भारत में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी को लागू हुए सात वर्ष से अधिक समय हो चुके हैं और इस अवधि में इसके अनेक फायदे और चुनौतियाँ सामने आई हैं. अब सरकार ने स्वतंत्रता दिवस पर अगले चरण के जीएसटी सुधारों की घोषणा कर दी है, जिसे ‘नेक्स्ट जनरेशन’ टैक्स स्ट्रक्चर बताया जा रहा है. वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहा कि इन सुधारों का सीधा असर रोजमर्रा के उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा और विशेषकर मोबाइल फोन, कंप्यूटर और कार जैसे सेक्टर में कीमतों में कमी आ सकती है. विशेषज्ञों के अनुसार यह बदलाव इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक इन वस्तुओं पर जीएसटी की गणना और टैक्स रेट को लेकर कई विसंगतियाँ रही हैं, जिनकी वजह से उपभोक्ताओं को अपेक्षाकृत अधिक कीमत चुकानी पड़ती थी.
मोबाइल फोन भारत की सबसे बड़ी उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स श्रेणी है. देश में हर साल लगभग 160 से 180 मिलियन स्मार्टफोन बिकते हैं. उद्योग के आंकड़े बताते हैं कि भारतीय स्मार्टफोन बाजार का आकार 45 से 50 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुका है. ऐसे में यदि जीएसटी सुधारों के चलते इनकी कीमतों में औसतन 8 से 10 प्रतिशत तक की कमी आती है, तो यह करोड़ों ग्राहकों के लिए बड़ी राहत होगी. उदाहरण के लिए, अभी यदि कोई स्मार्टफोन 20,000 रुपये का आता है, तो टैक्स में बदलाव से वही मोबाइल करीब 18,000 रुपये तक में मिल सकता है. इसी तरह 15,000 रुपये वाले सेगमेंट का मोबाइल 1,000 से 1,500 रुपये तक सस्ता हो सकता है.
वर्तमान व्यवस्था में मोबाइल फोन पर जीएसटी की दर 18 प्रतिशत है. हालांकि, इसके कंपोनेंट्स और स्पेयर पार्ट्स पर अलग-अलग टैक्स रेट लागू होते हैं, जिससे कंपनियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट का पूरा लाभ नहीं मिल पाता. इसका नतीजा यह होता है कि उत्पादन लागत बढ़ जाती है और अंततः यह बोझ उपभोक्ता पर आ जाता है. नए सुधारों के तहत सरकार एकीकृत दर लाने और टैक्स क्रेडिट को सुगम बनाने की दिशा में काम कर रही है. इसका सीधा असर मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों की लागत पर पड़ेगा और प्रतिस्पर्धा बढ़ने से कीमतों में गिरावट होगी.
केवल मोबाइल फोन ही नहीं, बल्कि कंप्यूटर और ऑटोमोबाइल सेक्टर में भी यह राहत देखने को मिल सकती है. कंप्यूटर और लैपटॉप्स, जिन पर फिलहाल 18 प्रतिशत टैक्स है, उनकी कीमतों में भी 5 से 7 प्रतिशत तक कमी आने की संभावना जताई जा रही है. इससे खासकर छात्रों और कामकाजी पेशेवरों को फायदा होगा, क्योंकि कोविड महामारी के बाद से ऑनलाइन शिक्षा और वर्क-फ्रॉम-होम कल्चर में कंप्यूटर की मांग तेजी से बढ़ी है. वहीं कारों की कीमतों पर भी असर पड़ सकता है. अभी छोटे कारों पर 28 प्रतिशत तक का टैक्स और अतिरिक्त सेस लगता है, लेकिन यदि कर गणना की पद्धति बदली जाती है, तो मिड सेगमेंट कारें 50,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक सस्ती हो सकती हैं.
सरकारी सूत्रों के मुताबिक इन सुधारों का मकसद उपभोक्ता हितों की रक्षा करना और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना है. भारत सरकार ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी योजनाओं को गति देने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी हार्डवेयर सेक्टर को सबसे अहम मान रही है. वर्तमान में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाजार है, लेकिन यहाँ अब भी ज्यादातर कंपनियाँ विदेशी हैं. कीमतों में कमी और टैक्स संरचना की सरलता से घरेलू कंपनियों को भी प्रोत्साहन मिलेगा और उत्पादन की दिशा में निवेश बढ़ सकता है.
