भारत में काम और यात्रा के मिश्रण की संस्कृति यानी वर्केशन तेजी से लोकप्रिय हो रही है और सोशल मीडिया पर #WorkationCulture लगातार ट्रेंड कर रहा है. कोविड-19 महामारी के बाद से जिस रिमोट वर्क ट्रेंड ने जन्म लिया था, वह अब भारतीय युवाओं और पेशेवरों के जीवनशैली का अहम हिस्सा बन चुका है. खासकर मिलेनियल्स और जेन-ज़ी पीढ़ी, जिनकी कार्यशैली परंपरागत ऑफिस डेस्क से बंधी नहीं है, वे इस ट्रेंड को तेजी से अपनाते दिख रहे हैं. डेटा के आधार पर यह साफ हो रहा है कि मनाली, गोवा और केरला जैसे लोकेशन नए डिजिटल नोमैड्स की पहली पसंद बन चुके हैं और आने वाले वर्षों में यह संख्या और भी बढ़ेगी.
अगर ट्रेंड को समझने की कोशिश करें तो भारत में इंटरनेट की बढ़ती पहुंच, सस्ती डेटा योजनाएँ, और उच्च स्पीड वाई-फाई के साथ-साथ को-वर्किंग स्पेस का तेजी से फैलना इस बदलाव की प्रमुख वजहें हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक 2023 से 2025 के बीच भारत में वर्केशन डेस्टिनेशंस का कारोबार 65% तक बढ़ा है. सिर्फ हिमाचल प्रदेश के मनाली और कसोल इलाके में 2024 में 1.2 लाख से अधिक रिमोट वर्कर्स ने औसतन 15 से 20 दिन का वर्केशन बिताया. वहीं गोवा, जो पहले से ही बैकपैकर्स और विदेशी पर्यटकों की पसंदीदा जगह रहा है, अब भारतीय डिजिटल नोमैड्स का भी सबसे बड़ा ठिकाना बन चुका है. गोवा पर्यटन विभाग के अनुमान के अनुसार, 2025 में जनवरी से जुलाई के बीच करीब 2.3 लाख युवाओं ने वर्केशन बुकिंग की, जिनमें 70% भारतीय और 30% विदेशी थे.
केरला का मामला और दिलचस्प है. राज्य सरकार ने 2024 में Work Near Home और Work from Kerala जैसी पॉलिसी शुरू की थी, जिसमें हाउसबोट्स, बीच रिसॉर्ट्स और हिल स्टेशन के बीच हाई-स्पीड इंटरनेट की सुविधा के साथ लंबे समय तक ठहरने की पैकेज डील पेश की गई. इसका सीधा असर यह हुआ कि 2025 की पहली छमाही में केरला ने 1.5 लाख से ज्यादा वर्केशन टूरिस्ट्स को आकर्षित किया. खासकर अल्लेप्पी, मुन्नार और कोवलम जैसे डेस्टिनेशंस अब डिजिटल नोमैड्स की हॉट लिस्ट में शामिल हो चुके हैं.
वर्केशन संस्कृति का यह उभार सिर्फ व्यक्तिगत संतुष्टि या यात्रा की चाहत से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह भारतीय पर्यटन उद्योग को भी नई दिशा दे रहा है. फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) की रिपोर्ट बताती है कि 2025 तक देश में कुल होटल बुकिंग्स का 22% हिस्सा सिर्फ वर्केशन से जुड़ा है. 2020 में यह आंकड़ा मुश्किल से 5% था. इसका सीधा मतलब है कि आने वाले वर्षों में टूरिज़्म और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में निवेश बढ़ेगा और वर्केशन-फ्रेंडली इन्फ्रास्ट्रक्चर पर फोकस किया जाएगा.
दूसरी ओर, कॉर्पोरेट कंपनियाँ भी इस ट्रेंड को अपनाती दिख रही हैं. कई आईटी और स्टार्टअप कंपनियों ने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम एनीवेयर का विकल्प दिया है. नासकॉम की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 48% भारतीय स्टार्टअप्स अब अपने कर्मचारियों को वर्केशन की अनुमति देते हैं. कुछ कंपनियाँ तो कर्मचारियों के लिए पैकेज्ड वर्केशन ट्रिप्स भी आयोजित कर रही हैं ताकि टीम बांडिंग और प्रोडक्टिविटी में सुधार हो.
