1 अगस्त को रिलीज़ हुई धड़क 2 ने आते ही सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी. सिद्धांत चतुर्वेदी और त्रिप्ती डिमरी की इस फिल्म को युवा दर्शकों और समीक्षकों दोनों ने गहरी भावनात्मक प्रतिक्रिया के साथ स्वीकार किया. हालांकि यह फिल्म किसी औपचारिक रीमेक की घोषणा नहीं करती, लेकिन इसे धड़क (2018) का वैचारिक उत्तराधिकारी माना जा रहा है. इस बार फिल्म प्रेम कहानी के साथ-साथ सामाजिक संरचना, जातीय तनाव और आत्मसम्मान की बात करती है. लेकिन क्या यह नई धड़क दर्शकों के दिल की धड़कन बन सकी? आइए, सोशल मीडिया पर दर्शकों की राय से समझते हैं.धड़क 2 ने भारतीय युवा दर्शकों के दिल और ज़ेहन में एक गहरी छाप छोड़ी है. सोशल मीडिया अब केवल फिल्म की मार्केटिंग का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक विमर्श का मंच बन चुका है. इस फिल्म की समीक्षा सिर्फ फ़िल्मी नहीं, सामाजिक और वैचारिक भी है—जहाँ सिनेमा और समाज एक-दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं. यह प्रेम कहानी दरअसल, आज के भारत में समानता की लड़ाई का फिल्मी आईना है.
यदि आप केवल प्रेम कहानी के रूप में इस फिल्म को देखेंगे, तो आप इसका आधा सच ही समझ पाएँगे. इसे केवल भावनात्मक एंटरटेनमेंट नहीं, एक वैचारिक चुनौती और सामाजिक संवाद की कोशिश के रूप में देखें. खासकर युवा दर्शकों को सलाह दी जाती है कि वे फिल्म के दृश्य सौंदर्य और अभिनय के साथ-साथ इसके सामाजिक-सांस्कृतिक सन्देश पर भी विचार करें.
यह फिल्म आपको असहज कर सकती है — और यही इसका असली उद्देश्य है: सोचने पर मजबूर करना.
फिल्म देखने के बाद अपने दोस्तों, परिवार और साथियों के साथ इसके मुद्दों पर संवाद करें—क्योंकि सिनेमा तभी सार्थक होता है जब वह स्क्रीन से निकलकर समाज में गूंज बन जाए.
कहानी के सामाजिक प्रभाव पर दर्शकों की राय
फिल्म की कहानी एक दलित विद्यार्थी अर्जुन (सिद्धांत) और उच्च जाति की लड़की पंखुड़ी (त्रिप्ती) के बीच पनपते प्रेम को लेकर है. ट्विटर और इंस्टाग्राम पर कई यूज़र्स ने इस विषयवस्तु को "जरूरी हस्तक्षेप" बताया है.
@cinesociopolitics नामक ट्विटर यूजर ने लिखा:
“धड़क 2 जैसी फिल्में केवल प्रेम को नहीं, सामाजिक असमानता और उस पर चल रही युवा पीढ़ी की जंग को दर्शाती हैं.”
वहीं, Instagram पर एक कॉलेज छात्रा ने रील बनाकर साझा किया:
"इस फिल्म को देखकर पहली बार लगा कि हमारा प्यार भी पर्दे पर दिखाया जा सकता है, वो भी बिना अपमान या मजाक के."
फिल्म की कहानी जहां पारिवारिक विरोध, समाज के जातिगत तनाव और छात्र राजनीति से होकर गुज़रती है, वहीं कई दर्शकों ने इसकी तुलना "भीम मीम लव स्टोरी" जैसे सोशल मीडिया ट्रेंड्स से की.
अभिनय और अभिनय पर सोशल प्रतिक्रियाएं
त्रिप्ती डिमरी का अभिनय सोशल मीडिया पर सबसे अधिक सराहा गया. दर्शकों ने उनकी आंखों से संवाद करने की कला को "emotionally disarming" बताया.
एक Reddit थ्रेड में लिखा गया:
"त्रिप्ती डिमरी ने फिल्म को थाम लिया है. उनके चेहरे के भाव बिना किसी संवाद के पूरी कहानी कह जाते हैं. यह हिंदी सिनेमा में एक दुर्लभ अनुभव है."
सिद्धांत चतुर्वेदी को भी यथार्थवादी प्रदर्शन के लिए सराहा गया, विशेषकर उन दृश्यों में जहां वह अपनी पहचान और आत्म-सम्मान के बीच झूलते हैं.
सोशल मीडिया की टॉप ट्रेंडिंग बातें
ट्विटर पर हैशटैग #Dhadak2Justice और #ArjunPankhuriLove ट्रेंड कर रहा है.
इंस्टाग्राम रील्स में खास तौर पर वह दृश्य वायरल हो रहा है, जिसमें अर्जुन अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि को स्वीकार करता हुआ कहता है: "मुझे तुम्हारा साथ नहीं, तुम्हारे बराबर का होना चाहिए."
YouTube और Threads पर कई युवा रिव्यूअर इस फिल्म को “Neo-Realist Bollywood” की शुरुआत बता रहे हैं.
आलोचना और बहस का पक्ष
जहां एक ओर फिल्म को खूब सराहा जा रहा है, वहीं कुछ वर्गों ने इसे “प्रकाश झा की फिल्मों की चमकदार कॉपी” कहकर नकारा भी है.
एक X यूजर ने लिखा:
“फिल्म में संदेश तो है, लेकिन इसे भी ‘लव स्टोरी’ के पर्दे में लपेट कर परोस दिया गया है. क्या समाज इससे असहज नहीं होगा?”
इस बयान पर कई प्रतिक्रियाएं आईं—कुछ ने सहमति जताई तो कईयों ने इसे "सोशल सिनेमाई डर" करार दिया.
युवा दर्शकों की नज़र से निष्कर्ष
धड़क 2 के प्रति सोशल मीडिया पर युवा दर्शकों की प्रतिक्रियाएँ भावनात्मक, सामाजिक और राजनीतिक तीनों स्तरों पर सक्रिय रही हैं. यह केवल एक फिल्म नहीं, एक संवाद बन गई है—जहां प्रेम, पहचान, सम्मान और प्रतिरोध के नए आयाम तलाशे जा रहे हैं.
एक फॉलो-अप ट्वीट में किसी यूज़र ने लिखा:
“अगर Sairat हमारा गुस्सा था, तो Dhadak 2 हमारी गहरी उदासी है—शांति में कही गई क्रांति.”
दर्शकों के लिए सलाह:
यदि आप केवल प्रेम कहानी के रूप में इस फिल्म को देखेंगे, तो आप इसका आधा सच ही समझ पाएँगे. इसे केवल भावनात्मक एंटरटेनमेंट नहीं, एक वैचारिक चुनौती और सामाजिक संवाद की कोशिश के रूप में देखें. खासकर युवा दर्शकों को सलाह दी जाती है कि वे फिल्म के दृश्य सौंदर्य और अभिनय के साथ-साथ इसके सामाजिक-सांस्कृतिक सन्देश पर भी विचार करें.
यह फिल्म आपको असहज कर सकती है — और यही इसका असली उद्देश्य है: सोचने पर मजबूर करना.
फिल्म देखने के बाद अपने दोस्तों, परिवार और साथियों के साथ इसके मुद्दों पर संवाद करें—क्योंकि सिनेमा तभी सार्थक होता है जब वह स्क्रीन से निकलकर समाज में गूंज बन जाए.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

