मुंबई हर साल मानसून की मार झेलती है. पानी से भरी सड़कों पर जाम, रेल सेवाओं का ठप होना, झुग्गियों में डूबे घर और हर जगह अफरातफरी—यह सब इस शहर की बरसाती पहचान बन चुका है. लेकिन इस बार बारिश के मौसम में एक ऐसा वीडियो सामने आया जिसने न केवल शहर की जुझारू मानसिकता को उजागर किया बल्कि सोशल मीडिया पर बहस का बड़ा मुद्दा भी बना. वीडियो में देखा गया कि दो युवक घुटनों तक भरे पानी में आराम से प्लास्टिक की कुर्सियाँ डालकर बैठे हैं और ड्रिंक का मज़ा ले रहे हैं. इस वीडियो का कैप्शन था—“टेंशन नहीं लेनेका, आय एम मुंबई.” कुछ ही घंटों में यह वीडियो इंटरनेट पर छा गया और लाखों बार शेयर किया गया.
यह दृश्य अपने आप में विरोधाभासी था. एक ओर जब पूरा शहर जलभराव और अव्यवस्था से परेशान था, तब दो लोग बारिश की इस भयावहता को हल्के-फुल्के अंदाज़ में एंजॉय करते दिखाई दिए. सोशल मीडिया यूजर्स ने इसे मुंबई की उस जिंदादिली से जोड़ा जिसके बारे में अक्सर कहा जाता है कि “मुंबई कभी रुकती नहीं.” चाहे बम धमाके हों, ट्रेन हादसे हों या फिर बारिश का कहर, यह शहर हर विपरीत परिस्थिति में अपने तरीके से जीना जानता है. यही कारण है कि इस वीडियो को कई लोगों ने शहर की अटूट हिम्मत और हास्यबोध का प्रतीक मानकर सराहा.
लेकिन हर कहानी का दूसरा पहलू भी होता है. इस वीडियो को लेकर आलोचना भी उतनी ही तेज हुई. कई लोगों ने कहा कि यह संवेदनहीनता का उदाहरण है. जब हजारों लोग अपने घरों में पानी भर जाने से जूझ रहे हैं, बच्चे बीमार हो रहे हैं, बुजुर्गों की दवाइयाँ समय पर नहीं पहुँच पा रही हैं, तब इस तरह का “मज़ाक” करना पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है. ट्विटर पर कई यूजर्स ने लिखा—“ये है हमारे समाज की सच्चाई. किसी के लिए बारिश मनोरंजन है, तो किसी के लिए तबाही.”
पत्रकारीय दृष्टि से देखें तो यह वीडियो केवल हंसी-मजाक का मामला नहीं है, बल्कि यह शहर की सामाजिक-आर्थिक असमानताओं की ओर भी इशारा करता है. मुंबई वह शहर है जहाँ एक ओर करोड़ों की गाड़ियों और ऊँचे-ऊँचे टावरों में रहने वाले लोग हैं, तो दूसरी ओर वही बारिश हजारों झुग्गियों को निगल जाती है. इस परिप्रेक्ष्य में यह दृश्य और ज्यादा चुभता है क्योंकि यह दर्शाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ लोगों के पास आराम से बैठकर ड्रिंक करने का वक्त है, जबकि उसी समय दूसरे लोग अपनी जिंदगी बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया का यह दौर हमारी मानसिकता को भी बदल रहा है. पहले लोग आपदा के समय एक-दूसरे की मदद में लग जाते थे, लेकिन अब कई बार लोग ऐसे मौकों को “कंटेंट” बनाने का जरिया मानने लगे हैं. वायरल वीडियो, इंस्टाग्राम रील्स और टिकटॉक जैसी आदतें समाज में एक नई प्रवृत्ति पैदा कर रही हैं, जहाँ लोग कठिन परिस्थितियों को भी हास्य या मनोरंजन का हिस्सा बना देते हैं. इस पर समाजशास्त्रियों का मत है कि यह प्रवृत्ति एक तरफ लोगों को सकारात्मक बने रहने का मौका देती है, वहीं दूसरी तरफ यह वास्तविक संकट को हल्के में लेने का खतरा भी पैदा करती है.
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ भी इस वीडियो के इर्द-गिर्द घूमीं. विपक्षी नेताओं ने इसे प्रशासनिक असफलता से जोड़ा. उनका कहना था कि अगर लोगों को घुटनों तक भरे पानी में इस तरह मजाक करने की नौबत आ रही है तो यह इस बात का प्रमाण है कि शहर में जलनिकासी व्यवस्था पूरी तरह फेल हो चुकी है. वहीं सत्ताधारी नेताओं ने इसे “मुंबई की जिंदादिली” बताते हुए कहा कि यह शहर हर संकट को मुस्कुराते हुए झेलना जानता है. लेकिन आम जनता इस बात से सहमत नहीं दिखी. कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “जिंदादिली तब है जब लोग हालात का मुकाबला करें, न कि जब प्रशासन की नाकामी को हंसी-मजाक में टाल दिया जाए.”
