डिजिटल इंडिया में महिलाएं बनीं नई ताकत, स्टार्टअप और ई-कॉमर्स में बढ़ रहा महिला उद्यमियों का दबदबा

डिजिटल इंडिया में महिलाएं बनीं नई ताकत, स्टार्टअप और ई-कॉमर्स में बढ़ रहा महिला उद्यमियों का दबदबा

प्रेषित समय :22:15:53 PM / Fri, Aug 22nd, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

भारत आज डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब 2015 में डिजिटल इंडिया मिशन की शुरुआत हुई थी, तब इसका मूल उद्देश्य ग्रामीण और शहरी इलाकों में डिजिटल पहुँच बढ़ाना, सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराना और युवाओं को डिजिटल सशक्तिकरण देना था. एक दशक बाद यानी 2025 में इस कार्यक्रम ने भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल दी है. खासतौर पर महिलाओं की भूमिका इस बदलाव में सबसे बड़ी और प्रेरणादायक कहानी बनकर उभरी है.डिजिटल इंडिया ने महिलाओं को सशक्तिकरण का नया आयाम दिया है. आज महिलाएं घर-परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ टेक्नोलॉजी की मदद से कारोबार भी चला रही हैं. स्टार्टअप और ई-कॉमर्स के क्षेत्र में उनका दबदबा यह संदेश देता है कि 21वीं सदी का भारत महिलाओं के नेतृत्व में नई ऊंचाइयों पर पहुंचेगा.

यदि सरकार, समाज और उद्योग जगत मिलकर महिलाओं की इन बाधाओं को दूर करें, तो आने वाले वर्षों में भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम दुनिया में सबसे बड़ा और सबसे मजबूत बन सकता है. और उस इकोसिस्टम की असली ताकत होंगी – भारत की महिलाएं.

आज स्थिति यह है कि भारत में हर तीन में से एक नया स्टार्टअप महिला उद्यमी द्वारा संचालित है. ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर लगभग 45% छोटे और मध्यम विक्रेता महिला-नेतृत्व वाले हैं. यह आँकड़े न सिर्फ महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी साबित करते हैं कि डिजिटल इंडिया की असली ताकत अब महिलाएं बन रही हैं.

इंटरनेट ने बदली तस्वीर
कुछ साल पहले तक महिलाओं की उद्यमिता मुख्यतः ब्यूटी पार्लर, बुटीक, होम-मे़ड फूड बिजनेस या पारंपरिक छोटे धंधों तक सीमित थी. लेकिन सस्ते स्मार्टफोन और सस्ती इंटरनेट कनेक्टिविटी (जैसे जियो क्रांति) ने तस्वीर बदल दी. अब गांवों की महिलाएं भी अमेज़न, फ्लिपकार्ट, मीशो, शॉपिफाई जैसे प्लेटफॉर्म्स पर अपने प्रोडक्ट्स बेच रही हैं.

कर्नाटक की सीमा, जो पहले एक गृहिणी थीं, आज ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के ज़रिए हस्तनिर्मित खिलौनों को दुनिया भर में बेच रही हैं. झारखंड की मीना देवी ने स्थानीय हस्तकला को डिजिटल मार्केटिंग से जोड़कर अपनी सालाना आय को तीन गुना कर लिया है. इसी तरह राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं ऊन से बने शॉल और कालीन को अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुँचा रही हैं.

स्टार्टअप इकोसिस्टम में बढ़ती भागीदारी
भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है. सरकारी आँकड़े बताते हैं कि 2025 तक देश में 1.25 लाख से अधिक मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स हैं, जिनमें से लगभग 36% में महिला सह-संस्थापक या सीईओ की भूमिका में हैं. ये महिलाएं सिर्फ छोटे व्यापार ही नहीं कर रहीं, बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, फिनटेक, हेल्थकेयर, एड-टेक और एग्री-टेक जैसे क्षेत्रों में भी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं.

दिल्ली की दिव्या गोयल ने एक एड-टेक स्टार्टअप शुरू किया जो ग्रामीण बच्चों को AI आधारित लर्निंग ऐप के जरिए शिक्षा उपलब्ध करा रहा है. बेंगलुरु की नेहा अरोड़ा ने हेल्थ-टेक कंपनी स्थापित की है जो महिलाओं को ऑनलाइन प्रेग्नेंसी और पीरियड ट्रैकिंग की सुविधा देती है. इन स्टार्टअप्स में न केवल रोजगार पैदा हो रहा है, बल्कि लाखों लोगों का जीवन भी आसान हो रहा है.

