₹2.2 करोड़ राशन गबन घोटाले से हिल उठा जबलपुर: जिला प्रशासन ने दिए जांच के आदेश

₹2.2 करोड़ राशन गबन घोटाले से हिल उठा जबलपुर: जिला प्रशासन ने दिए जांच के आदेश

प्रेषित समय :18:11:57 PM / Thu, Aug 28th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जबलपुर. मध्यप्रदेश का जबलपुर शहर इन दिनों एक ऐसे घोटाले की वजह से सुर्खियों में है जिसने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. जिला प्रशासन ने ₹2.2 करोड़ के अवैध राशन गबन की आशंका पर औपचारिक जांच का आदेश दिया है. आरोप है कि प्वाइंट ऑफ सेल मशीनों और ई-पोर्टल में तकनीकी हेरफेर करके वास्तविक लाभार्थियों तक पहुँचने वाला अनाज कालाबाजारी के जरिये गायब कर दिया गया. जांच की बागडोर अतिरिक्त कलेक्टर को सौंपी गई है जबकि शुरुआती रिपोर्ट में खाद्य विभाग के एक पूर्व फूड कंट्रोलर और एक जूनियर सप्लाई ऑफिसर की भूमिका संदिग्ध पाई गई है. यह मामला न केवल सरकारी योजनाओं की पारदर्शिता पर चोट करता है बल्कि यह भी बताता है कि डिजिटलीकरण के बावजूद सिस्टम में खामियां बरकरार हैं.

मामले की शुरुआती जांच से जो तथ्य सामने आए हैं वे बेहद चौंकाने वाले हैं. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत गरीब परिवारों को उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से सस्ता राशन उपलब्ध कराया जाता है और इसके लिए आधार-आधारित सत्यापन तथा POS मशीनों का उपयोग अनिवार्य है. लेकिन जबलपुर में कथित रूप से कुछ अधिकारियों और सप्लाई एजेंटों ने तकनीकी छेड़छाड़ कर ई-पोर्टल पर फर्जी ट्रांजैक्शन दिखाए. लाभार्थियों के नाम से ट्रांजैक्शन होते रहे लेकिन वास्तव में वह राशन उन्हें कभी नहीं मिला. इस खेल में POS मशीनों से फर्जी एंट्री की गई, ghost beneficiaries जोड़े गए और गबन किया गया अनाज खुले बाजार में बेच दिया गया. सरकारी रिकॉर्ड में सब कुछ सही दिखता रहा लेकिन गरीब जनता का हक माफिया और भ्रष्ट अधिकारियों की जेब में जाता रहा.

जांच रिपोर्ट के मुताबिक यह गड़बड़ी करीब ₹2.2 करोड़ की बताई गई है. राशन की मात्रा को देखें तो यह हजारों क्विंटल अनाज के बराबर है. इतनी बड़ी मात्रा का अनाज यदि वाकई गरीबों तक पहुँचता तो हजारों परिवारों को कई महीनों तक भूख से राहत मिल सकती थी. सिर्फ रकम ही नहीं, यह मामला सरकार की गरीब कल्याण योजनाओं पर विश्वास को भी चोट पहुँचाता है. जिस समय महंगाई और बेरोजगारी से जूझते गरीब परिवारों को सहारा देने के लिए राशन योजना चलाई जाती है, उसी वक्त उसका गबन होना सामाजिक संवेदनशीलता पर प्रहार है.

जबलपुर के जिला कलेक्टर ने तुरंत संज्ञान लेते हुए मामले की विस्तृत जांच का आदेश दिया है. अतिरिक्त कलेक्टर की अगुवाई में गठित टीम इस बात की तहकीकात कर रही है कि किन POS मशीनों में गड़बड़ी की गई, इसमें कौन-कौन कर्मचारी और अधिकारी शामिल हैं और यह नेटवर्क कितने समय से सक्रिय है. कलेक्टर ने कहा कि जिन्होंने भी गरीबों के हक पर डाका डाला है उन्हें किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा और जांच पूरी होने के बाद एफआईआर दर्ज कर सख्त कार्रवाई की जाएगी.

