मासिक शिवरात्रि कर्ज-मुक्ति और आर्थिक सुख-शांति का दिव्य अवसर

मासिक शिवरात्रि कर्ज-मुक्ति और आर्थिक सुख-शांति का दिव्य अवसर

प्रेषित समय :19:42:26 PM / Wed, Aug 20th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

भारतीय जीवन परंपरा में धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन-प्रबंधन का विज्ञान भी है. इसमें ऋण, दुख और संकट से मुक्ति पाने के लिए भी अनेक उपाय बताए गए हैं. इन्हीं उपायों में से एक है मासिक शिवरात्रि व्रत, जो हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आता है.
मान्यता है कि इस दिन किए गए साधना, उपवास, दीप-दान और मंत्र-जप से व्यक्ति अपने जीवन से न केवल ऋण-बाधाएं दूर कर सकता है, बल्कि आर्थिक स्थिरता, मानसिक शांति और पारिवारिक सुख भी प्राप्त कर सकता है.

आज की आधुनिक दौड़-भाग भरी ज़िंदगी में, जहां क्रेडिट कार्ड, बैंक लोन, होम लोन और किस्तों की जंजीरों में लोग बंधे हुए हैं, वहां यह परंपरा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक उपचार और आध्यात्मिक संबल भी है.

मासिक शिवरात्रि का महत्व
शिवरात्रि का सामान्य अर्थ है—वह रात्रि जो भगवान शिव को समर्पित है.
हर महीने की कृष्ण चतुर्दशी को यह व्रत आता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार—

इस दिन भगवान शिव का रुद्रस्वरूप अधिक सक्रिय होता है.

उपासक द्वारा की गई साधना का फल कई गुना बढ़ जाता है.

विशेष रूप से यह दिन ऋण-मुक्ति और संकट-निवारण के लिए श्रेष्ठ है.

शास्त्रों में कहा गया है:
"शिवरात्र्यां तु यो भक्त्या जपते मन्त्रं समाहितः.
ऋणं दुःखं च रोगं च नाशयेत् नात्र संशयः॥"

अर्थात, शिवरात्रि को जो भक्त एकाग्र होकर मंत्र-जप करता है, उसका ऋण, दुख और रोग नष्ट हो जाते हैं.

कर्ज-मुक्ति का आध्यात्मिक अर्थ
भारत की अर्थव्यवस्था में ऋण लेना एक सामान्य प्रचलन है. परंतु जब ऋण बोझ बन जाता है, तो वह मानसिक तनाव, पारिवारिक कलह और आर्थिक अस्थिरता का कारण बनता है.
धार्मिक दृष्टि से ऋण केवल पैसों तक सीमित नहीं है—

यह कर्मों का ऋण भी होता है.

पूर्वजों का, समाज का और प्रकृति का ऋण भी व्यक्ति पर होता है.

इसलिए ऋण-मुक्ति का अनुष्ठान केवल आर्थिक स्वतंत्रता ही नहीं देता, बल्कि जीवन के प्रति एक संतुलित दृष्टि भी देता है.

अनुष्ठान की क्रमबद्ध विधि
(1) प्रातःकाल की तैयारी
सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.

घर या मंदिर में शिवलिंग के समीप शुद्ध आसन बिछाकर संकल्प लें.

संकल्प में कहें—“मैं अमुक नाम, अमुक गोत्र, मासिक शिवरात्रि व्रत का संकल्प लेता हूँ, ऋण-मुक्ति और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए.”

(2) दिनभर का व्रत
व्रत ideally निर्जल होता है, परंतु स्वास्थ्य के अनुसार फलाहार किया जा सकता है.

दिनभर “ॐ नमः शिवाय” का जप करें.

(3) संध्या का दीप-दान
सूर्यास्त के समय शिवलिंग के समक्ष 17 दीपक जलाएं.

यह संख्या “ऋणमुक्ति दीप-दान” की विशेष परंपरा है.

दीपक तिल के तेल अथवा घी से जलाएं.

(4) विशेष मंत्र-जप
संध्या या मध्यरात्रि में शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र अर्पित करें और निम्न मंत्र का जप करें:

“ॐ ऋणमुक्तेश्वराय नमः”
(कम से कम 108 बार जप करें)

इसके साथ ही मूल मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का निरंतर जप करें.

(5) रात्रि जागरण और कथा श्रवण
रात को जितना संभव हो, जागरण करें.

शिव पुराण या शिव कथा का श्रवण करें.

परिवार के साथ मिलकर “महामृत्युंजय मंत्र” का जप करें.

मासिक शिवरात्रि और मनोवैज्ञानिक संतुलन
आधुनिक मनोविज्ञान भी मानता है कि ध्यान और मंत्र-जप मनुष्य के भीतर चिंता और भय को दूर करते हैं.

दीप-दान व्यक्ति को प्रकाश और आशा का अनुभव कराता है.

उपवास से अनुशासन और आत्म-नियंत्रण विकसित होता है.

मंत्र-जप से मस्तिष्क में सकारात्मक कंपन उत्पन्न होते हैं.

इस प्रकार, यह परंपरा केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाभकारी है.

प्रेरक कथा – “ऋणग्रस्त व्यापारी और शिवरात्रि व्रत”
कहा जाता है कि काशी नगरी में एक व्यापारी भारी ऋण से दब गया. साहूकारों ने घर-दुकान जब्त करने की चेतावनी दे दी. व्यापारी निराश होकर आत्महत्या का विचार करने लगा. तभी किसी साधु ने उसे मासिक शिवरात्रि का व्रत करने की सलाह दी.

व्यापारी ने श्रद्धा से व्रत किया, 17 दीपक जलाए और पूरी रात “ॐ ऋणमुक्तेश्वराय नमः” का जप किया. कुछ ही दिनों में उसका कारोबार चल निकला और उसने धीरे-धीरे अपना पूरा ऋण चुका दिया.

यह कथा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि यह संदेश देती है कि श्रद्धा, संयम और सकारात्मकता से संकटों का समाधान संभव है.

आर्थिक जीवन में परंपरा की प्रासंगिकता
आज जब लोग EMI और क्रेडिट कार्ड की किश्तों में उलझे हैं, तब मासिक शिवरात्रि की साधना उन्हें मानसिक शांति और आत्मविश्वास देती है.

यह व्यक्ति को अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाती है.

यह बताती है कि ऋण से मुक्ति केवल पैसे से नहीं, बल्कि मन की शक्ति और आत्म-विश्वास से भी संभव है.

मासिक शिवरात्रि केवल एक व्रत नहीं है, यह जीवन-संयम और आध्यात्मिक जागरण का पर्व है.
जो व्यक्ति श्रद्धा से इस दिन उपवास करता है, दीप-दान करता है और मंत्र-जप करता है, उसके जीवन से धीरे-धीरे ऋण और दुख दूर हो जाते हैं.
आज के तनावग्रस्त और ऋणग्रस्त समाज में यह परंपरा लोगों को नई दिशा और आत्मबल देती है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-