ई-कॉमर्स और सोशल कॉमर्स में महिलाएं
ई-कॉमर्स सेक्टर में तो महिलाओं का दबदबा और भी तेजी से बढ़ा है. हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारत में ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म पर सक्रिय छोटे विक्रेताओं में लगभग आधी महिलाएं हैं. सोशल कॉमर्स यानी इंस्टाग्राम, फेसबुक, व्हाट्सऐप और मीशो जैसे प्लेटफॉर्म्स पर तो महिला उद्यमियों की हिस्सेदारी 60% से भी ज्यादा है.

उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों से लेकर मणिपुर और नागालैंड तक, महिलाएं स्थानीय हस्तकला, आभूषण, ऑर्गेनिक फूड और कपड़ों को ऑनलाइन बेचकर न सिर्फ अपनी आजीविका चला रही हैं बल्कि आत्मनिर्भरता का नया उदाहरण पेश कर रही हैं.

सरकारी योजनाओं और नीतियों का योगदान
इस सफलता के पीछे सरकार की कई योजनाएं भी हैं. स्टैंड-अप इंडिया योजना के तहत महिलाओं को आसान लोन उपलब्ध कराए गए. मुद्रा योजना ने छोटे व्यवसायों को बगैर जमानत के ऋण दिए. डिजिटल इंडिया मिशन के तहत ग्रामीण महिलाओं को डिजिटल साक्षरता अभियान में प्रशिक्षित किया गया.

इसके अलावा, कई राज्य सरकारों ने महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की हैं. जैसे तमिलनाडु सरकार का "महालिर उद्यम निधि", महाराष्ट्र का "उद्योजिका योजना" और उत्तराखंड का "महिला उद्यमी सशक्तिकरण कार्यक्रम". इन पहलों का नतीजा है कि आज महिलाएं बैंकों से सीधे ऑनलाइन लेनदेन कर रही हैं और डिजिटल भुगतान को अपनाकर अपने कारोबार को आगे बढ़ा रही हैं.

चुनौतियां भी कम नहीं
हालाँकि यह सच है कि महिलाएं डिजिटल इंडिया की नई ताकत बन चुकी हैं, लेकिन अभी चुनौतियां भी कम नहीं हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी कई महिलाओं तक इंटरनेट की गुणवत्तापूर्ण पहुँच नहीं है. साइबर सुरक्षा, डिजिटल धोखाधड़ी और ऑनलाइन हैकिंग जैसी समस्याएं महिला उद्यमियों को परेशान करती हैं. इसके अलावा समाज में पितृसत्तात्मक सोच और पारिवारिक जिम्मेदारियां भी महिलाओं की राह में बाधक बनती हैं.

कई महिला उद्यमियों का कहना है कि उन्हें निवेशकों से फंडिंग पाने में पुरुषों की तुलना में ज्यादा कठिनाई होती है. रिसर्च बताती है कि महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स को कुल वेंचर कैपिटल फंडिंग का केवल 10% हिस्सा ही मिल पाता है.

सफलता की मिसाल
इसके बावजूद महिला उद्यमियों ने अपने दम पर पहचान बनाई है. बायजूज़ में दिव्या गोखले, शेरोस की साईनदीपा जैन, नायका की फाल्गुनी नायर और लेंसकार्ट में विनीता सिंह जैसी महिला उद्यमियों ने साबित किया कि महिलाएं सिर्फ उपभोक्ता नहीं, बल्कि डिजिटल बिजनेस की निर्माता भी बन सकती हैं.

फाल्गुनी नायर ने नायका को एक छोटे स्टार्टअप से 10 अरब डॉलर की कंपनी बना दिया, और यह उदाहरण देशभर की महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है. इसी तरह विनीता सिंह की "शुगर कॉस्मेटिक्स" आज एक ग्लोबल ब्रांड बन चुकी है.

भविष्य की दिशा
भारत 2026 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है. इस सफर में महिलाओं की भागीदारी निर्णायक साबित होगी. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि महिला उद्यमियों को और अधिक डिजिटल अवसर, वित्तीय सहायता और सामाजिक सहयोग मिले तो भारत की GDP में उनका योगदान कम से कम 18% से बढ़कर 30% तक हो सकता है.

भविष्य का भारत वह होगा जिसमें हर गांव की महिला अपने मोबाइल से अंतरराष्ट्रीय व्यापार कर सकेगी. ई-कॉमर्स और स्टार्टअप्स के जरिए महिलाएं न सिर्फ आत्मनिर्भर होंगी बल्कि समाज को भी आत्मनिर्भर बनाएंगी.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-