मुंबई में चार दिन की बारिश ने बनाया नया इतिहास, विशेषज्ञों ने कहा– अब ‘एडाप्टेशन’ ही है रास्ता

मुंबई में चार दिन की बारिश ने बनाया नया इतिहास, विशेषज्ञों ने कहा– अब ‘एडाप्टेशन’ ही है रास्ता

प्रेषित समय :22:01:45 PM / Tue, Aug 19th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

मुंबई की भौगोलिक संरचना खुद ही उसकी सबसे बड़ी चुनौती है. समुद्र के किनारे बसा यह शहर ऊँचाई में बहुत अधिक विविधता नहीं रखता. कई इलाक़े समुद्र तल के बेहद करीब हैं, जिससे पानी का ठहरना आसान हो जाता है. ऊपर से अनियोजित शहरीकरण और तटीय इलाकों में कंक्रीट का जंगल इस समस्या को और गहरा देता है.

वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि भविष्य में मानसून और अधिक असमान और चरम रूप लेगा. कभी बहुत कम बारिश, तो कभी रिकॉर्ड तोड़ वर्षा—यही पैटर्न ग्लोबल वॉर्मिंग के असर के तौर पर सामने आ रहा है. मुंबई जैसे महानगर के लिए यह खतरे की घंटी है, क्योंकि यहां करोड़ों लोगों का जीवन और अरबों रुपये का इंफ्रास्ट्रक्चर दांव पर है.

नागरिक जीवन पर असर
भारी बारिश ने सामान्य जनजीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया. लोकल ट्रेनें घंटों लेट हो गईं, कई जगह सेवाएं बंद करनी पड़ीं. सड़कों पर पानी भरने से ट्रैफिक ठप रहा, एम्बुलेंस और जरूरी सेवाओं की गाड़ियाँ तक फंस गईं.

कई बस्तियों में घरों में पानी घुस गया, बिजली आपूर्ति बाधित हुई और लोग मजबूरन स्कूलों और सामुदायिक केंद्रों में शरण लेने को विवश हुए. छोटे दुकानदारों से लेकर बड़ी कंपनियों तक, हर किसी का कारोबार प्रभावित हुआ.

सबसे बड़ा खतरा स्वास्थ्य का है. गंदे पानी और सीवर के मिल जाने से संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. लेप्टोस्पायरोसिस, डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियाँ मानसून के बाद हर साल अपना कहर ढाती हैं.

प्रशासन की चुनौतियाँ
हर साल बारिश में मुंबई की यह हालत देखने को मिलती है, लेकिन इस बार विशेषज्ञ साफ कह रहे हैं कि महज़ परंपरागत उपाय अब पर्याप्त नहीं हैं.

IIT मुंबई के प्रोफेसर डॉ. सुबिमल घोष कहते हैं कि “अब शहर को सिर्फ तकनीक-आधारित अर्ली वार्निंग सिस्टम ही बचा सकते हैं. मुंबई फ्लड मॉनिटरिंग सिस्टम जैसे मॉडल लोगों तक समय पर जानकारी पहुँचा सकते हैं. लेकिन ज़रूरी है कि अलर्ट सिर्फ सरकारी फाइलों तक न रहें, बल्कि सीधे नागरिकों तक पहुँचें.”

पूर्व आईएमडी महानिदेशक के.जी. रमेश भी मानते हैं कि सिर्फ चेतावनी देना पर्याप्त नहीं होगा. वे कहते हैं—“हमें हाई-रिस्क ज़ोन की पहचान करनी होगी, निकासी का सिस्टम और इवैक्यूएशन प्लान बनाना होगा. यह तैयारी रातों-रात नहीं हो सकती.”