मुंबई के मानसून से जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएँ भी इस बहस का हिस्सा बनीं. लोग 2005 की वह बाढ़ याद करने लगे जब शहर पूरी तरह ठप हो गया था और करीब 400 लोगों की मौत हुई थी. उस समय भी कई तस्वीरें वायरल हुई थीं जिनमें लोग पानी में फंसे हुए भी हंसते-बोलते दिखाई देते थे. लेकिन तब सोशल मीडिया इतना व्यापक नहीं था. आज के समय में किसी भी घटना को मिनटों में वायरल कर दिया जाता है और वह राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय बन जाती है. यही वजह है कि इस वीडियो को लेकर देशभर में प्रतिक्रियाएँ आईं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी चेतावनी दी है कि इस तरह पानी में बैठना खतरनाक हो सकता है. बारिश के पानी में अक्सर गंदगी, सीवर का पानी और संक्रामक रोगों के कीटाणु होते हैं. डेंगू, मलेरिया और लेप्टोस्पायरोसिस जैसी बीमारियों का खतरा ऐसे समय में सबसे ज्यादा होता है. दो युवकों का यह मजाक भले ही कुछ सेकंड का था, लेकिन इसका संदेश लाखों लोगों तक गया. अगर लोग इसे “मस्ती का नया ट्रेंड” मानकर अपनाने लगे तो इससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी बढ़ सकते हैं.
मीडिया की भूमिका भी सवालों के घेरे में आई. टीवी चैनलों और ऑनलाइन पोर्टलों ने इस वीडियो को बार-बार दिखाया, हंसी-मजाक वाले पैनल डिस्कशन किए और इसे “मुंबई स्पिरिट” का नाम दिया. लेकिन आलोचकों का कहना है कि मीडिया को चाहिए था कि वह इस वीडियो को केवल एक रोचक किस्से की तरह पेश करने के बजाय शहर की गंभीर समस्याओं पर बहस कराता. आखिर वही बारिश थी जिसने धारावी और कुर्ला के सैकड़ों परिवारों को बेघर कर दिया, छोटे बच्चों को स्कूल जाने से रोक दिया और मरीजों को अस्पताल तक पहुँचने से वंचित कर दिया. लेकिन इन मुद्दों को वह तवज्जो नहीं मिली जो दो युवकों की मस्ती को मिल गई.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी इस वीडियो को उठाया. कई विदेशी वेबसाइट्स ने लिखा कि “मुंबई में लोग बाढ़ को भी जश्न की तरह लेते हैं.” इससे दुनिया भर में यह छवि बनी कि भारत की जनता कितनी जुझारू है. लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह छवि अधूरी है. असल सच्चाई यह है कि यह जश्न कुछ गिने-चुने लोगों का है, जबकि बहुसंख्यक आबादी के लिए बारिश मौत और बदहाली का पर्याय है.
समाजशास्त्रियों का मानना है कि यह वीडियो मुंबई की “कॉन्ट्रास्ट कल्चर” को सामने लाता है. यहाँ अमीरी और गरीबी, हंसी और आंसू, सपने और हकीकत सब एक ही समय पर मौजूद रहते हैं. यही वजह है कि शहर को “मैक्सिमम सिटी” कहा जाता है. लेकिन इस बार यह कॉन्ट्रास्ट सोशल मीडिया के जरिए और तीखा हो गया. एक तरफ लोग अपने घरों में घुटनों तक पानी में परेशान थे, दूसरी तरफ वही पानी किसी के लिए पार्टी का मौका बन गया.
अंततः यह कहा जा सकता है कि “टेंशन नहीं लेनेका, आय एम मुंबई” वाला वीडियो केवल एक वायरल मजाक नहीं है. यह एक आईना है जो दिखाता है कि हमारा समाज विपरीत परिस्थितियों में भी हंसना जानता है, लेकिन साथ ही यह भी उजागर करता है कि कई बार हम वास्तविक समस्याओं को नज़रअंदाज़ कर देते हैं. यह वीडियो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम सचमुच संकट से जूझ रहे हैं या उसे सोशल मीडिया के मजाक में बदलकर अपनी जिम्मेदारियों से बच रहे हैं.
मुंबई का मानसून हर साल कई कहानियाँ लेकर आता है. कुछ कहानियाँ साहस और मदद की होती हैं, कुछ लापरवाही और अव्यवस्था की, और कुछ हंसी-मजाक की. इस साल का यह वायरल वीडियो शायद आने वाले समय में उस कहानी का हिस्सा बन जाएगा, जहाँ लोग कहेंगे कि—जब पूरा शहर डूब रहा था, तब भी कुछ लोग मुस्कुराकर कह रहे थे, “टेंशन नहीं लेनेका, आय एम मुंबई.” लेकिन इतिहास यह भी पूछेगा कि क्या इस हंसी के पीछे छुपी पीड़ा और प्रशासनिक नाकामी को हमने गंभीरता से लिया या नहीं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