सीआईआई और फिक्की जैसे उद्योग संगठन लंबे समय से जीएसटी स्ट्रक्चर में बदलाव की मांग कर रहे थे. उनका कहना था कि बहुस्तरीय टैक्स दरें व्यापारियों और निर्माताओं के लिए जटिलता पैदा करती हैं. यदि टैक्स दरों को सुव्यवस्थित कर दिया जाता है तो भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा में और बेहतर स्थिति में आ सकता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों का निर्यात 2022-23 में 23 बिलियन डॉलर के करीब पहुँच चुका है और अगले पांच साल में इसे 100 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य है. इस दृष्टि से भी नए जीएसटी सुधार अहम होंगे.
हालांकि कुछ चुनौतियाँ भी सामने हैं. राज्य सरकारें जीएसटी काउंसिल में टैक्स रेट में कटौती को लेकर अपनी आशंकाएँ जता सकती हैं, क्योंकि इससे उनकी राजस्व प्राप्ति प्रभावित हो सकती है. लेकिन केंद्र सरकार का मानना है कि टैक्स में कटौती से मांग बढ़ेगी, जिससे बिक्री में इजाफा होगा और अंततः राजस्व हानि की भरपाई हो जाएगी. उदाहरण के लिए, यदि मोबाइल फोन की कीमत घटने से 20 प्रतिशत अधिक यूनिट्स बिकती हैं, तो कुल टैक्स संग्रह भी बढ़ सकता है.
विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यह कदम भारतीय उपभोक्ता बाजार में ‘मल्टीप्लायर इफेक्ट’ ला सकता है. यदि मोबाइल और कंप्यूटर जैसे उत्पाद सस्ते होंगे, तो उपभोक्ता अन्य वस्तुओं पर भी खर्च बढ़ाएंगे. इससे अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को अप्रत्यक्ष लाभ मिलेगा. वहीं, ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में डिजिटल डिवाइसों की पहुँच बढ़ेगी, जिससे डिजिटल गैप कम करने में मदद मिलेगी.
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से देखें तो कई देशों ने इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर टैक्स राहत देकर अपनी मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को मजबूत किया है. चीन और वियतनाम इसके प्रमुख उदाहरण हैं, जिन्होंने टैक्स इंसेंटिव्स और कम उत्पादन लागत के चलते वैश्विक स्मार्टफोन सप्लाई चेन पर पकड़ बना ली है. भारत अब इनसे मुकाबला करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है.
ग्राहक दृष्टिकोण से यह खबर बेहद उत्साहजनक है. मिडिल क्लास और युवाओं के लिए स्मार्टफोन और कंप्यूटर अब केवल गैजेट नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जरूरत हैं. बैंकिंग, शिक्षा, नौकरी और मनोरंजन सब कुछ इन पर निर्भर हो गया है. यदि ये डिवाइस सस्ते होते हैं तो डिजिटल इंडिया का सपना और तेजी से साकार होगा.
आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि सरकार इन सुधारों को अगले तीन से छह महीनों में लागू कर देती है, तो 2025 के अंत तक बाजार में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिलेंगे. मोबाइल कंपनियाँ पहले ही त्योहारी सीजन में दाम घटाने की रणनीति बनाना शुरू कर चुकी हैं. ऐसे में उपभोक्ताओं के लिए यह दोहरी राहत होगी—पहली टैक्स सुधारों से और दूसरी कंपनियों के डिस्काउंट ऑफर्स से.
सारांश यही है कि नेक्स्ट जनरेशन जीएसटी सुधार भारत के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकते हैं. यदि ये पूरी तरह से लागू होते हैं तो उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में गिरावट, मांग में तेजी, उद्योगों के लिए सुगमता और अर्थव्यवस्था के लिए नई ऊर्जा का मार्ग प्रशस्त होगा. खासतौर से मोबाइल फोन सेक्टर पर इसका असर सबसे ज्यादा होगा, क्योंकि यही भारतीय डिजिटल क्रांति की धुरी है. ऐसे में आम आदमी से लेकर उद्योग जगत तक, सभी की निगाहें इन सुधारों के क्रियान्वयन पर टिकी होंगी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

