सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2025 को एक अहम आदेश जारी किया, जिसने दिल्ली-एनसीआर समेत पूरे देश में आवारा कुत्तों (Stray Dogs) के अधिकारों और आम जनता की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया है. कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि स्टेरिलाइज्ड, वैक्सीनेटेड और डीवॉर्म किए गए कुत्तों को सड़कों पर वापस छोड़ा जा सकता है, लेकिन आक्रामक या रैबिज से ग्रस्त कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों से दूर रखा जाएगा. साथ ही राज्यों को यह निर्देश भी दिया गया कि वे एक समान राष्ट्रीय नीति विकसित करें, जिसमें ABC (Animal Birth Control) नियमों को अपनाना अनिवार्य होगा.सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश मानव सुरक्षा और पशु अधिकारों दोनों का संतुलन साधने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है.
हालांकि इसे लागू करना आसान नहीं होगा, लेकिन अगर नगर निगम, NGOs और नागरिक समाज मिलकर काम करें तो दिल्ली-एनसीआर और पूरे देश में आवारा कुत्तों का संकट नियंत्रित किया जा सकता है.यह फैसला हमें यह भी याद दिलाता है कि समस्या का समाधान हिंसा से नहीं, बल्कि विज्ञान और मानवीय दृष्टिकोण से होता है.यह आदेश सिर्फ कानूनी या प्रशासनिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक, मानवीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी दूरगामी असर डालने वाला है.
आदेश की पृष्ठभूमि
पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली-एनसीआर और देश के कई हिस्सों में आवारा कुत्तों द्वारा हमलों की घटनाएँ लगातार सुर्खियों में रही हैं.
नोएडा और गाजियाबाद जैसे इलाकों में बच्चों और बुजुर्गों पर हमले की घटनाएँ बढ़ीं.
कई आरडब्ल्यूए (Resident Welfare Associations) ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया और सख्त नियम बनाने की मांग की.
दूसरी ओर, पशु अधिकार कार्यकर्ता और NGOs लगातार इस बात पर ज़ोर दे रहे थे कि कुत्तों का भी जीने का अधिकार है और उन्हें क्रूरता से मारना समाधान नहीं हो सकता.
इन्हीं विरोधाभासी परिस्थितियों के बीच सुप्रीम कोर्ट का यह संशोधित आदेश आया है, जो संतुलन साधने की कोशिश करता है.
कोर्ट का तर्क और आदेश की मुख्य बातें
ABC (Animal Birth Control) नियमों का पालन अनिवार्य
सभी राज्यों और नगर निगमों को सुनिश्चित करना होगा कि आवारा कुत्तों का स्टेरिलाइजेशन और टीकाकरण व्यापक स्तर पर हो.
स्टेरिलाइज और वैक्सीनेटेड कुत्तों को छोड़ा जाएगा
ये कुत्ते अब भी सड़कों पर रहेंगे लेकिन इनके हमलावर होने की संभावना बेहद कम होगी.
आक्रामक या रैबिज से ग्रस्त कुत्तों पर पाबंदी
ऐसे कुत्तों को सार्वजनिक क्षेत्रों से दूर रखा जाएगा और उनके लिए अलग सुरक्षित शेल्टर की व्यवस्था करनी होगी.
राष्ट्रीय नीति बनाने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को कहा है कि वे मिलकर एक समान नीति बनाएं ताकि हर जगह एक जैसे नियम लागू हों.
प्रतिक्रियाएँ
1. आम जनता की आवाज़
नोएडा के एक निवासी ने कहा: “यह फैसला स्वागत योग्य है. हम भी कुत्तों से नफ़रत नहीं करते, लेकिन बच्चों की सुरक्षा सबसे ज़रूरी है.”
गाज़ियाबाद की एक महिला बोलीं: “कुत्तों को मारना समाधान नहीं है. अगर उन्हें वैक्सीनेट किया जाए तो इंसान और जानवर दोनों सुरक्षित रह सकते हैं.”
2. पशु अधिकार कार्यकर्ता
PETA और अन्य NGOs ने फैसले को “मानवीय और वैज्ञानिक” बताते हुए सराहा.
उनके अनुसार, यह आदेश कुत्तों को बेवजह मारने की प्रवृत्ति पर रोक लगाएगा.
3. RWA और हाउसिंग सोसाइटीज़
कई RWAs अब भी चिंतित हैं. उनका कहना है कि सिर्फ आदेश काफी नहीं, ग्राउंड लेवल पर निगरानी और लागू करना सबसे बड़ी चुनौती है.
4. स्वास्थ्य विशेषज्ञ
डॉक्टरों ने इस आदेश को “पब्लिक हेल्थ फ्रेंडली” बताया है.
एक वेटरिनरी डॉक्टर ने कहा: “रैबिज का खतरा तभी घटेगा जब सभी कुत्तों का समय पर टीकाकरण होगा.”
इंडस्ट्री और प्रशासन का दृष्टिकोण
नगर निगम और स्थानीय प्रशासन
नगर निगमों पर अब ज़िम्मेदारी और बढ़ गई है.
उन्हें बड़े पैमाने पर स्टेरिलाइजेशन और टीकाकरण केंद्र खोलने होंगे.
पशु आश्रय और NGOs
इस आदेश से NGO सेक्टर को नई भूमिका मिली है.
उन्हें न केवल स्टेरिलाइजेशन अभियान चलाने होंगे बल्कि आक्रामक कुत्तों के लिए शेल्टर भी बनाना होगा.
कानूनी विशेषज्ञ
विधि विशेषज्ञ मानते हैं कि यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) को इंसानों और पशुओं दोनों के लिए लागू करने की दिशा में अहम कदम है.
सोशल मीडिया विश्लेषण
फैसले के बाद ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर #StrayDogs #SupremeCourt #DelhiNCRDogOrder जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे.
समर्थन करने वाले यूज़र्स ने लिखा:
“अब इंसान और जानवर दोनों सुरक्षित रहेंगे, यह है सही संतुलन.”
आलोचक यूज़र्स बोले:
“सिर्फ आदेश से कुछ नहीं होगा. जब तक हर गली और मोहल्ले में स्टेरिलाइजेशन नहीं होता, हादसे होते रहेंगे.”
मीम्स और वीडियो भी वायरल हुए, जिनमें “ABC नीति लागू करो” का संदेश मज़ाकिया अंदाज़ में दिया गया.
चुनौतियाँ और आगे की राह
इंफ्रास्ट्रक्चर – क्या नगर निगम के पास इतने संसाधन हैं कि हजारों कुत्तों का स्टेरिलाइजेशन और टीकाकरण समय पर कर सकें?
निगरानी – यह सुनिश्चित करना कि आक्रामक कुत्तों को सचमुच सार्वजनिक जगहों से हटाया गया है.
फंडिंग – NGOs और आश्रयों को चलाने के लिए फंड कहाँ से आएगा?
सामाजिक जागरूकता – आम जनता को यह समझाना कि कुत्तों को पीटना या भगाना समाधान नहीं है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

