साइबर अपराध का बदलता तंत्र और डिजिटल ठगों पर पुलिस की नई बहुस्तरीय रणनीतिक घेराबंदी

साइबर अपराध का बदलता तंत्र और डिजिटल ठगों पर पुलिस की नई बहुस्तरीय रणनीतिक घेराबंदी

प्रेषित समय :22:38:35 PM / Mon, Aug 4th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अभिमनोज

भारत में साइबर अपराध की घटनाएं अब केवल ऑनलाइन ठगी या फर्जी कॉल सेंटरों तक सीमित नहीं हैं. यह एक संगठित उद्योग का रूप ले चुका है, जहां आधुनिक तकनीक और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का प्रयोग किया जा रहा है. लेकिन अब पुलिस और साइबर सुरक्षा एजेंसियों की रणनीति भी तेजी से बदली है. नोएडा, हैदराबाद, सूरत से लेकर महाराष्ट्र तक की कार्रवाई यह दर्शाती है कि अब टारगेट केवल अपराधी नहीं, बल्कि पूरे साइबर नेटवर्क और उसकी संरचना है.

नोएडा पुलिस ने हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट सपोर्ट एजेंट बनकर विदेशी नागरिकों को ठगने वाले गिरोह का भंडाफोड़ किया, जिसमें दो महिलाएं भी शामिल थीं. यह गिरोह विदेशी नागरिकों को फर्जी तकनीकी सहायता के नाम पर मैलवेयर भेजता, फिर उनके कंप्यूटरों को हैक कर रिमोट एक्सेस के ज़रिए उन्हें हजारों डॉलर की ठगी में फँसाता. इनके पास से 23 लैपटॉप, मोबाइल, फर्जी आईडी कार्ड और कई हाई-टेक डिवाइस बरामद किए गए. इस केस में दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड से आए लोग शामिल थे जो नोएडा के किराए के फ्लैटों से यह रैकेट चला रहे थे.

इसी तरह तेलंगाना साइबर सुरक्षा ब्यूरो ने शेयर मार्केट के नाम पर 3 करोड़ की धोखाधड़ी करने वाले गिरोह का पर्दाफाश किया. महिला के जरिए एक फर्जी ट्रेडिंग स्कीम में एक व्यक्ति को फंसाया गया और फर्जी निवेश के नाम पर लाखों रुपये ऐंठ लिए गए. इसके अलावा TGCSB ने इस वर्ष 1 जनवरी से 31 जुलाई के बीच 228 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया, जिनमें 27 महिलाएं भी शामिल थीं. ये गिरफ्तारियां 1300 से अधिक साइबर मामलों से जुड़ी थीं, जिनमें 92 करोड़ रुपये की डिजिटल ठगी की गई थी.

ये घटनाएं दर्शाती हैं कि अब अपराधी महज़ शातिर नहीं, बल्कि तकनीकी रूप से प्रशिक्षित और नेटवर्क आधारित ढांचे में काम कर रहे हैं. कॉल सेंटर अब केवल धोखे का माध्यम नहीं, बल्कि एक संगठित अपराध उद्योग बन गए हैं, जहां CRM सॉफ्टवेयर, रिमोट टूल्स, स्क्रिप्टेड सोशल इंजीनियरिंग और ट्रेनिंग मैनुअल का उपयोग किया जा रहा है. यही कारण है कि पुलिस को भी अपने ढांचे में बदलाव करना पड़ा है. महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अब साइबर विशेषज्ञ, डिजिटल फॉरेंसिक टीम, क्लाउड ट्रेसिंग यूनिट जैसी व्यवस्थाएं बन चुकी हैं.

नए दौर की पुलिसिंग में एक नई रणनीति सामने आई है – सूचना अभियानों के ज़रिए साइबर अपराध पर ‘पूर्व-दृश्यता’ पैदा करना. अब पुलिस ऑपरेशन से पहले ही मीडिया या सोशल मीडिया के ज़रिए प्रचार करती है जिससे अपराधियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनता है और नागरिकों को सतर्कता का संदेश जाता है.

इसके साथ ही, अंतरराज्यीय समन्वय अब एक गेमचेंजर बन चुका है. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना जैसे राज्यों की पुलिस और साइबर एजेंसियां अब एक साझा रणनीति के तहत काम कर रही हैं. इससे न केवल अभियानों में तेजी आई है बल्कि अपराधियों का भागना भी कठिन हुआ है.

हालांकि चुनौतियां भी कम नहीं हैं. भारत की साइबर न्याय व्यवस्था अब भी सुस्त है. डिजिटल सबूत को अदालत में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया लंबी और तकनीकी रूप से कमजोर है. यह कारण है कि कई बार अपराधी पकड़े जाने के बावजूद उन्हें सजा नहीं हो पाती. यही वह गैप है जिसे अपराधी भलीभांति समझ चुके हैं और इसी का लाभ उठा रहे हैं.

चिंता की बात यह भी है कि अब डिजिटल अपराधों में महिलाओं और युवाओं की संलिप्तता तेजी से बढ़ रही है. कुछ लोग इन नेटवर्क्स में शिकार बनते हैं तो कुछ नौकरी के लालच में अपराध का हिस्सा बन जाते हैं. यह एक नई सामाजिक चुनौती है जहाँ रोजगार की कमी, डिजिटल ज्ञान की असमानता और सामाजिक दबाव ने युवाओं को गलत रास्ते पर धकेला है.

फिर भी पुलिस और एजेंसियों की भूमिका में सकारात्मक बदलाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. अब पुलिस न केवल अपराधियों को पकड़ रही है, बल्कि पीड़ितों के लिए मल्टी-लैंग्वेज हेल्पलाइन, हेल्पडेस्क और परामर्श केंद्र भी शुरू किए गए हैं. लेकिन आम लोगों की जागरूकता अभी भी बहुत कम है. अधिकतर पीड़ित आखिरी समय तक चुप रहते हैं, क्योंकि उन्हें या तो कानूनी जानकारी नहीं होती या वे सामाजिक शर्म के कारण रिपोर्ट नहीं करते.

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि साइबर अपराध अब केवल आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला बन चुका है. इससे लड़ने के लिए एक समेकित प्रयास – तकनीकी दक्षता, न्यायिक प्रक्रिया में तेजी, और नागरिक जागरूकता की ज़रूरत है. केवल पुलिस नहीं, समाज को भी इस युद्ध में अपनी भूमिका समझनी होगी.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-