गंगोत्री का पानी अब बर्फ़ से कम और बारिश से अधिक प्रभावित हो रहा

गंगोत्री का पानी अब बर्फ़ से कम और बारिश से अधिक प्रभावित हो रहा

प्रेषित समय :15:49:39 PM / Wed, Aug 27th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

गंगोत्री घाटी, उत्तराखंड: उत्तराखंड की ऊँचाइयों में बसी गंगोत्री घाटी, जो देश के करोड़ों लोगों के जीवन और आस्था का आधार मानी जाती है, अब जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक बदलावों की नई कहानी बयां कर रही है. सदियों से यहाँ की बर्फ़ और ग्लेशियर का पिघलता पानी मैदानों तक पहुँचकर खेतों को सींचता रहा, नदी-नालों और बिजलीघरों को जीवन देता रहा और गंगा की धारा को निरंतर बनाए रखा. लेकिन हालिया वैज्ञानिक अध्ययन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब गंगोत्री की जलकथा बदल रही है.गंगोत्री घाटी की बदलती जलकथा हमें यह याद दिलाती है कि हिमालय की ऊँचाई पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सीधे करोड़ों लोगों की जीवनरेखा पर असर डालते हैं. यह बदलाव सिर्फ वैज्ञानिक रिपोर्ट का विषय नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन, खेती, बिजली उत्पादन और सामाजिक संरचना से जुड़ा हुआ है.

IIT इंदौर के वैज्ञानिकों का 41 साल का शोध
आईआईटी इंदौर के शोधकर्ताओं ने गंगोत्री ग्लेशियर सिस्टम के पानी के बहाव को 1980 से 2020 तक 41 वर्षों के डेटा के आधार पर बारीकी से विश्लेषित किया. इसके लिए उन्होंने हाई-रेज़ोल्यूशन हाइड्रोलॉजिकल मॉडल SPHY (Spatial Processes in Hydrology) का इस्तेमाल किया. इस मॉडल को मैदान में मापे गए डिस्चार्ज रिकॉर्ड, सैटेलाइट से मिले ग्लेशियर का वजन, बर्फ़ के फैलाव और अन्य आंकड़ों के साथ मिलाकर तैयार किया गया.

शोधकर्ताओं ने पाया कि अब भी गंगोत्री से निकलने वाला पानी मुख्य रूप से बर्फ़ और ग्लेशियर के पिघलने पर निर्भर है, लेकिन पिछले चार दशकों में इसका वितरण धीरे-धीरे बदल रहा है.

बर्फ़ पर निर्भरता घट रही, बारिश और बेसफ़्लो बढ़ रहे हैं
शोध में कुल वार्षिक बहाव के स्रोत इस प्रकार दर्ज किए गए हैं:

बर्फ़ पिघलना (Snow Melt): 64%

ग्लेशियर पिघलना (Glacier Melt): 21%

वर्षा (Rainfall): 11%

ज़मीन के भीतर का बहाव (Baseflow): 4%

विश्लेषण से स्पष्ट है कि बर्फ़ पिघलने से मिलने वाला पानी अब भी सबसे अधिक योगदान करता है, लेकिन चार दशकों के ट्रेंड को देखने पर पता चलता है कि बर्फ़ का हिस्सा घट रहा है, जबकि बारिश और बेसफ़्लो का हिस्सा बढ़ रहा है.

चरम बहाव का समय भी बदल गया
अध्ययन में यह भी सामने आया कि 1990 के बाद चरम बहाव (Peak Flow) का समय बदल गया है. पहले यह अगस्त में आता था, जबकि अब यह जुलाई में ही देखने को मिलता है. वैज्ञानिकों के अनुसार इसका कारण सर्दियों में बर्फ़बारी कम होना और गर्मियों में बर्फ़ का जल्दी पिघलना है.

शोधकर्ताओं की राय
शोध की मुख्य लेखिका पारुल विन्ज़े, जो आईआईटी इंदौर की शोध छात्रा हैं, कहती हैं,

“चार दशकों का डेटा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि गंगोत्री का जल बहाव बदल रहा है. अब बर्फ़ के पिघलने पर निर्भरता कम हो रही है, और बारिश और बेसफ़्लो पर निर्भरता बढ़ रही है.”

मार्गदर्शक डॉ. मोहम्मद फ़ारूक़ आज़म, जो आईसीआईएमओडी से जुड़े हैं और पहले आईआईटी इंदौर में एसोसिएट प्रोफ़ेसर रह चुके हैं, का कहना है कि यह बदलाव छोटे नहीं हैं. वे कहते हैं:

“ऊँचाई वाले इलाक़ों में खेती और हाइड्रोपावर सीधे पिघलते पानी पर निर्भर करते हैं. बहाव का समय और मात्रा बदलने से बिजली उत्पादन, सिंचाई और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ेगा.”

पहले के अध्ययन और नए अध्ययन में अंतर
गंगोत्री और हिमालय के पानी पर पहले भी अध्ययन हुए थे, लेकिन वे छोटे समय या सीमित डेटा पर आधारित थे. इस नए शोध में 41 साल का विस्तृत रिकॉर्ड शामिल है, जिससे गंगोत्री घाटी की असली जलकथा का सबसे स्पष्ट चित्र सामने आया है.

गंगा की जीवनरेखा पर असर
मैदानी इलाक़े बारिश पर अधिक निर्भर हैं, लेकिन ऊँचाई वाले इलाक़ों में बर्फ़ और ग्लेशियर का पिघलना अब भी जीवनरेखा है. जब यह जीवनरेखा बदलती है, तो इसका असर केवल वैज्ञानिक रिपोर्ट तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह सीधे गाँवों के खेतों, बिजलीघरों और करोड़ों लोगों के जीवन और आस्था तक पहुँचता है.

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह ट्रेंड जारी रहा, तो आने वाले दशकों में:

हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स का उत्पादन प्रभावित हो सकता है.

ऊँचाई वाले क्षेत्रों की सिंचाई योजनाओं पर दबाव बढ़ सकता है.

बर्फ़ और ग्लेशियर पर निर्भर जीविका स्रोत जैसे चरवाहे और पर्वतीय किसान प्रभावित होंगे.

गंगा का मैदानी बहाव और जलस्तर भी अप्रत्याशित रूप से बदल सकते हैं.

शोध के निष्कर्ष यह संकेत देते हैं कि गंगोत्री की जलकथा अब स्थिर नहीं है. जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियर पिघलना और बर्फ़ की कमी के कारण पानी का स्रोत बदल रहा है. वैज्ञानिकों ने चेताया है कि जल संसाधनों के प्रबंधन में तुरंत सुधार और स्थानीय स्तर पर सस्टेनेबल वाटर मैनेजमेंट अपनाना जरूरी है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-