संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक रूप से गाजा में अकाल (Famine) की घोषणा कर दी. यह आधुनिक विश्व में किसी युद्ध क्षेत्र में घोषित अकाल का सबसे बड़ा मामला है. यूएन की मानवीय रिपोर्ट कहती है कि 5 लाख से अधिक लोग भुखमरी, वंचना और मृत्यु की दहलीज पर पहुँच चुके हैं. लगभग 22 महीनों से जारी इजरायल की बमबारी, नाकेबंदी और हिंसक विस्थापन ने गाजा की संपूर्ण जीवन प्रणाली को तोड़ दिया है—न पानी, न दवा, न खाना, और न ही सुरक्षित घर.यूएन के शीर्ष मानवीय अधिकारी मार्टिन ग्रिफिथ्स ने कहा—“यह 21वीं सदी का अकाल है, जो हम सबकी आँखों के सामने घट रहा है. यह किसी सूखे या प्राकृतिक आपदा का परिणाम नहीं, बल्कि पूरी तरह मानव निर्मित आपदा है.”इस खबर ने न केवल मध्य पूर्व बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर दिया है. सोशल मीडिया से लेकर विश्व राजनीति तक, हर जगह गाजा की भूखमरी और मौत की तस्वीरें चर्चा का केंद्र बन चुकी हैं.गाजा का अकाल केवल एक क्षेत्रीय त्रासदी नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के नैतिक मूल्यों की परीक्षा है. जब पूरी दुनिया डिजिटल युग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और चंद्रमा पर मिशनों की बात कर रही है, वहीं गाजा के लोग एक मुट्ठी आटे और पानी के लिए मर रहे हैं.यह सवाल अब पूरी दुनिया से पूछा जा रहा है—क्या हम सचमुच एक आधुनिक और संवेदनशील युग में जी रहे हैं, या फिर हमारी राजनीति ने हमारी इंसानियत को कैद कर लिया है?
गाजा की भयावह स्थिति
22 महीने से जारी हमले और नाकेबंदी ने गाजा की आपूर्ति लाइनों को खत्म कर दिया.
खाद्य सामग्री लगभग पूरी तरह रुक गई है. बच्चों में कुपोषण की दर 75% तक पहुँच चुकी है.
स्वास्थ्य सेवाएँ ध्वस्त—अस्पतालों में न दवा, न बिजली, न डॉक्टर.
जल संकट चरम पर—60% आबादी को पीने लायक पानी नहीं मिल रहा.
मानव विस्थापन—20 लाख की जनसंख्या में से आधे से अधिक बार-बार बेघर हो चुके हैं.
यूएनICEF की रिपोर्ट बताती है कि गाजा में हर 5 मिनट में एक बच्चा भूख या इलाज न मिलने से मर रहा है.
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ
इस अकाल की घोषणा पर दुनिया भर में प्रतिक्रियाएँ तेज हो गईं.
अमेरिका ने कहा कि यह स्थिति “गंभीर” है, लेकिन उसने सीधे तौर पर इजरायल की कार्रवाई की आलोचना नहीं की.
यूरोपीय संघ ने मानवीय गलियारे खोलने की मांग की और कहा कि गाजा में “तत्काल भोजन और दवा पहुँचाना जरूरी है.”
तुर्की और कतर ने इजरायल को “अपराधी राष्ट्र” बताया और गाजा के लिए बड़े राहत पैकेज की घोषणा की.
भारत ने संयमित बयान दिया और मानवीय सहायता भेजने का आश्वासन दिया.
इजरायल का कहना है कि वह “हमास को खत्म करने के लिए अभियान” चला रहा है और मदद केवल तभी संभव है जब “सुरक्षा गारंटी” हो.
सोशल मीडिया पर उबाल
गाजा की भूखमरी और बच्चों की तस्वीरें ट्विटर (X), इंस्टाग्राम और फेसबुक पर वायरल हैं.
#GazaFamine और #SavePalestine ट्रेंडिंग है.
दुनिया भर के लोग भोजन और दवाओं से भरे ट्रक रोकने वाले वीडियो देखकर गुस्से में हैं.
मशहूर हस्तियाँ जैसे हॉलीवुड अभिनेता मार्क रफेलो और भारतीय अभिनेता अली फज़ल ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी.
मुस्लिम देशों में भारी आक्रोश है, वहीं पश्चिमी देशों में नागरिक समाज “सरकारों की चुप्पी” पर सवाल उठा रहा है.
मानवीय संगठनों का दृष्टिकोण
रेड क्रॉस, डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स और वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (WFP) ने चेतावनी दी है कि यदि 24 घंटे में आपूर्ति नहीं खुली, तो मौत का आंकड़ा लाखों में जा सकता है.
WFP की डायरेक्टर सिंडी मैकेन ने कहा—
“गाजा की स्थिति सोमालिया और इथियोपिया के अकाल से भी भयावह है. फर्क सिर्फ इतना है कि यह अकाल युद्ध और नाकेबंदी का नतीजा है, न कि प्राकृतिक आपदा का.”
ऐतिहासिक तुलना
इतिहास गवाह है कि अकाल मानव सभ्यता की सबसे बड़ी त्रासदियों में से रहा है.
1943 का बंगाल अकाल—30 लाख मौतें.
इथियोपिया (1984)—10 लाख मौतें.
सोमालिया (2011)—2.6 लाख मौतें.
गाजा की स्थिति इनसे भी भयावह कही जा रही है, क्योंकि यहाँ 21वीं सदी की आधुनिक तकनीक और वैश्विक निगरानी के बावजूद लोग मर रहे हैं और दुनिया केवल बयानबाज़ी कर रही है.
राजनीति बनाम इंसानियत
यह सवाल अब पूरी दुनिया में गूँज रहा है—क्या राजनीति इंसानियत से बड़ी है?
इजरायल सुरक्षा का हवाला देकर नाकेबंदी कर रहा है, लेकिन इसकी कीमत निर्दोष बच्चे और महिलाएँ चुका रहे हैं. दूसरी ओर, पश्चिमी देश मानवाधिकार की बातें करते हैं लेकिन हथियार सप्लाई भी जारी रखते हैं.
सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी ने इसे सबसे सटीक ढंग से कहा:
“गाजा का अकाल सिर्फ फिलिस्तीनियों की नहीं, पूरी इंसानियत की हार है.”
आगे का रास्ता
यूएन ने 10 बिंदुओं की एक तात्कालिक योजना बनाई है:
गाजा में मानवीय गलियारा खोलना.
तत्काल भोजन और दवा सप्लाई.
बच्चों और महिलाओं की प्राथमिक सुरक्षा.
नाकेबंदी खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव.
युद्ध विराम की तत्काल अपील.
हालांकि यह सब तभी संभव है जब बड़े देश—अमेरिका, रूस, चीन, भारत—एक साथ पहल करें.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

