संजय सक्सेना,लखनऊ. देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाते हुए तेजी से आगे बढ़ रहा हिन्दुस्तान कुछ देसी-विदेशी ताकतों की आंख की किरकिरी बन गया है. विदेशी ताकतों के साथ-साथ हमारे देश के कुछ नेताओं एवं सामाजिक संगठनों को भी आगे बढ़ता भारत रास नहीं आ रहा है. विश्व की राजनीतिक हवाएं भारत के खिलाफ तेजी से बह रही थीं. इसके पीछे इन देशों के कुछ आर्थिक या राजनीतिक कारण हो सकते हैं लेकिन अपने ही देश को खाकर अपने ही देश को नीचा दिखाने में लगे रहने वालों के रवैये पर आश्चर्य होता है. भारत के बढ़ते कदमों को रोकने के लिये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों द्वारा भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों की साजिश रची जा रही है. अजब तमाशा देखने को मिल रहा है कि जो अमेरिका अपने दुश्मन देश रूस से तमाम चीजें आयात करता है, वही भारत पर इस बात का दबाव डाल रहा है कि वह रूस की जगह अमेरिका से तेल खरीदे. ऐसा नहीं करने पर अमेरिका द्वारा भारत के ऊपर 50 फीसदी टैरिफ ठोक दी गई. क्योंकि अमेरिका के दबाव के बाद भी भारत ने रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को बनाए रखा था. जबकि हकीकत यह है कि अमेरिका अपने कुछ उत्पाद, जिसमें मांसाहारी मिल्क प्रोडक्ट्स खासकर शामिल हैं, उसे भारत में खपाना चाहता है, लेकिन मोदी सरकार ने इससे साफ इंकार कर दिया तो कथित विश्व गुरु बौखला गया.
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा, तो वे जी-7 में भारत को अलग-थलग कर देंगे, उस पर टैरिफ लगा देंगे. ऐसे समय में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को देश और प्रधानमंत्री के साथ खड़ा होना चाहिये था, लेकिन विपक्षी नेता राहुल गांधी ट्विटर पर पोस्ट कर रहे थे‘मोदी जी की विदेश नीति फेल हो गई है, जनता भुगत रही है.’ दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन होने लगे, जहां लोग ‘मोदी हटाओ, देश बचाओ’ के नारे लगा रहे थे. यह सब इंडिया गठबंधन के नेता करा रहे थे. वहीं इससे विचलित हुए बिना मोदी मीटिंग में हर मंत्री से सवाल पूछ रहे थे इन प्रतिबंधों का क्या विकल्प हैं? क्या प्रभाव पड़ेगा? उनका तरीका है सुनना, विश्लेषण करना और फिर निर्णय लेना. वे कहते हैं, राष्ट्रहित पहले. अंतरराष्ट्रीय दबाव से झुकना नहीं, बल्कि संवाद से समाधान निकालना होगा. उन्होंने निर्णय लिया कि भारत रूस के साथ व्यापार जारी रखेगा, लेकिन अमेरिका से बातचीत बढ़ाएगा.
इसी तरह से भारत को चीन की सीमा पर भी तनाव का सामना करना पड़ रहा था. उधर, पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की घटनाएं फिर से सिर उठा रही थीं. देश के अंदर कांग्रेस, टीएमसी, समाजवादी पार्टी सहित कई और दल भी नकारात्मक राजनीति पर उतर आए हैं. वे जनता को भड़काने में लगे हैं. कभी देश के प्रधानमंत्री को ‘चौकीदार चोर है’ कहकर अपमानित किया जाता है तो कभी आरोप लगाया जाता है कि मोदी सरकार तानाशाही चला रही है. इसी के साथ जनता से ठुकराये गये कुछ नेता और राजनीतिक दल बेरोजगारी, महंगाई और किसानों के समर्थन के नाम पर आंदोलनों और अराजकता फैलाने लगते हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी को हर कदम पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. मोदी इन विषम परिस्थितियों में कैसे काम करते हैं? कैसे लेते हैं महत्वपूर्ण निर्णय? यह यक्ष प्रश्न है, जहां दृढ़ता, रणनीति और राष्ट्रभक्ति की मिसाल मिलती है. इसको कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है.
