हम सबने कभी न कभी यह सवाल अवश्य सोचा होगा कि मंदिरों के शिखर पर ध्वज क्यों फहराया जाता है? दरअसल, मंदिर का ध्वज केवल सजावट का हिस्सा नहीं, बल्कि उसका आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व बहुत गहरा है.
मंदिर निर्माण शास्त्र में सोमपुरा आचार्यों ने लिखा है कि मंदिर भगवान के शरीर के समान होता है—आधार (चरण), स्तंभ (घुटने), गर्भगृह (हृदय) और उसमें जलता दीपक (आत्मा). शिखर को मंदिर का सिर माना जाता है और उस पर फहराता ध्वज भगवान के केशों का प्रतीक है.
ध्वज ब्रह्मांड से दिव्य ऊर्जा और सकारात्मक तरंगों को आकर्षित करने के लिए एक ‘रडार’ की तरह काम करता है. द्वारकाधीश मंदिर की बावन फुट ऊँची ध्वजा चढ़ाने वाले भक्त को बावन प्रकार के शुभ अवसर और लाभ प्राप्त होते हैं. इसका रहस्य है—चार दिशाएँ, 12 राशियाँ, 9 ग्रह और 27 नक्षत्र—इनका योग होता है 52.
ध्वज के दर्शन से भक्त के मन में एक अलौकिक, मधुर और स्थायी स्मृति बस जाती है, जो जीवन को धन्य बना देती है.
मंदिर में नंगे पैर प्रवेश करने का कारण
हर हिंदू मंदिर में नंगे पैर प्रवेश करने की परंपरा है. इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि मंदिर का फर्श विशेष रूप से इस प्रकार निर्मित होता है कि वह विद्युत और चुंबकीय तरंगों का प्रबल स्रोत बनता है. जब हम नंगे पैर उस पर चलते हैं, तो यह ऊर्जा सीधे हमारे शरीर में प्रवेश कर हमें ऊर्जावान बनाती है.
दीपक जलाने का वैज्ञानिक कारण
आरती के बाद जब हम दीपक या कपूर की लौ पर हाथ सेंककर उसे आँखों और माथे पर लगाते हैं, तो उसकी हल्की गर्माहट से हमारी दृष्टि इंद्रिय सक्रिय हो जाती है. इससे मानसिक ताजगी और सुकून का अनुभव होता है.
मंदिर में घंटी बजाने का कारण
मंदिर के प्रवेश द्वार या गर्भगृह के सामने घंटी बजाने की परंपरा है. इसकी ध्वनि लगभग सात सेकंड तक गूँजती है, जिससे शरीर के सात प्रमुख चक्र (Energy Centers) सक्रिय हो जाते हैं और कुंडलिनी शक्ति जागृत होने लगती है.
भगवान की मूर्ति की स्थापना का रहस्य
भगवान की मूर्ति सदैव गर्भगृह के मध्य में स्थापित की जाती है. यह वह स्थान है जहाँ सकारात्मक ऊर्जा का संचार सबसे अधिक होता है. यहाँ खड़े होकर हम सकारात्मक विचारों को ग्रहण करते हैं और नकारात्मकता स्वतः दूर हो जाती है.
परिक्रमा करने का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण
मंदिर में दर्शन के बाद परिक्रमा करने की परंपरा है. परिक्रमा से शरीर और मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मानसिक शांति मिलती है.
परिक्रमा के नियम इस प्रकार हैं—
सूर्यदेव की 7 परिक्रमा
भगवान गणेश की 4 परिक्रमा
भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की 4 परिक्रमा
देवी दुर्गा की 3 परिक्रमा
हनुमानजी की 3 परिक्रमा
शिवजी की आधी परिक्रमा (क्योंकि जलधारी को लांघना निषिद्ध है)
यह सभी परंपराएँ केवल धार्मिक भावनाओं से नहीं, बल्कि गहरे वैज्ञानिक और ऊर्जा-आधारित कारणों से जुड़ी हैं. जब हम इनके महत्व को समझकर पालन करते हैं, तो पूजा-अर्चना का आध्यात्मिक अनुभव और भी गहरा हो जाता
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

