, उन्हें अवसर नहीं मिल पाएंगे क्योंकि 'सेफ और फिक्स्ड फॉर्मेट' के लिए बाज़ार में ज़्यादा मांग बनी रहेगी.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-