12 अगस्त का दिन भारतीय संस्कृति में विशेष धार्मिक महत्व लेकर आ रहा है, जब एक साथ दो पावन पर्व—कजरी तीज और संकष्टी चतुर्थी—मनाए जाएंगे. यह संयोग भक्तों के लिए न केवल आध्यात्मिक आनंद का अवसर है, बल्कि जीवन में सौभाग्य, सुख-समृद्धि और मनोकामना पूर्ति की कामना का भी अद्भुत पर्व है. दोनों ही पर्व अपनी-अपनी विशिष्टता के साथ भारतीय धार्मिक परंपराओं और लोक आस्था में गहराई से रचे-बसे हैं.
कजरी तीज, विशेष रूप से उत्तर भारत की महिलाओं के लिए आस्था और सुहाग की रक्षा का पर्व है. यह श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं, वहीं अविवाहित युवतियां योग्य वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं. कजरी तीज का नामकरण ‘कजली’ या ‘कजरी’ लोकगीतों से हुआ है, जो इस दिन विशेष रूप से गाए जाते हैं. इन गीतों में प्रेम, विरह और भक्ति की भावनाओं का संगम होता है. महिलाएं व्रत के दौरान निर्जला उपवास रखती हैं और सजी-धजी झूलों पर बैठकर कजरी गीत गाती हैं, जिससे वातावरण भक्तिमय और आनंदमय बन जाता है.
इस वर्ष कजरी तीज का पूजन मुहूर्त प्रातः 6:00 बजे से 8:00 बजे तक है. इस समय देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है, साथ ही कजरी माता और नीम के वृक्ष की भी वंदना होती है. मान्यता है कि इस दिन पूरे श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत करने से दांपत्य जीवन में प्रेम और सामंजस्य बना रहता है.
इसी दिन संकष्टी चतुर्थी का पर्व भी मनाया जाएगा, जो भगवान गणेश को समर्पित है. संकष्टी चतुर्थी हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है, लेकिन जब यह शनिवार या मंगलवार को पड़ती है, तो इसे अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है. इस दिन गणपति भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और रात्रि में चंद्रमा के दर्शन कर, अर्घ्य देकर व्रत का समापन करते हैं. भगवान गणेश विघ्नहर्ता माने जाते हैं, अतः इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन के संकट दूर होते हैं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है.
इस बार संकष्टी चतुर्थी के लिए चंद्रोदय पूजन का समय रात 8:45 बजे से 9:30 बजे के बीच रहेगा. भक्तजन इस समय गणपति बप्पा का पूजन करते हैं, मोदक, दूर्वा और लाल फूल अर्पित करते हैं, और गणेश चालीसा का पाठ करते हैं. इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर और कथा सुनकर व्रत पूर्ण किया जाता है. चंद्रमा को अर्घ्य देने का महत्व इसलिए है क्योंकि गणेशजी का संबंध चंद्रमा से जुड़ा एक पौराणिक प्रसंग है, जिसमें चंद्रमा ने गणेशजी का अपमान किया था और बाद में उन्होंने क्षमा मांगी. तभी से संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रमा पूजन की परंपरा है.
दोनों पर्वों का एक साथ पड़ना धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जा रहा है. कजरी तीज जहां दांपत्य जीवन में प्रेम, सौंदर्य और सौभाग्य का वरदान देती है, वहीं संकष्टी चतुर्थी जीवन के सभी विघ्नों और संकटों को दूर करने का मार्ग प्रशस्त करती है. इन पर्वों का संयोजन यह संदेश देता है कि जीवन में सुख-संपन्नता और शांति का संतुलन तभी संभव है, जब हम भक्ति, प्रेम और आस्था से जुड़े रहें.
12 अगस्त का यह दिन न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का अवसर है, बल्कि परिवार और समाज में एकता, प्रेम और सहयोग की भावना को भी मजबूत करता है. महिलाएं और पुरुष दोनों अपने-अपने पर्व की पूजा विधि के अनुसार व्रत और पूजन करेंगे, लेकिन अंततः दोनों ही पर्व जीवन में मंगल और समृद्धि लाने के लिए मनाए जाते हैं. ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरों तक, मंदिरों और घरों में इस दिन भजन-कीर्तन और पूजा-पाठ की गूंज सुनाई देगी.
इस विशेष संयोग में भाग लेने वाले भक्तों के लिए यह दिन आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अद्भुत अनुभव लेकर आएगा. आस्था की गंगा में डुबकी लगाकर हर कोई अपने जीवन में नए उत्साह और उमंग के साथ आगे बढ़ सकेगा. 12 अगस्त का यह पावन दिन निश्चित रूप से श्रद्धालुओं के जीवन में आनंद, सौभाग्य और विघ्न-निवारण का वरदान लेकर आएगा.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