सूत्र बताते हैं कि शुरुआती स्तर पर पूर्व फूड कंट्रोलर और जूनियर सप्लाई ऑफिसर का नाम संदेह के घेरे में है. इनके ऊपर आरोप है कि या तो ये गबन की प्रक्रिया में सीधे शामिल थे या फिर जानबूझकर लापरवाही बरती. खाद्य विभाग के अन्य कर्मचारियों से भी पूछताछ की जा रही है. प्रशासन इस बात की भी पड़ताल कर रहा है कि राशन वितरण की गड़बड़ी अकेले जबलपुर तक सीमित है या यह नेटवर्क और जिलों तक फैला हुआ है.

जब इस मामले की चर्चा स्थानीय स्तर पर फैलनी शुरू हुई तो कई गरीब परिवार सामने आए. उन्होंने बताया कि महीनों से उन्हें पूरा राशन नहीं मिल रहा था. रांझी इलाके की रामकली बाई कहती हैं, “हमको हर महीने सिर्फ दो किलो गेहूं मिलता था जबकि कार्ड पर पाँच किलो लिखा है. दुकानवाला कहता कि सिस्टम में उतना ही आया है.” इसी तरह आदिवासी बस्तियों से भी शिकायतें मिलीं कि कई बार पूरा महीना बीत जाता और राशन का कोई वितरण ही नहीं होता. इन गवाहियों से साफ है कि यह गड़बड़ी ज़मीनी हकीकत से मेल खाती है.

राशन घोटाले की खबर सामने आते ही जबलपुर का राजनीतिक माहौल भी गर्म हो गया है. विपक्षी दलों ने इसे सरकार की नाकामी बताते हुए मुख्यमंत्री से खाद्य आपूर्ति मंत्री तक से जवाब मांगा है. कांग्रेस नेताओं ने कहा कि भाजपा सरकार गरीबों को राशन देने का सिर्फ दावा करती है, हकीकत में अधिकारी और नेता मिलकर घोटाले करते हैं. वहीं, सत्ता पक्ष के नेताओं का कहना है कि सरकार इस मामले को बेहद गंभीरता से ले रही है और दोषियों को जेल भेजकर ही दम लेगी.

यह मामला सामाजिक और आर्थिक असर भी छोड़ गया है. जिन योजनाओं पर गरीबों का जीवन निर्भर है उन्हीं में गबन होने से सामाजिक असंतोष बढ़ सकता है. प्रशासनिक ईमानदारी पर सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि डिजिटलीकरण और POS सिस्टम को भ्रष्टाचार रोकने के लिए लाया गया था लेकिन अब वही घोटाले का जरिया बन गया. गबन किया गया अनाज खुले बाजार में महंगे दाम पर बेचा गया जिससे महंगाई पर और असर पड़ा. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मामला सिर्फ तकनीकी खामी का नहीं बल्कि संगठित अपराध का संकेत है. POS मशीन और ई-पोर्टल में इतनी आसानी से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती जब तक विभागीय कर्मचारियों की मिलीभगत न हो. आईटी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि आधार आधारित ओटीपी और बायोमेट्रिक सत्यापन सही तरीके से किया जाए तो फर्जी ट्रांजैक्शन संभव नहीं हैं. इससे साफ है कि या तो सत्यापन के नियम जानबूझकर ढीले किए गए या सिस्टम की सुरक्षा में लापरवाही की गई.

जांच टीम की रिपोर्ट आने के बाद एफआईआर दर्ज होगी, संबंधित अधिकारियों को निलंबित किया जाएगा और यदि नेटवर्क बड़ा निकला तो मामला आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ और लोकायुक्त को भी सौंपा जा सकता है. साथ ही राज्य सरकार ने संकेत दिए हैं कि पूरे प्रदेश में राशन वितरण प्रणाली का ऑडिट कराया जाएगा ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके.

जबलपुर का यह राशन गबन घोटाला सिर्फ एक जिले का मामला नहीं है बल्कि यह देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कमजोरियों और खामियों का प्रतीक है. सरकार ने जिस उद्देश्य से डिजिटलीकरण और POS मशीनों का उपयोग शुरू किया था उसी को भ्रष्टाचार की जकड़न ने निष्फल कर दिया. ₹2.2 करोड़ की यह गड़बड़ी दिखाती है कि जब तक प्रशासनिक जवाबदेही, तकनीकी सुरक्षा और राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत नहीं होगी तब तक गरीबों का हक सुरक्षित नहीं रह सकता.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-