दृष्टिबाधित लड़कियों ने गणेश उत्सव में धोळ ताशा की गूंज से जीता दिल

दृष्टिबाधित लड़कियों ने गणेश उत्सव में धोळ ताशा की गूंज से जीता दिल

प्रेषित समय :21:35:55 PM / Fri, Aug 29th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

गणेश चतुर्थी के अवसर पर इस बार सोशल मीडिया पर एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ जिसने लोगों को झकझोर कर रख दिया. महाराष्ट्र में आयोजित इस त्योहार की शोभा बढ़ाने वाली परंपरागत धोळ-ताशा की गूंज हमेशा ही माहौल में जोश और भक्ति भर देती है. लेकिन इस बार इस गूंज के पीछे खड़ी थीं वे लड़कियां, जो दृष्टिबाधित हैं. जी हां, देखने की शक्ति उनसे भले ही छिन गई हो, मगर संगीत की धड़कन, ताल का एहसास और समर्पण की चमक ने उनके प्रदर्शन को अद्भुत बना दिया.

इंस्टाग्राम पर ‘महाराजांचे वादक’ नामक पेज ने जब इन लड़कियों का वीडियो साझा किया, तो महज कुछ ही घंटों में यह वीडियो चार लाख से अधिक व्यूज़ पार कर गया. सोशल मीडिया पर लाखों लोग इन युवतियों के साहस और जज्बे की सराहना करते नहीं थक रहे. जहां लोग सामान्यतः किसी भी कला को दृश्य आनंद से जोड़ते हैं, वहीं इन दृष्टिबाधित लड़कियों ने साबित कर दिया कि संगीत आंखों से नहीं, आत्मा से पैदा होता है.

गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र की पहचान है. बड़े-बड़े पंडालों से लेकर छोटे मोहल्लों तक, ढोल-ताशा की थाप त्योहार की ऊर्जा को चरम पर ले जाती है. जब हजारों लोग गणपति बप्पा की आराधना में जुटे होते हैं, उस समय इन लड़कियों का धोळ-ताशा प्रदर्शन सबका ध्यान अपनी ओर खींच ले गया. उनके ढोल की थाप में वह आत्मविश्वास था, जो बताता है कि सीमाएं केवल शरीर में होती हैं, मन और आत्मा में नहीं.

दृष्टिबाधित होना जीवन में बड़ी चुनौती है. लेकिन जब वही चुनौती प्रेरणा में बदल जाए, तो असंभव भी संभव हो जाता है. इन लड़कियों ने जिस तालमेल के साथ धोळ-ताशा बजाया, वह किसी प्रशिक्षित और अनुभवी वाद्यदल से कम नहीं था. लोगों ने उनके वीडियो पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि "इनकी मेहनत और लगन देखने लायक है." एक यूजर ने लिखा, "आंखों से भले ही न देख पाईं, लेकिन इन्होंने हर धड़कन से हमें भक्ति का अहसास करा दिया."

गणेशोत्सव का यह नजारा उस सांस्कृतिक विरासत की याद दिलाता है, जिसमें कला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति मानी जाती है. संगीत, खासकर ढोल-ताशा, केवल उत्साह का प्रतीक नहीं बल्कि सामूहिकता और आस्था का प्रतीक भी है. जब ये लड़कियां एक साथ खड़ी होकर समान लय में वादन करती हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका आत्मविश्वास किसी भी बाधा से बड़ा है.

सोशल मीडिया पर इस वीडियो को प्रेरणादायक बताया जा रहा है. जहां आजकल ज्यादातर ट्रेंड्स तात्कालिक और सतही मनोरंजन तक सीमित हो जाते हैं, वहीं इस वीडियो ने असली प्रेरणा और सकारात्मकता का संदेश दिया. कई यूजर्स ने लिखा कि यह वीडियो बार-बार देखने का मन करता है. कुछ ने इसे "गणेशोत्सव का सबसे यादगार पल" कहा.

इन लड़कियों की कहानी केवल एक वायरल वीडियो भर नहीं है, बल्कि यह उन लाखों दिव्यांगजनों की आवाज़ है, जो समाज की उपेक्षा और चुनौतियों के बावजूद अपने हुनर से आगे बढ़ना चाहते हैं. उनके हाथों में थमा ढोल केवल वाद्ययंत्र नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का प्रतीक है. इस प्रदर्शन ने यह भी दिखाया कि यदि अवसर मिले तो कोई भी सीमा इंसान की उड़ान को रोक नहीं सकती.

गणेश चतुर्थी का यह पल उस आध्यात्मिक भाव को भी सामने लाता है जिसमें "गणपति बप्पा मोरया" की पुकार हर किसी को जोड़ती है. जब चारों ओर श्रद्धा और उल्लास का माहौल होता है, तो दृष्टिबाधित इन लड़कियों का प्रदर्शन भक्ति और आत्मविश्वास का दोगुना संदेश देता है.

संगीतकारों और सांस्कृतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के प्रदर्शन समाज में समावेशन और जागरूकता का संदेश देते हैं. यह दिखाते हैं कि कला किसी एक वर्ग की नहीं, बल्कि सबकी है. किसी भी कमी या चुनौती के बावजूद यदि अभ्यास और जुनून हो तो हर व्यक्ति कला की ऊँचाई को छू सकता है.

वीडियो के वायरल होने से इन लड़कियों को अब राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है. लोग उनके नाम जानना चाहते हैं, उनके ग्रुप से जुड़ना चाहते हैं और कई संस्थाएं उनकी मदद के लिए आगे आ रही हैं. यह नजारा बताता है कि सोशल मीडिया केवल मनोरंजन या विवाद का साधन नहीं, बल्कि सकारात्मकता और प्रेरणा का बड़ा मंच भी बन सकता है.

गणेशोत्सव के इस मौके पर जब सब लोग भक्ति और आनंद में डूबे थे, उस समय इन दृष्टिबाधित लड़कियों ने ढोल-ताशा की थाप से भक्ति और साहस का ऐसा संगम पेश किया कि हर कोई भावविभोर हो उठा. यह प्रदर्शन केवल संगीत का नहीं, बल्कि जीवन जीने की उस कला का था जो हमें सिखाती है कि सीमाएं केवल बाहरी होती हैं, भीतर की ताकत सब कुछ बदल देती है.

आज जब यह वीडियो लाखों दिलों तक पहुँच चुका है, तो इसका सबसे बड़ा संदेश यही है कि जीवन की हर चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है. दृष्टिबाधित लड़कियों ने गणेश चतुर्थी पर धोळ-ताशा की थाप से यह साबित कर दिया कि भक्ति और कला की शक्ति सबसे बड़ी है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-