एक बार, जब कोविड-19 महामारी के दौरान अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा था, डब्ल्यूएचओ और पश्चिमी देश भारत की वैक्सीन नीति पर सवाल उठा रहे थे. तब मोदी ने साहसिक निर्णय लिया था कि भारत स्वदेशी वैक्सीन पर फोकस करेगा. आज भी, 2025 में, जब अंतरराष्ट्रीय दबाव से देश की अर्थव्यवस्था डगमगा रही है, मोदी चट्टान के समान सामने खड़े नजर आ रहे हैं. मोदी जी का पहला सिद्धांत है डेटा आधारित निर्णय. वे कभी भावनाओं में बहकर फैसला नहीं लेते. विपक्ष की नकारात्मक राजनीति से जनता भड़क रही हो, तो भी वे आंकड़ों पर भरोसा करते हैं. किसान आंदोलन के दौरान, जब मोदी सरकार पर किसान-विरोधी होने का आरोप लगाया जा रहा था, तब मोदी ने कृषि विशेषज्ञों से रिपोर्ट मंगवाई और कानूनों को वापस लेने का फैसला किया न कि दबाव में, बल्कि लंबे विचार-विमर्श के बाद.
देश के अंदर की चुनौतियां और भी कठिन हैं. विपक्ष नकारात्मक राजनीति कर रहा है. जनता को भड़काने के लिए फेक न्यूज फैला रहा है. जैसे, जब जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाई गई, विपक्ष ने कहा यह देश-विरोधी है, मुसलमानों के खिलाफ. प्रदर्शन हुए, अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भारत को बदनाम किया. लेकिन मोदी ने बिना विचलित हुए ग्राउंड लेवल पर टीम भेजी, स्थानीय नेताओं से बात की, विकास योजनाएं शुरू कीं. निर्णय लेते समय वे हमेशा दीर्घकालिक हितों का ध्यान रखते हैं. उनका तरीका है विपक्ष की राजनीति को अनदेखा कर, जनता के हित पर फोकस. वे रोजाना सोशल मीडिया मॉनिटर करते हैं न कि ट्रोल होने से डरकर, बल्कि जनता की नब्ज जानने के लिए. एक बार, जब हैशटैग ‘फार्मर प्रोटेस्ट’ ट्रेंड कर रहा था, उन्होंने खुद ट्वीट किया कि किसानों से बात हो रही है, समाधान निकलेगा. यह उनकी रणनीति है जनता से सीधा जुड़ना, विपक्ष के भड़कावे को बेअसर करना.
मोदी अकेले नहीं सोचते. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से वे रोज बात करते हैं. जब चीन की सीमा पर एलएसी पर तनाव बढ़ा, अंतरराष्ट्रीय दबाव था कि भारत पीछे हटे. विपक्ष ने कहा मोदी जी ने देश बेच दिया. लेकिन मोदी ने सेना को मजबूत किया, डिप्लोमेसी बढ़ाई. गलवान घाटी की घटना के बाद, उन्होंने निर्णय लिया कि बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च दोगुना किया जाएगा. यह फैसला विषम परिस्थिति में लिया गया, जब अर्थव्यवस्था दबाव में थी. लेकिन मोदी कहते हैं सुरक्षा पहले, बाकी बाद में.
ऐसी परिस्थितियों में काम करने का उनका रहस्य है अनुशासन और विजन. 2025 में, जब क्लाइमेट चेंज पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा, पश्चिमी देश भारत से कोयला छोड़ने की मांग कर रहे थे. मोदी ने सीओपी सम्मेलन में घोषणा की कि भारत नेट जीरो का लक्ष्य रखेगा, लेकिन अपनी गति से. विपक्ष ने इसे झूठा वादा कहा, जनता को भड़काया. लेकिन मोदी जी ने घरेलू स्तर पर सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट्स तेज किए. निर्णय लेते समय वे हमेशा बहुमत की राय नहीं सुनते, बल्कि सही क्या है, वह चुनते हैं. जैसे, डिमोनेटाइजेशन के दौरान, जब विपक्ष ने काला धन का शोर मचाया, मोदी जी ने कहा यह अर्थव्यवस्था को साफ करेगा. आज, डिजिटल पेमेंट्स की सफलता उसका प्रमाण है.
मोदी जी की स्टोरी प्रेरणादायक है. गुजरात के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक का सफर आसान नहीं था. चाय बेचने वाले लड़के से विश्व नेता बनने में उन्होंने सीखा कि दबाव सहना पड़ता है. 2025 की इन विषम परिस्थितियों में, वे काम करते हैं सुबह योग से, दिन भर मीटिंग्स से, रात को प्लानिंग से. महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं डेटा, टीम और राष्ट्रहित पर आधारित. विपक्ष की नकारात्मकता को वे चुनौती मानते हैं, जनता को भड़काने की कोशिशों को संवाद से काटते हैं. अंतरराष्ट्रीय दबाव से झुकते नहीं, बल्कि भारत की आवाज बुलंद करते हैं. उनकी दृढ़ता से भारत आगे बढ़ता है. कुल मिलाकर मोदी में है विषम परिस्थितियों में कड़े निर्णय लेने की क्षमता.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