वैज्ञानिक प्लानिंग की जरूरत
Council on Energy, Environment and Water (CEEW) के डॉ. विश्वास चितले का कहना है कि “शहर की फ्लड-मैपिंग, ड्रेनेज अपग्रेडेशन और ग्रीन कवर बढ़ाना बेहद जरूरी है. हमें ‘IDF कर्व’ (इंटेंसिटी-ड्यूरेशन-फ्रिक्वेंसी मैपिंग) जैसे टूल का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि पता चल सके कौन-से इलाके में कितनी बारिश होगी और कितना पानी निकासी की ज़रूरत पड़ेगी.”

IPE Global के अबिनाश मोहंती बताते हैं कि बीएमसी के साथ मिलकर एक AI-ML आधारित मल्टी-हैज़र्ड रिस्क एटलस तैयार किया जा रहा है. यह मुंबई के लिए एक डिजिटल मानचित्र बनेगा, जो बाढ़ से लेकर अन्य आपदाओं तक की तैयारी में मदद करेगा.

शहर और जलवायु परिवर्तन का रिश्ता
मुंबई का संकट केवल प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव-निर्मित भी है. तेजी से बढ़ती आबादी, स्लम बस्तियों का फैलाव, समुद्र किनारे अवैध निर्माण और हरियाली का तेजी से घटता कवर बारिश के असर को कई गुना बढ़ा देता है.

मंगलुरु और कोच्चि जैसे शहर भी तटीय होने के बावजूद इतनी दिक्कतों से नहीं जूझते, क्योंकि वहां अपेक्षाकृत बेहतर ड्रेनेज और ग्रीन कवर बचा हुआ है. मुंबई के लिए यह सबक है कि जलवायु परिवर्तन को दोष देने के साथ-साथ स्थानीय शहरी प्रबंधन में भी सुधार करना होगा.

भविष्य के लिए जरूरी कदम
अर्ली वार्निंग सिस्टम को मज़बूत करना – लोगों तक समय रहते संदेश पहुँचना चाहिए, जैसे मौसम अलर्ट, बाढ़ की चेतावनी और सुरक्षित शेल्टर की जानकारी.

ड्रेनेज सिस्टम का पुनर्निर्माण – पुराने और जाम नालों को अपग्रेड करना होगा, ताकि पानी तेजी से बह सके.

ग्रीन कवर और वेटलैंड्स का संरक्षण – प्राकृतिक स्पंज की तरह काम करने वाले वेटलैंड्स और हरियाली को बचाना बेहद जरूरी है.

हाई-रिस्क जोन की पहचान – जिन इलाकों में बार-बार पानी भरता है, उन्हें चिन्हित कर वहां रहने वाले लोगों के लिए स्थायी समाधान निकालना होगा.

एवैक्यूएशन और रेस्क्यू प्लान – केवल कागज पर नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर प्रशिक्षित टीम और संसाधनों के साथ यह तैयार रहना चाहिए.

तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल – AI, मशीन लर्निंग और सैटेलाइट डेटा से भविष्यवाणी और रीयल-टाइम मॉनिटरिंग को बढ़ावा देना होगा.

मुंबई के लिए सबक
बारिश का यह दौर साफ कर रहा है कि शहर को सिर्फ बरसात झेलने से ज्यादा अब बरसात से लड़ने की तैयारी करनी होगी. चेतावनी सिस्टम, वैज्ञानिक प्लानिंग और एडाप्टेशन ही वो रास्ते हैं जिनसे लाखों लोगों की जान, रोज़गार और शहर का बुनियादी ढांचा सुरक्षित रह सकता है.

मुंबई की कहानी केवल मुंबई की नहीं है. कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहर भी इसी राह पर खड़े हैं. जलवायु परिवर्तन केवल एक वैज्ञानिक शब्द नहीं, बल्कि हमारे जीवन की सबसे ठोस सच्चाई बन चुका है.

महानगरों को अब यह स्वीकार करना होगा कि भारी बारिश और बाढ़ केवल एक आपदा नहीं, बल्कि नया सामान्य है. इस सामान्य के साथ जीने के लिए हमें तकनीक, प्लानिंग और प्रकृति के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना होगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-