सावन बीत चुका है और भाद्रपद मास का पहला पवित्र व्रत अजा एकादशी अब सामने है. 19 अगस्त, सोमवार को यह व्रत पूरे देश में श्रद्धापूर्वक मनाया जाएगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अजा एकादशी का उपवास करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि इसे हर वर्ग के लिए—गृहस्थ से लेकर संन्यासी तक—सर्वश्रेष्ठ और सर्वलोकहितकारी व्रत माना गया है.
तिथि और मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, इस बार अजा एकादशी व्रत की तिथि 18 अगस्त, रविवार को रात 9 बजकर 32 मिनट से प्रारंभ होगी और 19 अगस्त, सोमवार को रात 8 बजकर 13 मिनट तक रहेगी. उदयातिथि के अनुसार व्रत 19 अगस्त को ही रखा जाएगा. व्रत का पारण 20 अगस्त, मंगलवार को प्रातः 6 बजकर 1 मिनट से 8 बजकर 26 मिनट के बीच करना श्रेष्ठ रहेगा.
व्रत की कथा और महत्व
अजा एकादशी की कथा सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी है. अनेक कठिनाइयों से गुजरने के बाद इस व्रत के पुण्य से उन्हें खोया हुआ राज्य, परिवार और गौरव वापस मिला. इसी वजह से इसे सत्य, मोक्ष और धर्म की रक्षा करने वाला व्रत माना जाता है.
शास्त्रों में उल्लेख है कि अजा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना, उपवास और दान करने से न केवल पाप क्षीण होते हैं, बल्कि पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है. यही कारण है कि इसे “सबका व्रत” कहा जाता है.
कैसे करें पूजन (व्रत विधि)
प्रातः स्नान और संकल्प – सूर्योदय से पहले स्नान करें और “मैं अजा एकादशी का व्रत कर रहा/रही हूँ” इस भाव से संकल्प लें.
व्रत नियम – पूरे दिन उपवास करें. यदि संभव हो तो निर्जला व्रत रखें, अन्यथा फलाहार व सात्विक आहार ग्रहण कर सकते हैं.
भगवान विष्णु पूजन – विष्णुजी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएँ, पुष्प, तुलसीदल, धूप और प्रसाद अर्पित करें.
मंत्रजप और पाठ – विष्णु सहस्रनाम, भगवद्गीता के श्लोकों का पाठ करें. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप विशेष फलदायी है.
भजन-कीर्तन और जागरण – रात्रि में भजन-कीर्तन करना और हरि नाम का स्मरण करना पुण्यदायी माना गया है.
दान-पुण्य – ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन, वस्त्र अथवा धन का दान करें. यह व्रत की पूर्णता का मुख्य अंग है.
पारण (व्रत खोलना) – अगले दिन यानी 20 अगस्त की सुबह शुद्ध आहार बनाकर भगवान को भोग लगाएँ और फिर स्वयं ग्रहण करें. इसी के साथ व्रत संपन्न होता है.
अजा एकादशी केवल उपवास का दिन नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, संयम और सत्य की राह पर चलने का अवसर है. भाद्रपद का यह व्रत जीवन में संतुलन और ईश्वर भक्ति का महत्व समझाने वाला पर्व है.
अजा एकादशी के महत्व को समझाने वाली कथा राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी है. कथा के अनुसार सत्यवादी हरिश्चंद्र को अनेक कठिनाइयों और दुखों का सामना करना पड़ा, परंतु इस एकादशी के व्रत के पुण्य से उन्हें न केवल खोया हुआ राज्य और पुत्र वापस मिला बल्कि धर्म और सत्य की रक्षा का मार्ग भी प्रशस्त हुआ. इसी वजह से इसे सत्य और मोक्ष की राह दिखाने वाला व्रत कहा गया है.
शास्त्रों में कहा गया है कि अजा एकादशी के दिन उपवास, दान और भगवान विष्णु की आराधना से पाप क्षीण होते हैं. इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ, तुलसी पूजन, दीपदान और भजन-कीर्तन का विशेष महत्व है. वहीं, जो लोग पूर्ण उपवास नहीं कर पाते, वे फलाहार और सात्विक भोजन से व्रत का पालन कर सकते हैं.
पितृ शांति के लिए भी अजा एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है. ऐसा विश्वास है कि इस दिन का व्रत करने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है. इसलिए इस व्रत को हर वर्ग के लोग करते हैं, यही कारण है कि इसे “सबका व्रत” कहा गया है.
आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो अजा एकादशी आत्मशुद्धि और मनोबल को दृढ़ करने का अवसर देती है. भाद्रपद मास का यह व्रत सावन की भक्ति-रसपूर्ण यात्रा के बाद आने वाले शरद ऋतु की शुरुआत से पहले जीवन में संयम, अनुशासन और संतुलन का संदेश भी देता है.
धार्मिक विद्वानों का मानना है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और नियम से इस व्रत को करता है, उसे न केवल पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन के कष्टों का भी अंत होता है. भक्ति और सत्य पर चलने की प्रेरणा ही इस व्रत का सबसे बड़ा संदेश है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

