अमेरिकी सीनेट ने हाल ही में रिपब्लिकन राजनीतिक रणनीतिकार शॉन केयर्नक्रॉस को राष्ट्रीय साइबर निदेशक (National Cyber Director) के रूप में पुष्टि दी है. यह नियुक्ति ऐसे समय में आई है जब अमेरिका समेत पूरा विश्व लगातार उभरते साइबर खतरों और डिजिटल सुरक्षा की गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है. ट्रंप प्रशासन से करीबी रखने वाले केयर्नक्रॉस की यह ताजपोशी न केवल तकनीकी हलकों में बहस का विषय बन गई है, बल्कि इससे यह भी संकेत मिलते हैं कि आने वाले समय में साइबर नीति और रणनीति पर राजनीतिक प्राथमिकताओं का गहरा प्रभाव पड़ेगा.शॉन केयर्नक्रॉस की नियुक्ति सिर्फ एक प्रशासनिक कदम नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक संकेत है कि ट्रंप समर्थक और रिपब्लिकन एजेंडा अब डिजिटल और साइबर फ्रंट पर भी स्पष्ट रूप से उभर रहा है. यह देखना दिलचस्प होगा कि केयर्नक्रॉस किस तरह से नीति, तकनीक और कूटनीति के इस त्रिकोण में संतुलन बनाते हैं — और क्या वह अमेरिका को साइबर चुनौतियों के दौर में सही दिशा में ले जा पाएंगे?
कौन हैं शॉन केयर्नक्रॉस?
शॉन केयर्नक्रॉस एक वरिष्ठ रिपब्लिकन राजनीतिक सलाहकार हैं. वह पहले रिपब्लिकन राष्ट्रीय समिति (RNC) में मुख्य परिचालन अधिकारी (COO) और कानूनी सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं. इसके अलावा, ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान उन्होंने मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन (MCC) के सीईओ के रूप में भी भूमिका निभाई. हालांकि उनकी तकनीकी पृष्ठभूमि या साइबर सुरक्षा में कोई विशेष विशेषज्ञता नहीं रही है, लेकिन उन्होंने सीनेट की पुष्टि सुनवाई के दौरान कहा कि उन्होंने निजी और सार्वजनिक संस्थानों को साइबर खतरों से निपटने में रणनीतिक मदद की है.
राष्ट्रीय साइबर निदेशक की भूमिका क्यों महत्वपूर्ण है?
राष्ट्रीय साइबर निदेशक का पद अमेरिका में 2021 में औपचारिक रूप से बनाया गया था, जब यह स्पष्ट हुआ कि मौजूदा सरकारी तंत्र में साइबर सुरक्षा पर समन्वय और नीति निर्धारण की बड़ी कमी है. यह पद इसलिए भी अहम है क्योंकि इसका कार्य व्हाइट हाउस से लेकर रक्षा, ऊर्जा, वित्त और निजी क्षेत्र के बीच नीति और प्रतिक्रिया में सामंजस्य स्थापित करना है.
राजनीतिक नियुक्ति या रणनीतिक सोच?
केयर्नक्रॉस की नियुक्ति ने कई तकनीकी विशेषज्ञों और साइबर सुरक्षा विश्लेषकों को चौंका दिया है क्योंकि वह इस क्षेत्र के पारंपरिक पेशेवर नहीं हैं. हालांकि समर्थकों का कहना है कि उनकी राजनीतिक पकड़ और प्रशासनिक अनुभव, नीति निर्धारण में सहायक सिद्ध हो सकते हैं. आलोचकों की चिंता यह है कि साइबर सुरक्षा जैसे तकनीकी और संवेदनशील क्षेत्र में बिना आवश्यक पृष्ठभूमि के कोई व्यक्ति नीति निर्माण और आपातकालीन निर्णयों में कितना प्रभावी होगा?
ट्रंप युग की साइबर नीति की झलक
ट्रंप समर्थक के रूप में केयर्नक्रॉस की नियुक्ति को विशेषज्ञ ट्रंप प्रशासन की साइबर नीति की एक पुनरावृत्ति मान रहे हैं — जहां निजी क्षेत्र की भागीदारी और राष्ट्रीय सुरक्षा को एक ही धागे में पिरोने की कोशिश की जाती रही है. उनकी पुष्टि इस बात का भी संकेत देती है कि यदि ट्रंप भविष्य में सत्ता में लौटते हैं, तो साइबर नीति भी उनकी विदेश और रक्षा नीति की तरह अधिक केंद्रीकृत और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण वाली हो सकती है.
अमेरिका और वैश्विक परिदृश्य में असर
साइबर खतरों के संदर्भ में अमेरिका आज कई मोर्चों पर जूझ रहा है — रूस, चीन, ईरान और नॉर्थ कोरिया जैसे देशों की ओर से हो रहे रैनसमवेयर, हैकिंग और चुनावी दखल जैसे खतरे बढ़ते जा रहे हैं. इस चुनौतीपूर्ण माहौल में केयर्नक्रॉस के सामने जिम्मेदारी होगी कि वे न केवल घरेलू साइबर ढांचे को मजबूत करें, बल्कि वैश्विक सहयोग के साथ भी संतुलन बनाए रखें.
भारत और दुनिया के लिए संकेत
भारत जैसे देशों के लिए यह नियुक्ति दो संकेत देती है:
साइबर सुरक्षा नीति अब तकनीकी विशेषज्ञता से अधिक राजनीतिक रणनीति और वैश्विक कूटनीति से जुड़ी है.
अमेरिका की साइबर नीति में बदलाव का असर उन साझेदार देशों पर भी पड़ेगा जो उससे सूचना साझाकरण, साइबर अभ्यास, और डिजिटल सहयोग में जुड़े हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

