मनीषा हत्याकांड: हरियाणा की कानून-व्यवस्था पर सवाल

मनीषा हत्याकांड: हरियाणा की कानून-व्यवस्था पर सवाल

प्रेषित समय :20:44:23 PM / Sun, Aug 17th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

- डॉ सत्यवान सौरभ
भिवानी ज़िले की उन्नीस वर्षीय शिक्षिका मनीषा की हत्या ने पूरे हरियाणा को झकझोर कर रख दिया है. यह मामला केवल एक बेटी की असमय मौत भर नहीं है, बल्कि हरियाणा की पुलिस व्यवस्था, समाज और शासन तंत्र पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न भी है. सवाल यह है कि आखिर क्यों हर बार बेटियों की सुरक्षा तब चर्चा का विषय बनती है जब कोई दर्दनाक घटना घट जाती है? क्यों पुलिस की प्राथमिक प्रतिक्रिया संवेदनशील और सक्रिय होने के बजाय उपेक्षा और पूर्वाग्रह से भरी रहती है?

मनीषा ग्यारह अगस्त को नर्सिंग कॉलेज से लौटते समय लापता हो गई. परिजनों ने उसी दिन पुलिस को शिकायत दी. मगर पुलिस का रवैया बेहद उपेक्षापूर्ण था. पिता को यह कहकर टाल दिया गया कि “लड़की भाग गई होगी, खुद लौट आएगी.” यह बयान केवल पुलिस की संवेदनहीनता नहीं दर्शाता बल्कि यह भी बताता है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियाँ अब भी पुरानी जड़ मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाई हैं.

प्रथम सूचना रिपोर्ट अगले दिन दर्ज की गई और कॉलेज का बंद परिपथ यंत्र का चित्रण भी तेरह अगस्त को जुटाया गया. यानी तीन दिन तक समय बर्बाद हुआ. इस दौरान मनीषा का गला रेतकर हत्या कर दी गई और शव को जलाने की कोशिश की गई. अगर पुलिस ने तुरंत गंभीरता दिखाई होती, तो शायद उसकी जान बचाई जा सकती थी. यह मामला हर उस परिवार के डर को सच साबित करता है जो अपनी बेटियों को घर से बाहर भेजते समय दिल पर पत्थर रखते हैं.

मनीषा के परिवार ने जब शव देखा तो उनका दुःख आक्रोश में बदल गया. उन्होंने शव लेने और अंतिम संस्कार से इनकार कर दिया. उनका कहना था कि जब तक हत्यारे पकड़े नहीं जाते, तब तक वे अंतिम संस्कार नहीं करेंगे. यह प्रतिरोध केवल एक परिवार का नहीं, बल्कि पूरे समाज की पीड़ा है.

भिवानी नागरिक अस्पताल में लगातार धरना चला. गाँव-गाँव से लोग समर्थन में पहुँचे. यह संघर्ष हमें याद दिलाता है कि न्याय के लिए जनता को बार-बार सड़क पर उतरना पड़ता है. आखिर यह कैसा लोकतंत्र है जहाँ नागरिक को अपनी आवाज़ सुनाने के लिए शव लेकर धरने पर बैठना पड़े?

चरखी दादरी, भिवानी, बाढड़ा, भांड़वा और लोहारू सहित कई कस्बों में बाज़ार बंद हुए. सड़कों पर जाम लगा. मोमबत्ती मार्च निकाले गए. यह जनता का सीधा संदेश था कि अब और सहन नहीं होगा. जब भी व्यवस्था अपने कर्तव्य से चूकती है, जनता का आक्रोश ही उसे आईना दिखाता है. लोगों की माँग थी कि दोषियों को फाँसी दी जाए. उनकी नाराजगी केवल अपराधियों से नहीं थी, बल्कि उस तंत्र से भी थी जिसने समय रहते कार्रवाई नहीं की.

बढ़ते जनाक्रोश ने मुख्यमंत्री को कदम उठाने पर मजबूर किया. उन्होंने भिवानी पुलिस अधीक्षक का तबादला कर दिया और पाँच पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया. सवाल यह है कि क्या सिर्फ़ निलंबन और तबादले से बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाएगी? क्या पुलिस सुधार का मतलब केवल नाम बदलना और कुर्सी बदलना भर है? यह कदम राजनीतिक दबाव में उठाए गए अस्थायी उपाय भर लगते हैं.

विपक्ष ने इस मामले को तुरंत मुद्दा बनाया. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि हरियाणा में कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है. उनका बयान गलत नहीं है. जब लोग पुलिस पर भरोसा नहीं कर पा रहे, तब यह साफ है कि व्यवस्था की जड़ें खोखली हो चुकी हैं. लेकिन यह भी उतना ही सच है कि विपक्षी दल केवल बयानबाज़ी तक सीमित रहते हैं. सत्ता में रहते हुए उन्होंने भी पुलिस सुधार और महिला सुरक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाए. इसलिए दोष केवल वर्तमान सरकार का नहीं, बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र का है, जिसने कभी इस मुद्दे को प्राथमिकता नहीं दी.

हर हत्या के बाद हम मोमबत्तियाँ जलाते हैं, सड़कें जाम करते हैं और कड़ी सज़ा की माँग करते हैं. लेकिन क्या इसके बाद हमारे समाज का रवैया बदलता है? बेटियों को घर से बाहर निकलते समय शक की निगाह से देखना, उनकी स्वतंत्रता पर बंदिश लगाना और पुलिस का "भाग गई होगी" वाला दृष्टिकोण — ये सब हमारी सामूहिक मानसिकता की गवाही देते हैं. हमें यह समझना होगा कि अपराधियों का हौसला तभी टूटेगा जब समाज बेटियों को बराबरी का अधिकार और सुरक्षा का वातावरण देगा.

सुधार की राह साफ है. हर शिकायत को तुरंत दर्ज करना अनिवार्य होना चाहिए. गुमशुदगी के मामलों में “भाग जाने” वाली सोच को खत्म करना होगा. केवल निलंबन काफी नहीं है. दोषी अधिकारियों पर आपराधिक मामला दर्ज हो और सख़्त सज़ा मिले. कॉलेज, स्कूल और सार्वजनिक स्थानों पर निगरानी व्यवस्था और पुलिस गश्त मजबूत होनी चाहिए. महिला अपराधों की सुनवाई शीघ्र हो और हर मामला छह महीने के भीतर निपटाया जाए. घर-परिवार से लेकर पंचायत और समाज तक यह संदेश जाए कि बेटियों की सुरक्षा केवल सरकार नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है.

मनीषा हत्याकांड ने यह साबित कर दिया है कि हरियाणा में कानून-व्यवस्था कितनी खोखली है. यह मामला केवल एक बेटी का नहीं, बल्कि हर घर की चिंता का विषय है. अगर हम अब भी नहीं चेते तो कल और कितनी मनीषाएँ इस व्यवस्था की भेंट चढ़ेंगी, कहना मुश्किल है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-