सोशल मीडिया पर देखें तो #WorkationCulture हैशटैग के तहत अब तक 12 लाख से ज्यादा पोस्ट्स किए जा चुके हैं. इंस्टाग्राम पर मनाली की पहाड़ियों से लैपटॉप पर काम करते हुए युवाओं की तस्वीरें हों या गोवा के बीच कैफ़े से ज़ूम कॉल लेते हुए प्रोफेशनल्स के वीडियो, यह ट्रेंड तेजी से ग्लैमराइज़ हो रहा है. टेलीग्राम और फेसबुक पर भी वर्केशन ग्रुप्स बनाए गए हैं, जहाँ लोग लोकेशन, इंटरनेट स्पीड, को-वर्किंग स्पेस रिव्यू और रहने की लागत की जानकारी साझा कर रहे हैं.
हालांकि, इस ट्रेंड के कुछ सामाजिक और पर्यावरणीय पहलू भी हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि पर्यटन स्थलों पर अत्यधिक दबाव से स्थानीय संसाधनों पर बोझ बढ़ सकता है. मनाली और गोवा जैसे इलाकों में पहले ही ट्रैफिक जाम, कचरा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण बड़ी चुनौतियाँ बन चुके हैं. लेकिन इसके साथ-साथ यह भी सच है कि वर्केशन कल्चर ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को नई जान दी है. छोटे गेस्ट हाउस, कैफ़े, ट्रैवल एजेंसियाँ और स्थानीय सर्विस प्रदाता सीधा लाभ कमा रहे हैं.
आंकड़े बताते हैं कि एक डिजिटल नोमैड औसतन प्रतिदिन 2500 से 4000 रुपये तक खर्च करता है, जबकि एक पारंपरिक पर्यटक 1500 से 2000 रुपये प्रतिदिन ही खर्च करता है. इसका अर्थ यह है कि वर्केशन कल्चर से स्थानीय स्तर पर अधिक आर्थिक लाभ हो रहा है. केरला सरकार की रिपोर्ट बताती है कि 2024 में वर्केशन से राज्य की टूरिज्म आय में 28% की बढ़ोतरी हुई.
भविष्य की तस्वीर पर नजर डालें तो आने वाले पाँच वर्षों में भारत में वर्केशन हब्स की संख्या और बढ़ने वाली है. उत्तराखंड, कर्नाटक और पूर्वोत्तर भारत भी इस रेस में शामिल हो चुके हैं. दार्जिलिंग, शिलांग और कूर्ग जैसे स्थान अब तेजी से डिजिटल नोमैड्स को आकर्षित कर रहे हैं. वहीं टेक कंपनियाँ और सरकारी नीतियाँ भी इस ओर ध्यान दे रही हैं. यदि भारत इस ट्रेंड को सही दिशा में ले जाए, तो न केवल पर्यटन उद्योग को बल्कि ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों को भी नई आर्थिक संभावनाएँ मिल सकती हैं.
संक्षेप में कहा जाए तो भारत में #WorkationCulture केवल एक सोशल मीडिया ट्रेंड नहीं बल्कि नई जीवनशैली का प्रतीक बन चुका है. मनाली, गोवा और केरला इसके केंद्र में हैं, और डेटा यह साबित कर रहा है कि यह बदलाव स्थायी है. काम और यात्रा का यह मेल भारतीय युवाओं को न सिर्फ मानसिक ताजगी दे रहा है बल्कि देश के पर्यटन उद्योग को भी भविष्य की नई उड़ान दे रहा है. यह ट्रेंड धीरे-धीरे एक ऐसे भारत का निर्माण कर रहा है जहाँ ऑफिस सिर्फ इमारतों तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि पहाड़ों, समुद्रों और जंगलों के बीच भी बसे होंगे.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

